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Hindi News भारत राजनीति जिन्होंने 72000 रुपये देने के वादे किए थे, वे 72 सीटें भी नहीं जीत पाए: PM मोदी

जिन्होंने 72000 रुपये देने के वादे किए थे, वे 72 सीटें भी नहीं जीत पाए: PM मोदी

नरेंद्र मोदी ने कहा कि 2019 की बात करूं तो मैं आपको बता सकता हूं कि मैं चुनाव में हमारी संभावनाओं को लेकर काफी आश्वस्त था। यह विश्वास हमारी सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड, और हमने सुशासन और विकास के एजेंडे पर जिस प्रकार काम किया, उससे उपजा था।

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आईएएनएस के साथ खास बातचीत में प्रकृति के प्रति अपने प्रेम, धराशायी होती कांग्रेस पार्टी और सबसे महत्वपूर्ण पाकिस्तान के पूर्व शुभचिंतकों और उसके आर्थिक मददगारों की घेरेबंदी करने की अपनी व्यवस्थित रणनीति के बारे में बात की। यह एक ऐसी चीज है, जिसका पर्याप्त श्रेय प्रधानमंत्री को नहीं मिलता, जबकि विदेश नीति की शायद यही एकमात्र उपलब्धि रही है। प्रधानमंत्री ने इस दौरान सत्ता में अपनी दूसरी पारी की भी बात की, जिसमें वह पहले से भी कहीं अधिक मजबूत जनाधार के साथ लौटे हैं।

उनसे हुई बातचीत के अंश इस प्रकार हैं :

आप 'मैन वर्सेज वाइल्ड' में नजर आए हैं। बतौर एक राजनेता इस बेहद अपरंपरागत शो में आने का क्या कारण रहा?

- कई बार किसी परंपरागत मुद्दे को उजागर करने के लिए कुछ अपरंपरागत करना अच्छा होता है। मुझे लगता है कि सही उद्देश्य के लिए बात करने और काम करने के लिए हर वक्त सही होता है। हर समुदाय, हर राज्य, हर देश, हर क्षेत्र के लिए कोई न कोई प्रमुख मुद्दा होता है। लेकिन मेरा मानना है कि पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा समूह विशेष के सभी मुद्दों को मिलाकर देखा जाए तो उससे भी ज्यादा बड़ा होता है। यह आज हमारी धरती के हर इंसान, हर वनस्पति और हर पशु को प्रभावित कर रहा है। यह मनुष्य की परीक्षा की घड़ी है कि हम कितनी जल्दी और कितने प्रभावी तरीके से अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर पूरे विश्व के भले के बारे में सोचें।

भारत की प्रकृति के साथ सद्भावनापूर्व तरीके से रहने की महान परंपरा रही है। पूरे देश में, राज्यों में और विभिन्न संस्कृतियों में प्रकृति के विभिन्न पहलुओं को पवित्र माना जाता है। यह परंपरा स्वत: ही इसके संरक्षण में मदद करती है। एक प्रकार से यह हमारे देश में प्राकृतिक रूप से बना संरक्षण तंत्र है। हमारी परवरिश ही ऐसी है कि हमें प्रकृति के साथ मिलजुल कर रहने की सीख मिली हुई है। हमें केवल इन आदर्शो को याद रखने की जरूरत है। मुझे लगता है कि हम इसमें सफल भी हुए हैं, क्योंकि हाल ही में जारी हुए आंकड़े दिखाते हैं कि बाघों की संख्या में प्रभावशाली रूप से वृद्धि हुई है। यह कार्यक्रम भारत के सुंदर और समृद्ध वनस्पति जगत और जीव-जंतुओं को दुनियाभर में दर्शाने का एक माध्यम रहा। भारत में प्रकृति प्रेमियों के लिए असंख्य स्थान हैं, ऐसे तमाम स्थान हैं, जो विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों, विभिन्न प्रकार के वन्यजीवों से समृद्ध हैं।

पिछले पांच सालों में देश में आने वाले पर्यटकों की संख्या में करीब 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मुझे पूरा भरोसा है कि बुनियादी ढांचे, कनेक्टिविटी और सुरक्षा को मजबूत करने के लिए बनाई गईं विभिन्न योजनाओं के साथ हम अतुल्य भारत की सुंदरता का अनुभव करने के लिए दुनियाभर से और भी ज्यादा पर्यटकों को आते देखेंगे।

आप कांग्रेस पार्टी के घटनाक्रम को कैसे देखते हैं, जहां राहुल गांधी के यह कहने के बाद कि वह नहीं चाहते कि किसी गांधी को अध्यक्ष पद मिले, सोनिया गांधी अध्यक्ष बन गईं?

- कांग्रेस में जो हुआ, वह उनके परिवार का आंतरिक मामला है। मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता।

2014 में यह माना जा रहा था कि आप खाड़ी देशों से दोस्ताना संबंध स्थापित नहीं कर पाएंगे, लेकिन हमने देखा है कि 2014 से खाड़ी देशों के साथ भारत के संबंधों में सुधार आ रहा है। वर्तमान में यह कहना गलत नहीं होगा कि खाड़ी देशों के साथ भारत के रिश्ते पिछले सात दशकों में सबसे अच्छे हैं। आप इसकी व्याख्या कैसे करते हैं?

- मुझे लगता है कि इसके दो पहलू हैं। पहला, लोगों का एक खास वर्ग मानता था कि मेरी सरकार और व्यक्तिगत रूप से मैं न केवल खाड़ी क्षेत्र में, बल्कि व्यापक संदर्भ में भी विदेश नीति के मोर्चे पर विफल हो जाऊंगा। जबकि सच्चाई यह है कि दुनियाभर में विदेश नीति में मेरी सरकार का सफल ट्रैक रिकॉर्ड सभी के सामने है। बल्कि, 2014 में प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद मेरी सरकार ने किसी पहले विदेश मंत्री के आधिकारिक दौरे का स्वागत किया था, तो वह थे ओमान के सुल्तान। इसलिए लोगों ने मेरे बारे में क्या सोचा और हकीकत में क्या हुआ, उस पर उन्हें आत्मचिंतन करना चाहिए। इसके बजाय मैं दूसरे पहलू पर ध्यान देना चाहता हूं, जो है- भारत के लिए खाड़ी क्षेत्र का महत्व।

इस क्षेत्र का भारत के साथ गहरा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध है। यहां 90 लाख भारतीय रहते हैं, जिनके द्वारा भेजे जाने वाले धन का हमारी अर्थव्यवस्था में अभूतपूर्व योगदान है और उन्होंने क्षेत्र की समृद्धि में भी अपार योगदान दिया है। मैंने देखा है कि खाड़ी देशों के नेता भारतीय प्रवासियों की मौजूदगी को काफी महत्व देते हैं और अभिभावक की तरह उनकी देखभाल करते हैं।

यह क्षेत्र हमारी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी हमारा प्रमुख सहयोगी है। हमारा संबंध अब उनके साथ क्रेता-विक्रेता से भी कहीं ज्यादा बढ़कर है। यूएई ने हमारे रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व कार्यक्रम में हिस्सा लिया है और यूएई और सऊदी अरब दोनों भारत में विश्व के सबसे बड़े रिफाइनरी प्रोजेक्ट में निवेश करने वाले हैं। भारतीय कंपनियों को पहली बार क्षेत्र में ऑफशोर ऑयल फील्ड्स में अधिकार हासिल हुआ है।

मैंने क्षेत्र में सभी देशों के साथ अपने संबंध मजबूत करने के लिए हमारी विदेश नीति पर ध्यान देने के विशेष प्रयास किए हैं। आधिकारिक स्तर से लेकर राजनीतिक स्तर तक क्षेत्र में हमारी पहुंच बेमिसाल है। मैंने खुद कई बार क्षेत्र का दौरा किया है, और हमने भारत में क्षेत्र के कई नेताओं की मेजबानी की है।

दुनियाभर के जिन नेताओं से मेरी सबसे घनिष्ठ और गर्मजोशी भरी बातें होती हैं, उनकी बात करूं तो इनमें कई खाड़ी क्षेत्र के नेता हैं। हम नियमित रूप से संपर्क में रहते हैं। और, मुझे लगता है कि इस घनिष्ठता और नियमित संपर्क के कारण ही हमारी नीति काफी हद तक सफल हुई है। हमने किसी गलतफहमी या किसी संदेह को हमारे रिश्ते के बीच नहीं आने दिया। हम सभी देशों के साथ बेहद खुले रहे हैं और उन्होंने भी इसके बदले में हमारे साथ गर्मजोशी भरे और दोस्ताना संबंध कायम किए हैं।

मेरा दृढ़ विश्वास है कि भारत और खाड़ी देशों ने एक ऐसी साझेदारी की वास्तविक क्षमता को समझना शुरू किया है, जो आपसी लाभ से बढ़कर है और जो हमारे साझा और विस्तृत पड़ोसी क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि विश्वभर में शांति, विकास और समृद्धि ला सकती है।

2019 के चुनाव के दौरान, काफी लोगों ने भविष्यवाणी की थी कि आपको बहुमत हासिल नहीं होगा। कई लोगों ने कहा था कि 2014 का परिणाम उम्मीद से परे और अप्रत्याशित था। जब आप चुनाव प्रचार कर रहे थे, आपका मन क्या कह रहा था और आप जीत को लेकर कितना आश्वस्त थे?

- कुछ ऐसे लोग हैं, जो अपने पूर्वाग्रह, विचारधारा या किसी प्रकार की प्रतिबद्धताओं के कारण उन लोगों की हार को लेकर तर्क गढ़ लेते हैं, जिन्हें वे पसंद नहीं करते। एक ऐसा समय आता है, जब सच्चाई जमीन पर नजर आती है, लेकिन ये लोग उस सच्चाई को दरकिनार करना पसंद करते हैं। वे लोगों के मन में भ्रम पैदा करने के लिए झूठ और फर्जी आंकड़ों का सहारा लेते हैं।

ये ही वही लोग हैं, जो ऐसी बातें गढ़ते हैं कि भाजपा को बहुमत हासिल नहीं होगा, भाजपा सरकार बना लेगी, लेकिन उसे एक नए नेता की जरूरत है, भाजपा को नए गठबंधनों की जरूरत है, आदि आदि। ये लोग उन्हें भी बदनाम करते हैं, जो इनकी बात का समर्थन नहीं करते। ऐसे लोग बार-बार बेनकाब हुए हैं, लेकिन उनके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं हुआ। हमारे देश में इन लोगों द्वारा किए जाने वाले चुनावी विश्लेषणों में पार्टियों, संभावित गठजोड़ों, दशकों पुरानी केमिस्ट्री पर आधारित परिवारों के ग्लैमर को ध्यान में रखा जाता है। लेकिन लोगों और उनकी आकांक्षाओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है। 2014 में और 2019 में भी जिन लोगों ने जनता से बात की और उनकी प्राथमिकताओं को जाना, वे जानते थे कि क्या हो रहा है।

जहां तक हमारा सवाल है, हम चुनाव जीतने के लिए काम नहीं करते, हम लोगों का विश्वास जीतने के लिए काम करते हैं। सरकारी धन से ज्यादा जनता के मन की ताकत होती है। हम लोगों के कल्याण पर ध्यान देते हैं, चुनाव परिणाम इसी का नतीजा होते हैं। पिछले 20 सालों से, मैं कई चुनाव अभियानों में सक्रिय रूप से शामिल रहा हूं और इनमें से ऐसा एक भी चुनाव नहीं था, जब मेरी हार की भविष्यवाणी नहीं की गई।

कई लोग हैं, जो सर्वनाश की भविष्यवाणी करते हैं और मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं। विशेष रूप से 2019 की बात करूं तो मैं आपको बता सकता हूं कि मैं चुनाव में हमारी संभावनाओं को लेकर काफी आश्वस्त था। यह विश्वास हमारी सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड, और हमने सुशासन और विकास के एजेंडे पर जिस प्रकार काम किया, उससे उपजा था।

मैं जहां कहीं भी गया, मैंने भाजपा और राजग के लिए भरपूर सहयोग देखा। लोगों ने यह तय कर लिया था कि 21वीं सदी में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और वंशवाद की राजनीति स्वीकार्य नहीं है। हम विकास और प्रदर्शन की राजनीति के युग में रहते हैं, बयानबाजी और प्रतीकवाद के पुराने दौर में नहीं।

आपको इसका एक उदाहरण देता हूं -कांग्रेस पार्टी ने न्याय योजना के बारे में बात की। शायद यह सबसे बड़ा चुनावी वादा था, लेकिन लोगों ने ऐसे खोखले वादों को दरकिनार कर दिया। उन्हें कांग्रेस में ऐसे वादे को निभाने की ईमानदारी और क्षमता नहीं नजर आई। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि जिन लोगों ने 72,000 रुपये का वादा किया था, वे 72 सीटें भी नहीं जीत पाए।

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