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Hindi News भारत उत्तर प्रदेश लॉकडाउन के कारण सीएए विरोधी हिंसा में वसूली का सामना कर रहे आरोपियों को राहत

लॉकडाउन के कारण सीएए विरोधी हिंसा में वसूली का सामना कर रहे आरोपियों को राहत

संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ पिछले साल दिसंबर में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुए हिंसक प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोपियों से 1 करोड़ 41 लाख रुपए की वसूली की प्रक्रिया लॉकडाउन के कारण फिलहाल रोक दी गई है।

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लखनऊ: संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ पिछले साल दिसंबर में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुए हिंसक प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोपियों से 1 करोड़ 41 लाख रुपए की वसूली की प्रक्रिया लॉकडाउन के कारण फिलहाल रोक दी गई है। सीएए के खिलाफ राजधानी लखनऊ में पिछले साल 19 दिसंबर को हिंसा भड़क उठी थी। इस दौरान दंगाइयों ने राजधानी के खदरा, परिवर्तन चौक, ठाकुरगंज और कैसरबाग इलाकों में पथराव तथा आगजनी करके सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था। 

जिला प्रशासन ने इस मामले में 53 आरोपियों को चिह्नित कर उन्हें एक करोड़ 41 लाख रुपए की वसूली के नोटिस भेजे थे। लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने बुधवार को बताया कि सार्वजनिक संपत्ति को पहुंचाए गए नुकसान की भरपाई की प्रक्रिया लॉकडाउन के कारण फिलहाल रोक दी गई है। लॉकडाउन खत्म होने के बाद आरोपियों के खिलाफ निश्चित रूप से कार्रवाई होगी। 

उन्होंने बताया कि नुकसान की भरपाई अप्रैल के पहले हफ्ते तक होनी थी। उसके बाद कुर्की की कार्यवाही की जानी थी। प्रकाश ने बताया कि खदरा इलाके में 13 प्रदर्शनकारियों को चिह्नित कर उन्हें कुल 21,76,000 रुपए की वसूली के नोटिस भेजे गए थे। वहीं, परिवर्तन चौक इलाके में 24 लोगों को चिह्नित कर 69,65,000 रुपए की वसूली की जानी थी। 

इसी तरह ठाकुरगंज इलाके में 10 लोगों को चिन्हित कर उन्हें 47,85,800 रुपए की वसूली के नोटिस जारी किए गए थे, वहीं कैसरबाग में छह प्रदर्शनकारियों को 1,75,000 रुपए की वसूली के नोटिस जारी हुए थे। जिला प्रशासन ने लखनऊ के हजरतगंज समेत कई स्थानों पर इन प्रदर्शनकारियों की फोटो लगे पोस्टर लगवाए थे। इन पर विवाद उठने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को पोस्टर हटाने के निर्देश दिए थे। 

राज्य सरकार उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय गई थी, मगर सर्वोच्च न्यायालय ने भी तोड़फोड़ के आरोपियों की तस्वीर लगे पोस्टर लगाने के सरकार के अधिकार पर सवाल उठाते हुए उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था। हालांकि न्यायालय के आदेश के बावजूद लखनऊ शहर में वो पोस्टर अब भी लगे हुए हैं। 

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