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Hindi News खेल अन्य खेल Exclusive: अशोक कुमार ने याद किया वो दिन जब पाकिस्तान से हारने के बाद फूट-फूटकर रोए थे बलबीर सिंह

Exclusive: अशोक कुमार ने याद किया वो दिन जब पाकिस्तान से हारने के बाद फूट-फूटकर रोए थे बलबीर सिंह

1975 वर्ल्ड कप के फाइनल में विजयी गोल दागने वाले अशोक कुमार जी ने इंडिया टीवी के साथ खास बातचीत में बलबीर सिंह सीनियर के देहावसान को हॉकी जगत के लिए एक बहुत बड़ी क्षति करार दिया है।

<p>ओलंपियन अशोक कुमार...- India TV Hindi Image Source : FIH ओलंपियन अशोक कुमार ने याद किया वो दिन जब पाकिस्तान से हारने के बाद फूट-फूटकर रोए थे बलबीर सिंह

भारत के महान हॉकी खिलाड़ी और 3 बार के ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट बलबीर सिंह सीनियर ने 25 मई को आखिरी सांस ली। बलबीर सिंह के निधन के साथ ही भारतीय स्वर्णिम हॉकी युग की विरासत का एक अध्याय समाप्त हो गया। उनके निधन से भारत ही नहीं बल्कि हॉकी जगत में शोक लहर है। बलबीर सिंह जी की लंदन (1948), हेलसिंकी (1952) और मेलबर्न (1956) ओलंपिक में भारत को गोल्ड मेडल जिताने में अहम भूमिका रही। यही नहीं, हेलसिंकी ओलंपिक में नीदरलैंड के खिलाफ 6-1 से मिली जीत में उनके 5 गोल आज भी एक एक रिकॉर्ड है। साल 1975 में विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम के वो मैनेजर भी रहे। इस वर्ल्ड कप के फाइनल में विजयी गोल दागने वाले अशोक कुमार जी ने इंडिया टीवी के साथ खास बातचीत में बलबीर सिंह सीनियर के देहावसान को हॉकी जगत के लिए एक बहुत बड़ी क्षति करार दिया है।

अशोक कुमार ने कहा, "ये बहुत बड़ी क्षति है जिसे हॉकी जगत कभी भुला नहीं सकता है। एक महान खिलाड़ी और एक महान व्यक्ति के रूप में बलबीर सिंह जी सीनियर का योगदान देश को हमेशा याद रहेगा। और याद क्यों न रहे जिस शख्श ने प्रेरणा लेकर खिलाड़ी बनने का सपना संजोया, उन्होंने उस हॉकी को खेला और देश को 3 ओलंपिक गोल्ड मेडल दिलाए। तो ऐसे महान व्यक्ति का इस दुनिया से चले जाना और हमसे बिछड़ना, ये बहुत ही दुखद घटना हुई है।"

ओंलपियन बलबीर सिंह से पहली मुलाकात के बारे में उन्होंने कहा, "पहले जो हमारे ओंलपियन हुआ करते थे बलबीर सिंह सीनियर, ओलंपियन उधम सिंह, ओलंपियन गुरबख्श सिंह और ओलंपियन हरविंदर जी जैसे लोगों का व्यक्तित्व अलग ही होता था और हम सब नए खिलाड़ी इनके प्रति काफी आकर्षित हुआ करते थे। बलबीर सिंह जी तो हम सबके लिए एक बहुत बड़ा नाम थे।"

इस खास बातचीत के दौरान अशोक कुमार ने बलबीर सिंह जी के व्यक्तित्व के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने हॉकी के प्रति बलबीर सिंह जी की दीवानगी से जुड़ी एक घटना को याद करते हुए बताया, "मैंने 1970 में सिलेक्टर के तौर पर पहली बार बलबीर जी को देखा था। उस समय बाबू जी ध्यानचंद जी और रूप सिंह जी भी सिलेक्टर थे। मुझे पहली बार एशियाड के लिए भारतीय टीम में शामिल किया गया। 1970 के एशियाड में जब टीम टूर्नामेंट खेलने गई तो बलबीर सिंह जी बतौर मैनेजर टीम के साथ थे। लेकिन मुझे अच्छी तरह से याद है कि 1971 का वर्ल्ड कप जिसमें बलबीर सिंह जी कोच बनकर गए थे। उस वर्ल्ड कप में भारतीय टीम सेमीफाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ 1 गोल की बढ़त हासिल करने के बावजूद 2-1 से हार गई थी। इसके बाद जब बलबीर सिंह जी होटल में आए और मैं भी उनके साथ था क्योंकि इनके प्रति में काफी आकर्षित था और बाबूजी ध्यानचंद जी के साथ भी उनका एक गहरा रिश्ता था।

उन्होंने आगे कहा, "बलबीर सिंह जैसे ही होटल पहुंचे तो उन्होंने रोना शुरु किया और ऐसे रो रहे थे कि शांत होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। यहां तक कि मुझे लगा कि इतना रोते हुए कहीं उनका सांस न रूक जाए। इस तरह के इंसान जो हार को बर्दाश्त नहीं कर पाए। उस दिन मैंने महसूस किया कि ये क्या खिलाड़ी होंगे जो हार को बर्दाश्त नहीं करते और अपने आंसूओं से उस हार को को निकाल रहे हैं। ये सच है कि इन खिलाड़ियों ने कभी हारना नहीं सीखा था।"

अशोक कुमार ने वर्ल्ड कप कैंप से जुड़ी एक बेहद दिलचस्प  वाकये का खुलासा करते हुए कहा, "1975 के वर्ल्ड कप से पहला हमारा कैंप चंडीगढ़ में लगा हुआ था और पंजाब सरकार ने उसे स्पांसर किया था। उस वक्त बलबीर सिंह जी से हमारा रिश्ता काफी गहरा हुआ। इनकी मौजूदगी ही टीम के लिए काफी प्रेरणादायक होता थी। जहां पर हमारा हॉस्टल था तो उसी के सामने यूनिवर्सिटी के कैंपस में गर्ल्स हॉस्टल हुआ करता था। इस बीच कुछ शिकायतें आई तो बलबीर सिंह जी ने टीम के खिलाड़ियों को बुलाया और सबको लाइन में खड़ा करके उनकी खबर ली। उन्होंने कहा कि ऐसी शिकायते फिर कभी नहीं आनी चाहिए।

उन्होंने आगे बताया, "इस कैंप के दौरान बलबीर जी हमारे मैनेजर साहब थे और जीएस बोधी साहब हमारे कोच हुआ करते थे। उसी शाम दोनों ने हमारे हॉस्टल के गेट के सामने कुर्सी लगा ली और 3-4 घंटे तक वहां बैठा करते थे ताकि कोई बच्चा हॉस्टल के बाहर जाकर कोई ऐसी हरकत न करे जिससे बदनामी हो और कोई शिकायत मिले। ये सिलसिला करीब 1 महीने तक चला और इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये एक बहुत बड़ी तपस्या थी और टीम को इससे एक बड़ा सबक भी मिला। ये सबक हमें समझ में भी आया और इसका नतीजा ये हुआ कि 1975 के वर्ल्ड कप के फाइनल में पाकिस्तान को हराकर भारत ने पहली बार गोल्ड मेडल जीता।"