Thursday, April 18, 2024
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Hal Shashti 2020: हरछठ व्रत आज, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी मनााया जाता है। यह पर्व श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: August 08, 2020 23:55 IST
Hal Sashti 2020: 9 अगस्त को हरछठ व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा- India TV Hindi
Image Source : INSTAGRAM/ARINDAMSD Hal Sashti 2020: 9 अगस्त को हरछठ व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी मनााया जाता है। यह पर्व श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। चूंकि बलराम जी का प्रधान शस्त्र 'हल'। इसलिए हलषष्ठी, हरछठ या ललही छठ के रूप में मनाया जाता है।  आज  व्रत करने से  संतानहीन को  श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है और जिनकी पहले से संतान है, उनकी संतान की आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है।  इस लबार ये त्योहार 9 अगस्त को मनाया जाएगा। 

महिलाएं पड़िया वाली भैंस के दूध से बने दही और महुवा को पलाश के पत्ते पर खा कर व्रत का समापन करती हैं। इस दिन गाय के दूध और दही का सेवन करना भी वर्जित है।  षष्ठी तिथि: 9 अगस्त को सुबह से  10 अगस्त की सुबह 6 बजकर 43 मिनट तक रहेगी। 

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ऐसे करें हरछठ की पूजा

इस दिन सुबह सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर गोबर ले आए। इसके बाद साफ जगह को इस गोबर से लीप कर तालाब बनाएं। इस तालाब में झरबेरी, ताश और पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हरछठ को गाड़  दें। इसके बाद विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करें। 

पूजा के लिए सतनाजा (यानी सात तरह के अनाज जिसमें आप गेंहू, जौ, अरहर, मक्का, मूंग और धान) चढ़ाएय़ इसके बाद हरी कजरियां, धूल के साथ भुने हुए चने और जौ की बालियां चढ़ाएं। इसके बाद कोई आभूषण और हल्की से रंगा हुआ कपड़ा चढ़ाएं। इसके बाद भैंस के दूध से बनें मक्खन से हवन करें। इसके बाद कथा सुने।  

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 हरछठ की व्रत कथा

एक ग्वालिन गर्भवती थी। उसका प्रसवकाल नजदीक था, लेकिन दूध-दही खराब न हो जाए, इसलिए वह उसको बेचने चल दी। कुछ दूर पहुंचने पर ही उसे प्रसव पीड़ा हुई और उसने झरबेरी की ओट में एक बच्चे को जन्म दिया। उस दिन हल षष्ठी थी। थोड़ी देर विश्राम करने के बाद वह बच्चे को वहीं छोड़ दूध-दही बेचने चली गई। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने गांव वालों ठग लिया। इससे व्रत करने वालों का व्रत भंग हो गया। इस पाप के कारण झरबेरी के नीचे स्थित पड़े उसके बच्चे को किसान का हल लग गया। दुखी किसान ने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांकें लगाए और चला गया। 

ग्वालिन लौटी तो बच्चे की ऐसी दशा देख कर उसे अपना पाप याद आ गया। उसने तत्काल प्रायश्चित किया और गांव में घूम कर अपनी ठगी की बात और उसके कारण खुद को मिली सजा के बारे में सबको बताया। उसके सच बोलने पर सभी ग्रामीण महिलाओं ने उसे क्षमा किया और आशीर्वाद दिया। इस प्रकार ग्वालिन जब लौट कर खेत के पास आई तो उसने देखा कि उसका मृत पुत्र तो खेल रहा था।

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