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Hindi News खेल अन्य खेल ओलंपिक खेलगांव 1984 में अचार के साथ चावल का दलिया खाने को मजबूर थी: पीटी उषा

ओलंपिक खेलगांव 1984 में अचार के साथ चावल का दलिया खाने को मजबूर थी: पीटी उषा

उड़नपरी पीटी उषा ने पुरानी यादों की परतें खोलते हुए बताया कि कैसे लास एंजीलिस ओलंपिक 1984 के दौरान उन्हें खेलगांव में खाने के लिये चावल के दलिये के साथ अचार पर निर्भर रहना पड़ा था।

पीटी ऊषा- India TV Hindi Image Source : GETTY पीटी ऊषा

नयी दिल्ली। उड़नपरी पीटी उषा ने पुरानी यादों की परतें खोलते हुए बताया कि कैसे लास एंजीलिस ओलंपिक 1984 के दौरान उन्हें खेलगांव में खाने के लिये चावल के दलिये के साथ अचार पर निर्भर रहना पड़ा था। वह इसी ओलंपिक में एक सेकंड के सौवे हिस्से से पदक से चूक गई थी। उषा ने कहा कि बिना पोषक आहार के खाने से उन्हें कांस्य पदक गंवाना पड़ा था। 

उन्होंने कहा, ‘‘इससे मेरे प्रदर्शन पर असर पड़ा और अपनी दौड़ के आखिरी 35 मीटर में मेरी ऊर्जा बनी नहीं रह सकी।’’ उषा 400 मीटर बाधादौड़ के फाइनल में रोमानिया की क्रिस्टियाना कोजोकारू के साथ ही तीसरे स्थान पर पहुंची थी लेकिन निर्णायक लैप में वह पीछे रह गई। उषा ने इक्वाटोर लाइन मैगजीन को दिये इंटरव्यू में कहा, ‘‘हम दूसरे देशों के खिलाड़ियों को ईष्या के साथ देखते थे जिनके पास पूरी सुविधायें थी। हम सोचते थे कि काश एक दिन हमें भी ऐसी ही सुविधायें मिलेंगी।’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे याद है कि केरल में हम उस अचार को कादू मंगा अचार कहते हैं। मैं भुने हुए आलू या आधा उबला चिकन नहीं खा सकती थी। हमें किसी ने नहीं बताया था कि लास एंजीलिस में अमेरिकी खाना मिलेगा। मुझे चावल का दलिया खाना पड़ा और कोई पोषक आहार नहीं मिलता था। इससे मेरे प्रदर्शन पर असर पड़ा और आखिरी 35 मीटर में ऊर्जा का वह स्तर बरकरार नहीं रहा।’’

उषा ने अपने 18 साल के कैरियर में भारत के लिये कई पदक जीते और अब अपनी कोचिंग अकादमी चलाती हैं। उन्होंने कहा कि उनका सपना किसी भारतीय धावक को ओलंपिक में पदक जीतते देखना है। 

उन्होंने कहा, ‘‘मेरा पूरा जीवन ही उसी लक्ष्य पर केंद्रित है। उषा स्कूल आफ एथलेटिक्स में हम उदीयमान एथलीटों को वे सुविधायें देते हैं जो हमें नहीं मिल सकी। अभी 18 लड़कियां यहां अभ्यास कर रही है।’’