Thursday, April 18, 2024
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Lockdown ने बदल दिया पेशा, पंचर वाले बेच रहे सब्जी

पचीस सालों से रामू बिहार के गोपालगंज से लखनऊ आकर कृष्णा नगर में पंचर बनाने का काम कर रहे थे। कभी 300 तो कभी 500 रुपये कमा लेते थे, लेकिन कोरोना की महामरी ने धंधे को बंद करा दिया।

IANS Written by: IANS
Published on: April 06, 2020 20:02 IST
Vegetable- India TV Hindi
Image Source : PTI Representational Image

लखनऊ. कोरोना के प्रकोप से बचाने के लिए हुए देशव्यापी लॉकडाउन ने रोज कमाई करके पेट भरने वालों की परेशानियां बढ़ा दीं हैं। पंचर बनाने और दिहाड़ी मजदूरी करने वालों को सब्जी बेंचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। गांव से आकर शहरों में बहुत सारे लोग छोटे-मोटे काम करके अपना पेट भर रहे हैं। दिहाड़ी मजदूर हों या फिर ठेले खोमचे वाले, चाहे रिक्शा वाले हों। इनकी दुस्वारी यह है कि इन्हें पता नहीं होता कि सरकार इनके हितों के लिए कौन-कौन सी योजनाएं चला रही है।

पचीस सालों से रामू बिहार के गोपालगंज से लखनऊ आकर कृष्णा नगर में पंचर बनाने का काम कर रहे थे। कभी 300 तो कभी 500 रुपये कमा लेते थे, लेकिन कोरोना की महामरी ने धंधे को बंद करा दिया। मां-बाप भाई भी यही पर रहते हैं। ऐसे में सबका भरण पोषण करने के लिए वह ठेले पर सब्जी बेंचकर अपना गुजारा कर रहे हैं। उनका कहना है कि "इस समय जिस गली में जा रहे हैं, वहां ठेलों की संख्या भी खूब बढ़ गई है, और ऐसे में बिक्री भी न के बराबर है। किसी तरह से जीवन-यापन कर रहे हैं।"

लखीमपुर के रामदुलारे यहां पर दिहाड़ी मजदूरी करते थे। उनका भी काम बंद है और वह ठेले पर खीरा और फल बेंच कर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं। उनका कहना है कि "बड़ी मुश्किल से मंडी से फल लाकर बेंचने को मिलता है। सब साधन बंद हैं, गांव जाने को मिल नहीं रहा है, ऐसे में यहीं पर फल बेंचकर अपना पेट पाल रहे हैं।"

बलरामपुर के दनकू कुर्सी रोड पर पान की दुकान चलाते थे। लेकिन इन दिनों वह ठेले पर दूध, ब्रेड और मक्खन बेंच रहे हैं। कहते हैं कि दुकान बंद है कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा तभी बच्चों का पेट भरेगा। उनसे सरकारी योजना का फायदे के बारे में पूछा गया तो उन्होंने किसी योजना के बारे में जानकारी होने से इंकार कर दिया। फुटपाथ और फेरी दुकानदारों को जागरूक करने के लिए काम करने वाले मथुरा प्रसाद ने बताया कि "सरकार की जरूरतमंदों के लिए अनेक योजनाएं चल रही हैं। लेकिन जानकारी के अभाव में इसका फायदा उन्हें नहीं मिल पा रहा है।"

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