A
Hindi News भारत राजनीति कन्हैया कुमार: साम्यवादी सियासत को अलविदा बोलकर पहुंचे ‘24 अकबर रोड’

कन्हैया कुमार: साम्यवादी सियासत को अलविदा बोलकर पहुंचे ‘24 अकबर रोड’

वामपंथ की पाठशाला से निकलकर कांग्रेस के हाथ को थामने वाले 34 वर्षीय कन्हैया कोई पहले नेता नहीं हैं और शायद आखिरी भी नहीं होंगे, लेकिन चर्चा एवं विवादों से घिरे उनके पिछले कुछ वर्षों के सफर की वजह से उनका यह वैचारिक बदलाव सुर्खियों में रहा।

kanhaiya kumar- India TV Hindi Image Source : PTI कन्हैया कुमार: साम्यवादी सियासत को अलविदा बोलकर पहुंचे ‘24 अकबर रोड’

नई दिल्ली: बिहार का लेनिनग्राद कहे जाने वाले बेगूसराय के एक नौजवान ने जब तीन मार्च, 2016 की रात जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के परिसर में ‘पूंजीवाद, भुखमरी और गरीबी से आजादी’ के नारे बुलंद किए तो बहुत सारे लोगों को लगा कि भारत में वामपंथ की बंजर होती सियासी जमीन को पानी देने वाला एक युवा बागबान मिल गया है, लेकिन साढ़े पांच साल के भीतर ही यह बागबान ‘24 अकबर रोड’ के बगीचे को सींचने पहुंच गया। यह नौजवान जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार हैं जिन्होंने शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती के मौके पर 28 सितंबर को कांग्रेस का दामन थाम लिया और यह ऐलान किया कि ‘अगर देश की सबसे पुरानी पार्टी बचेगी तो ही भारत बचेगा।’

खैर, वामपंथ की पाठशाला से निकलकर कांग्रेस के हाथ को थामने वाले 34 वर्षीय कन्हैया कोई पहले नेता नहीं हैं और शायद आखिरी भी नहीं होंगे, लेकिन चर्चा एवं विवादों से घिरे उनके पिछले कुछ वर्षों के सफर की वजह से उनका यह वैचारिक बदलाव सुर्खियों में रहा। जेएनयू परिसर में फरवरी, 2016 में कथित तौर पर हुई देश विरोधी नारेबाजी के मामले में गिरफ्तारी से पहले कन्हैया घर-घर में पहचाने जाने वाला चेहरा नहीं थे, हालांकि वह 2015 में ही भाकपा की छात्र इकाई ‘ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फैडरेशन’ (एआईएसएफ) से जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष बन चुके थे।

विवादित नारेबाजी के मामले में गिरफ्तारी, अदालत परिसर में कुछ लोगों द्वारा हमला किए जाने और फिर जमानत मिलने के उपरांत तीन मार्च, 2016 की रात जेएनयू परिसर में जोशीला भाषण देने के बाद बेगूसराय जिले के बीहट गांव के निवासी कन्हैया भारतीय राजनीति और खासकर सरकार विरोधी राजनीतिक विमर्श का एक प्रमुख चेहरा बन गए। कन्हैया इस मामले में अभी बरी नहीं हुए हैं। हालांकि वह खुद को बेकसूर बताते हैं। भाजपा एवं कुछ अन्य दक्षिणपंथी संगठनों के लोग आज भी उन्हें ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग का सदस्य’ पुकारते हैं, लेकिन कन्हैया पटलवार करते हुए कहते हैं कि वह नागरिक अधिकारों, भारतीयता, नौजवानों के भविष्य और लोकतंत्र बचाने की बात करने वाले व्यक्ति हैं।

सोशल मीडिया के युग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के विरोध में आवाज उठाने वाले नेताओं में कन्हैया का नाम सबसे प्रमुख नाम है। विभिन्न सोशल मीडिया मंचों पर उनके लाखों फॉलोवर और सब्सक्राइबर हैं। कन्हैया का जन्म एक बेहद ही साधारण परिवार में 1987 में हुआ। बेगूसराय से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने पटना में स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने जेएनयू से पीएचडी किया। उनकी मां आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं।

शुरू से ही वामपंथी रुझान रखने वाले कन्हैया ने विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से निकलने के बाद भाकपा में रहकर राजनीति की और 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के टिकट पर अपने गृह जिले बेगूसराय से चुनाव लड़े, हालांकि उन्हें केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से हार का सामना करना पड़ा और वह तीसरे स्थान पर रहे। इस चुनावी हार के बाद वह भाकपा में संगठनात्मक रूप से ज्यादा सक्रिय नहीं दिखे, हालांकि वह सोशल मीडिया, सामाजिक संवाद के जरिये लोगों से जुड़े रहे।

सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन के दौरान उन्होंने बिहार के अलग-अलग जिलों में जनसभाएं कीं और उन जनसभाओं में कांग्रेस के नेता शकील अहमद खान उनके साथ होते थे। उसी समय यह आभास होने लगा था कि अब कन्हैया बहुत लंबे समय तक ‘लाल सलाम’ का नारा बुलंद नहीं करेंगे।

Latest India News