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Sanskrit Shlok: सफलता की गारंटी देते हैं ये संस्कृत श्लोक, बच्चों को जरूर याद करवाएं

Sanskrit Shlok For Students: संस्कृत के कई ऐसे श्लोक हैं जो न केवल बच्चों के चरित्र निर्माण में सहायक हैं बल्कि उन्हें मानसिक, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक दृष्टि से भी समृद्ध बनाने का काम करते हैं। इन श्लोकों को पढ़ने से बच्चा जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पा सकता है।

sanskrit shlok- India TV Hindi Image Source : CANVA सफलता की गारंटी देते हैं ये संस्कृत श्लोक

Sanskrit Shlok For Students: संस्कृत के श्लोकों में जीवन की उच्च शिक्षाएं और मानसिक विकास के सूत्र छिपे हुए हैं। इसलिए बच्चों को संस्कृत के श्लोक याद कराना उनके व्यक्तित्व निर्माण की दिशा में एक सार्थक प्रयास है। माना जाता है कि संस्कृत के श्लोक बच्चों की स्मरण शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ उनके अंदर अनुशासन, नैतिकता और आत्मविश्वास लाते हैं। चलिए आपको बताते हैं कि रोजाना बच्चों को संस्कृत के किन श्लोकों को पढ़ने के लिए कहना चाहिए।

सुबह उठते ही दोनों हाथों को देखते हुए इस मंत्र को पढ़ें

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।  
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥

अर्थ: मेरे हाथों के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती और मूल में भगवान गोविन्द का वास है, अतः मैं सुबह उठकर अपने हाथों का दर्शन करता हूँ।

नमस्कार मंत्र (गुरु/माता-पिता के लिए)

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।  
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

अर्थ: गुरु को ईश्वर के समान मानकर सम्मान करना।

पढ़ाई से पहले पढ़ें ये मंत्र

सरस्वति नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।  
विद्यारंभं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा॥

अर्थ: हे मां सरस्वती! मैं विद्यारंभ कर रहा हूँ, मुझे सफलता दो।

भोजन मंत्र

ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविः ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।  
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना॥

अर्थ: भोजन को भी ईश्वर को अर्पित समझकर आदरपूर्वक ग्रहण करें।

शांति मंत्र

ॐ सह नाववतु।  
सह नौ भुनक्तु।  
सह वीर्यं करवावहै।  
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।  
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

अर्थ: हम दोनों की रक्षा हो, हम मिलकर ज्ञान प्राप्त करें, हमारी पढ़ाई तेजस्वी हो, हम परस्पर द्वेष न करें।

विद्यार्थी में ये गुण जरूर होने चाहिए

 काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पाहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं॥

श्लोक के अनुसार, कौवे जैसी चेष्टा यानी प्रयास, बगुले जैसा ध्यान, स्वान अर्था कुत्ते जैसी नींद, साथ ही कम खाने वाला और गृहत्यागी (घर से दूर रहने वाला) - ये पांच गुण एक विद्यार्थी में जरूर होने चाहिए

ऐसे मिलती है सफलता

वाणी रसवती यस्य यस्य श्रमवती क्रिया।
लक्ष्मीः दानवती यस्य सफलं तस्य जीवितं॥

अर्थ- जीवन उसका ही सफल है। जो परिश्रमी है, जिसकी वाणी में मधुरता है। और जो दान करता है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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