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Hindi News Explainers आज ही के दिन 76 साल पहले शुरू हुआ था दुनिया का सबसे बड़ा खूनी विस्थापन, अब भी याद करके सिहर जाते हैं लोग

आज ही के दिन 76 साल पहले शुरू हुआ था दुनिया का सबसे बड़ा खूनी विस्थापन, अब भी याद करके सिहर जाते हैं लोग

बंटबारे की वजह से लगभग 10 लाख लोगों की जान चली गई थी। सरहद के दोनों तरफ से लगभग एक करोड़ लोग भारत और पाकिस्‍तान चले आए। एक आंकड़े के मुताबित उस समय यह दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ी संख्या में लोगों का विस्थापन था।

Partition- India TV Hindi Image Source : INDIA TV विस्थापन का दर्द

नई दिल्ली: 14 अगस्त साल 1947 एक वह तारीख है जो भारतीय इतिहास में काले दिन के तौर पर याद की जाती है। 76 साल गुजर जाने के बाद भी यह दिन किसी भी भारतीय को भूलना नामुमकिन सा है। इस दिन भारत के दो टुकड़े हुए थे। कहने को तो यह केवल जमीन का बंटवारा था लेकिन इस बंटवारे का इतना भयंकर परिणाम होगा यह शायद किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। 14 अगस्त 1947 के दिन ही दुनिया का सबसे बड़ा विस्थापन हुआ था। 1 करोड़ से भी ज्यादा लोगों को अपनि जमीन-जायदाद को छोड़कर भागना पड़ा था। लाखों लोगों की जान गई थी। हजारों परिवार बर्बाद हो गए। अब तक आप शायद समझ चुके होंगे कि हम भारत से पाकिस्तान के अलग होने की बात कर रहे हैं। 

Image Source : FILEआज ही के दिन 76 साल पहले शुरू हुआ था दुनिया का सबसे बड़ा विस्थापन

आज ही के दिन हुआ था पाकिस्तान का जन्म 

14 अगस्त 1947 को ही अंग्रेजों ने भारत के दो टुकड़े किए थे और दुनिया के नक़्शे पर एक नया देश उभरा था, जिसे पाकिस्तान नाम दिया गया। अंग्रेजों ने भारत पर लगभग 200 साल राज किया था लेकिन वह जाते-जाते भारत को एक ऐसा जख्म दे गए जो नासूर बन गया। यह जख्म आज भी भारत के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। आजकल सन्नी देओल की फिल्म ग़दर-2 खूब चर्चा में बनी हुई है। इसका पहला भाग विभाजन की विभीषका पर बना हुआ था। उसमें आपने देखा होगा कि कैसे पाकिस्तान से आने वाली ट्रेनों में हिंदुओं और सिखों की लाशें भर-भरकर आ रही थीं। आप शायद सोच रहे होंगे कि वह केवल फ़िल्मी कहानी थी, लेकिन वह कहानी बिलकुल सच थी। 

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विभाजन की वजह से दोंनों तरह जबरदस्त मारकाट हुई थी। लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। हजारों महिलाओं को बच्चियों का बलात्कार किया गया था। हजारों लोग दिव्यांग हो गए थे। पाकिस्तान से जान बचाकर आये लाखों परिवार देश में शरणार्थी की तरह रहने लगे। कई परिवार तो ऐसे भी थे, जिनका पाकिस्तान में सैकड़ों एकड़ जमीन थी, जमा-जमाया कारोबार था। लेकिन विस्थापन की वजह से उन्हें भारत में दो वक्त के खाने के लिए भी मोहताज और सरकारी मदद के भरोसे होना पड़ा। 

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इन्हीं में से एक परिवार नानकचंद का भी था। वह लाहौर के मशहूर सोने के व्यापारी थे। लाहौर के फूला मंदी में उनकी दुकान थी। सुखी परिवार था, लेकिन विभाजन ने उनका सब कुछ उजाड़ दिया। इस समय उनका परिवार दिल्ली के लक्ष्मी नगर में रहता है। परिवार के सदस्य ने इंडिया टीवी से बात करते हुए बताया कि उनका परिवार लाहौर के नामी-गिरामी परिवार में से एक था। सन 47 की शुरुआत में जब तय हो गया था कि भारत के टुकड़े होंगे और लाहौर पाकिस्तान में आएगा तब नेताओं ने कहा था कि यह विभाजन शांतिपूर्ण होगा। हमें भी यही लगा था, लेकिन अगस्त आते-आते हालात पूरी तरह से बदल चुके थे। 

Image Source : INDIA TVविभाजन का दंश झेलने वाला एक परिवार

इसी परिवार के सदस्य रमन नय्यर बताते हैं, कुछ समय पहले तक उनके पड़ोसी जो उनके साथ परिवार की तरह रहते थे, वह अब उनके दुश्मन हो चुके थे। बाहर मारकाट मची हुई थी, ऐसे में उन्होंने अपनी पड़ोसियों से मदद की गुहार लगाई तो उन्होंने कहा कि अगर आप लोग मुस्लिम बन जाते हैं तो हम आपकी मदद करेंगे। जब हर तरफ से निराशा ही हाथ लगी तब उन्होंने सब कुछ छोड़कर भारत जाने का फैसला लिया। लेकिन मुसीबत यहीं खत्म नहीं होती हैं। रेडिओ पर लगातार मारकाट की ख़बरें आ रही थीं। विस्थापन के दौरान रास्ते में जो भी दिखता था, उसे मौत के घाट उतार दिया जा रहा था। ऐसी खबरें सबसे ज्यादा पंजाब के रास्ते से जाने वाले लोगों की सामने आ रही थीं। इसलिए हमारे परिवार ने उस रास्ते से नहीं बल्कि सोलन के रास्ते भारत में आने का फैसला लिया।

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रमन बताते हैं कि बंटवारे के समय उनके दादा और परदादी पाकिस्तान से साथ चले थे, लेकिन रास्ते में वह दोनों बिछड़ गए। उनके दादा ने अपनी मां को कई वर्षों तक तलाशा लेकिन वह नहीं मिलीं। वह कुछ समय के लिए सोलन में ही रह गए। कुछ साल बाद वह दिल्ली के लाजपत नगर आ गए। जहां आज भी हजारों विस्थापित परिवार बसे हुए हैं। यहां साल 1967 में उन्हें उनकी मां से मुलाकात होती है, जो खुद भी अपने बेटे की तलाश कर रही होती हैं। इसके बाद वह साल 1972 में दिल्ली के लक्ष्मी नगर में आकर बस गए और आज उन्हें वहां रहते हुए 50 साल से भी ज्यादा गुजर गए हैं।