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Hindi News भारत राजनीति पीएम मोदी ने 'मुसलमानों' को लेकर कांग्रेस पर क्यों कसा तंज? कांग्रेस पार्टी के इस ट्रैक रिकॉर्ड में ही छिपा है इसका जवाब

पीएम मोदी ने 'मुसलमानों' को लेकर कांग्रेस पर क्यों कसा तंज? कांग्रेस पार्टी के इस ट्रैक रिकॉर्ड में ही छिपा है इसका जवाब

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पहले चरण का मतदान समाप्त हो चुका है और दूसरे चरण की तैयारियां जारी हैं। इस बीच कांग्रेस पार्टी के मैनिफेस्टो पर पीएम मोदी ने बड़ा हमला बोला है। पीएम ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस की नजर आम लोगों की मेहनत की कमाई पर है।

rahul gandhi vs pm modi- India TV Hindi Image Source : PTI राहुल गांधी VS पीएम मोदी।

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण की वोटिंग के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कांग्रेस पर लगाए गए गंभीर आरोप ने पूरे देश में खलबली मचा दी है। आरोप इतने गंभीर हैं कि कांग्रेस पूरी तरह से बैकफुट पर आ चुकी है और सफाई देने में जुट गई है। पीएम मोदी ने अपने भाषण में कांग्रेस के मंसूबों का खुलासा किया है। पीएम मोदी ने ये भी बताया है कि कांग्रेस का खतरनाक मंसूबा उनके घोषणापत्र में भी दिखाई दे रहा है। आइए, सबसे पहले जानते हैं कि पीएम मोदी ने चुनावी सभा के दौरान कांग्रेस के किस खतरनाक इरादे का खुलासा किया और क्या कहा....

पीएम मोदी ने कांग्रेस पर क्या गंभीर आरोप लगाए

पीएम मोदी ने सबसे पहले राजस्थान के बांसवाड़ा में जनसभा के दौरान कांग्रेस की नीयत और नीति पर सवाल उठाया और फिर 22 अप्रैल, सोमवार को अलीगढ़ में भी अपने भाषण के दौरान कांग्रेस की मंशा के बारे में बताया। पीएम मोदी ने कहा, "कांग्रेस की नजर आम लोगों की मेहनत की कमाई पर है, प्रॉपर्टी पर है, महिलाओं के मंगलसूत्र पर है। कांग्रेस ने इरादा जाहिर कर दिया है कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो लोगों के घरों, प्रॉपर्टी और गहनों का सर्वे कराएगी। फिर लोगों की कमाई कांग्रेस के पंजे में होगी। कांग्रेस की नजर देश की महिलाओं के गहनों पर है, माताओं-बहनों के मंगलसूत्र पर है। वो उसे छीन लेना चाहती है। कांग्रेस के मैनिफेस्टो में उसके इरादे साफ-साफ लिखे हैं। कांग्रेस जानना चाहती है कि किसके पास कितनी प्रॉपर्टी है, कितनी जमीन है, कितने मकान हैं, किसकी कितनी सैलरी है और बैंक में कितना फिक्स्ड डिपॉजिट है। अगर कांग्रेस की सरकार आई तो लोगों के बैंक अकाउंट में झांकेगी, लॉकर खंगालेगी, जमीन-जायदाद का पता लगाएगी और फिर सबकुछ छीनकर, उसपर कब्जा करके, उसे पब्लिक के बीच बांट देगी। सवाल सिर्फ गहनों का ही नहीं है, कांग्रेस पार्टी लोगों की प्रॉपर्टी भी हथियाना चाहती है, उसपर कब्जा करना चाहती है। अगर कांग्रेस की सरकार आई तो जिसके पास दो घर हैं, उसका एक घर छिन जाएगा, क्योंकि इंडी अलायंस के लोग देश में उस कम्युनिस्ट सोच को लागू करना चाहते हैं, जिसने कई देशों को बर्बाद कर दिया।" पीएम मोदी ने राजस्थान के बांसवाड़ा में अपनी रैली को संबोधित करते हुए कहा कि ये लोग संपत्ति इकट्ठा करके उन लोगों को बांटेंगे, जिनके ज्यादा बच्चे हैं। यह संपत्ति उनको बांटेंगे, जिन्हें मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है।

कांग्रेस के घोषणापत्र को डिकोड करने में राहुल गांधी ने कैसे की पीएम मोदी की मदद

आइए, अब ये जानते हैं कि कांग्रेस के 'न्याय पत्र' को डिकोड करने में पीएम मोदी की मदद किसने की? प्रधानमंत्री की मदद किसी और ने नहीं, बल्कि कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी ने अपने भाषण के जरिए खुद की। कांग्रेस ने जब यह घोषणापत्र जारी किया, तो राहुल गांधी ने खुद अपने भाषण के जरिए इसके सार को समझाया। अब राहुल गांधी ने अपने भाषण में क्या कहा, ये आप भी जान लीजिए। राहुल गांधी ने 6 अप्रैल, 2024 को कहा, "देश का एक्स-रे कर देंगे। दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। पिछड़े वर्ग को, दलितों को, आदिवासियों को, गरीब जनरल कास्ट के लोगों को, माइनॉरिटी को पता लग जाएगा कि इस देश में उनकी भागीदारी कितनी है। इसके बाद हम फाइनेंशियल और इंस्टीट्युशनल सर्वे करेंगे। ये पता लगाएंगे कि हिंदुस्तान का धन किसके हाथों में है, कौन से वर्ग के हाथ में है और इस ऐतिहासिक कदम के बाद हम क्रांतिकारी काम शुरू करेंगे। जो आपका हक बनता है, वो हम आपके लिए आपको देने का काम करेंगे।" राहुल गांधी के इसी बयान के कारण पीएम मोदी को कांग्रेस के खिलाफ बोलने का मौका मिला।

कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में क्या वादा किया?

कांग्रेस ने 5 अप्रैल को अपना घोषणापत्र जारी किया और देशव्यापी सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना का वादा किया। घोषणापत्र में कहा गया है, "कांग्रेस जातियों, उप-जातियों और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों की गणना करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना करेगी। आंकड़ों के आधार पर, हम सकारात्मक कार्रवाई के एजेंडे को मजबूत करेंगे।"

कांग्रेस ने घोषणापत्र में कहा है: कांग्रेस गारंटी देती है कि वह एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत बढ़ाने के लिए एक संवैधानिक संशोधन पारित करेगी। हम नीतियों में उपयुक्त बदलावों के माध्यम से धन और आय की बढ़ती असमानता को संबोधित करेंगे।

कांग्रेस के घोषणापत्र के कुछ हिस्से 'अल्पसंख्यक' वर्ग से

  • हम अल्पसंख्यक छात्रों और युवाओं को शिक्षा, रोजगार, व्यवसाय, सेवाओं, खेल, कला और अन्य क्षेत्रों में बढ़ते अवसरों का पूरा लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित और सहायता करेंगे।
  • हम यह सुनिश्चित करेंगे कि अल्पसंख्यकों को शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, सार्वजनिक रोजगार, सार्वजनिक कार्य अनुबंध, कौशल विकास, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों में बिना किसी भेदभाव के अवसरों का उचित हिस्सा मिले।

मुसलमानों को रिजर्वेशन देने पर अड़ी कांग्रेस

आइए, अब आपको ये समझाते हैं कि मुसलमानों के प्रति कांग्रेस का तथाकथित प्रेम कब प्रायोरिटी में बदल गया। दरअसल, इस 'पायलट प्रोजेक्ट' की शुरुआत 2004 से आंध्र प्रदेश में हुई, जब कांग्रेस की सरकार बनी। आंध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने 2004 से 2010 के बीच मुसलमानों को खास रिजर्वेशन देने के लिए 4 बार प्रयास किया गया और हर बार आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा इसे असंवैधानिक बताकर ब्रेक लगा दिया गया। इस पूरे घटनाक्रम को टाइमलाइन के जरिए समझते हैं:

12 जुलाई, 2004: आंध्र प्रदेश में वाईएसआर रेड्डी के नेतृत्व वाली नवनिर्वाचित कांग्रेस सरकार ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मुसलमानों के लिए 5% आरक्षण शुरू करने के अपने फैसले की घोषणा की।

21 सितंबर, 2004: आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय ने मुस्लिम आरक्षण के आदेश को रद्द कर दिया।

नवंबर, 2004: कांग्रेस मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी ने नवंबर 2004 में डी. सुब्रमण्यम आयोग का गठन किया.

14 जून, 2005: न्यायमूर्ति डी. सुब्रमण्यम आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और मुसलमानों को पांच प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यदि यह सिफारिश लागू की जाती, तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण के लिए निर्धारित 50% की सीमा का उल्लंघन हो जाता।

20 जून, 2005: आंध्र प्रदेश सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में 5% मुस्लिम आरक्षण के लिए एक अध्यादेश जारी किया।

25 अक्टूबर, 2005: आंध्र प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग (APBC) द्वारा सौंपी गई एक रिपोर्ट के आधार पर, राज्य ने अध्यादेश को एक अधिनियम में परिवर्तित करने के लिए विधानसभा में एक विधेयक पेश किया था।

21 नवंबर, 2005: आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने माना कि मुसलमानों के लिए आरक्षण असंवैधानिक है।

14 दिसंबर, 2005: आंध्र सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

4 जनवरी, 2006: सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर सीमित अंतरिम रोक लगा दी। जो लोग आरक्षण अधिनियम के आधार पर पहले ही भर्ती हो चुके थे उन्हें तो रहने की अनुमति दे दी गई लेकिन भविष्य में आरक्षण के आधार पर होने वाली सभी भर्तियों पर रोक लगा दी गई।

2006 में डॉ. मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल के सबसे वरिष्ठ मंत्रियों में शामिल श्री अर्जुन सिंह ने भी दोहराया था कि मुसलमानों को आरक्षण दिया जा सकता है।

17 अप्रैल, 2007: आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने माना कि आंध्र प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग (APBC) की सिफारिशें अवैज्ञानिक थीं और इसका जमीनी हकीकत से कोई संबंध नहीं था। आंध्र सरकार ने इस मामले को नए सिरे से पिछड़ा वर्ग आयोग और सेवानिवृत्त सिविल सेवक पी.एस. कृष्णन की अध्यक्षता में एक अन्य समूह में भेजा।

11 जून, 2007: पी.एस. कृष्णन ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि मुसलमानों में 14 पिछड़े वर्ग हैं।

3 जुलाई, 2007: आंध्र प्रदेश पिछड़ा आयोग ने मुसलमानों के 15 वर्गों के लिए 4% आरक्षण की सिफारिश की।

7 जुलाई, 2007: ABPC की नई सिफ़ारिश के आधार पर आंध्र सरकार ने फिर से मुसलमानों के लिए 4% आरक्षण का आदेश जारी कर दिया।

8 फरवरी, 2010: आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की 7 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 5:2 के बहुमत के फैसले से ये माना कि राज्य में पिछड़े वर्ग के मुसलमानों को 4 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाला कानून टिकाऊ नहीं था और अनुच्छेद 14, 15(1) और 16(2) का उल्लंघन है।  हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि आरक्षण धर्म विशिष्ट है और संभावित रूप से धार्मिक रूपांतरण को प्रोत्साहित करता है।

25 मार्च, 2010: सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत देते हुए 4% आरक्षण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा और मामले को अंतिम निर्णय के लिए संवैधानिक पीठ को भेज दिया।

22 दिसंबर, 2011: इसके बाद यूपीए सरकार ने केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण में से मुसलमानों के लिए 4.5 प्रतिशत का सबकोटा तैयार किया। ऐसा करने से ओबीसी का कोटा सीधे तौर पर कम हो गया। आपको बता दें कि यह फैसला जब लिया गया, तब उसके तुरंत बाद 2012 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने थे।

29 मई, 2012: आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार के इस नवीनतम 4.5% मुस्लिम आरक्षण वाले कदम को भी रद्द कर दिया।

13 जून, 2012: सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूपीए का आरक्षण आदेश पूरी तरह से धार्मिक विचार पर आधारित था और संविधान द्वारा समर्थित नहीं था।

5 जून, 2013: यूपीए सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान ने फिर कहा कि यूपीए 4.5% मुस्लिम कोटा लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है।

फरवरी, 2014: यूपीए सरकार मुस्लिम आरक्षण की गुहार लगाने सुप्रीम कोर्ट फिर से गई. सुप्रीम कोर्ट यूपीए सरकार के सेंट्रल मुस्लिम कोटा को आंध्र प्रदेश मुस्लिम कोटा मामले के साथ जोड़ने और संवैधानिक पीठ के माध्यम से मामले की सुनवाई करने पर सहमत हुआ।

कर्नाटक मुस्लिम रिजर्वेशन केस :

2023 में भाजपा के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार ने 4 प्रतिशत का मुस्लिम कोटा खत्म कर दिया और लिंगायत और वोक्कालिगा का कोटा 2-2 प्रतिशत बढ़ा दिया। हालांकि, कांग्रेस नेताओं ने 2023 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सत्ता में वापस आने पर मुस्लिम कोटा बहाल करने का वादा किया।

मौजूदा लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के इस रिकॉर्ड को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य बीजेपी नेता कांग्रेस और राहुल गांधी पर हमला बोल रहे हैं. कांग्रेस को अब अपने पुराने ट्रैक रिकॉर्ड और कार्यों पर आत्ममंथन करने की जरूरत है।

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