Friday, April 19, 2024
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Panipat Movie Review: कृति सेनन के करियर की turning point साबित होगी 'पानीपत', पैसा वसूल है फ़िल्म

Panipat Movie Review: जानें कैसी है कृति सेनन, अर्जुन कपूर और संजय दत्त की फिल्म पानीपत

Jyoti Jaiswal Jyoti Jaiswal
Updated on: December 06, 2019 9:06 IST
Panipat Movie Review

Panipat Movie Review

  • फिल्म रिव्यू: पानीपत
  • स्टार रेटिंग: 3 / 5
  • पर्दे पर: 6 दिसंबर 2019
  • डायरेक्टर: आशुतोष गोवारिकर
  • शैली: पीरियड ड्रामा

Panipat Movie Review:  छत्रपति शिवाजी से लेकर पेशवा बाज़ीराव तक, इतिहास कई महान मराठाओं की बहदूरी से भरा पड़ा है। निर्देशक आशुतोष गोवारिकर ने सदशिव राव भाऊ की ज़िंदगी पर ‘पानीपत’ नाम की फ़िल्म बनाई है।

यह कहानी 14 जनवरी 1761 में हुई मराठाओं और अफ़ग़ानों के बीच  हुई पानीपत की तीसरी लड़ाई पर आधारित है, जिसे आशुतोष ने बड़े परदे पर शानदार तरीक़े से उतारा है।

इस युद्ध में सदशिव राव भाऊ (अर्जुन कपूर )फ़ग़ानी बादशाह अहमद शाह अब्दाली (संजय दत्त) की टक्कर होती है, युद्ध में सदशिव इतनी बहदूरी से लड़ता है कि अब्दाली भी उसकी तारीफ़ किए बिना नहीं रह पाता है।

सदाशिव के रोल में अर्जुन कपूर का काम ठीक रहा, पिछली फ़िल्मों के मुक़ाबले इस फ़िल्म में उनका काम बेहतर लगा है, हालाँकि बार बार आपके मन में ये ख़याल ज़रूर आएगा कि काश ये रोल रणवीर सिंह ने किया होता। सदाशिव की पत्नी पार्वती बाई के रोल में कृति सेनन का काम बहुत अच्छा रहा। इस फ़िल्म में उनका अभिनय पिछली सभी फ़िल्मों से बेहतर है, इमोशनल सीन में उन्होंने अपने अभिनय से हैरान किया है। ये फ़िल्म उनके करियर की टर्निंग point फ़िल्म साबित होगी।

कृति और अर्जुन की केमिस्ट्री भी अच्छी है।अब बात करते हैं फ़िल्म के विलेन  अब्दाली की। जानवर जैसे ख़ूँख़ार विलेन के रोल में संजय दत्त का काम अच्छा रहा, उन्हें देखकर आपको ‘पद्मावत’ के ख़िलजी की याद आएगी। इसके अलावा  साहिल सलाथिया, मोहनीश बहल, पद्मिनी कोल्हापुरे, जीनत अमान, गश्मीर महाजनी, सुहासिनी मुले, विनीता महेश, नवाब शाहऔर अभिषेक निगम जैसे सितारों का काम भी अच्छा रहा।

सपोर्टिंग कास्ट मजबूत होने की वजह फ़िल्म और मज़बूत हो गयी है। ये फ़िल्म आशुतोष गोवारिकर की है और उन्हें ऐतिहासिक फ़िल्में बनाने में महारत हासिल है। फ़िल्म के राजाओं और अन्य किरदारों के लिए ऐक्टर्स का चयन, और सेट पर की गयी मेहनत साफ़ दिखती है। फ़िल्म का कैमरा वर्क और सिनेमेटोग्राफ़ी भी अच्छी है। हाँ वीएफ़एक्स ज़रूर कहीं कहीं अखरते हैं। 

ये फ़िल्म तीन घंटे लंबी है और फ़र्स्ट हाफ़ बहुत खींचा गया है, सेकंड हाफ़ में फ़िल्म रफ़्तार पकड़ती है। अगर फ़िल्म छोटी होती तो और बेहतर होती। अगर आप ऐतिहासिक फ़िल्में पसंद करते हैं, और आशुतोष गोवारिकर की फ़िल्में अच्छी लगती हैं तो आप ये फ़िल्म भी देख सकते हैं, इंडिया टीवी की तरफ़ से इस फ़िल्म को मिलेंगे 5 में से 3 स्टार।

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