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Hindi News एजुकेशन प्लास्टिक और ई-कचरे की समस्या से निपटने के लिए IIT रुड़की के रिसर्चर कर रहे ये काम, यहां जानें पूरी बात

प्लास्टिक और ई-कचरे की समस्या से निपटने के लिए IIT रुड़की के रिसर्चर कर रहे ये काम, यहां जानें पूरी बात

आईआईटी रुड़की की एक रिसर्च टीम ई-कचरे को मूल्यवान उत्पादों में बदलने और धातु की रिकवरी पर काम कर रहा है, जो जीरो-वेस्ट डिस्चार्ज कॉन्सेप्ट पर आधारित है।

IIT Roorkee- India TV Hindi Image Source : PIXABAY आईआईटी रुड़की के शोधकर्ता प्लास्टिक, ई-कचरे से निपटने के लिए तकनीकों पर काम कर रहे हैं।

IIT रुड़की के रिसर्चर एक नई टेक्नोलॉजी विकसित कर रहे हैं। इस टेक्नोंलॉजी से प्लास्टिक, ई-कचरे से निपटने में मदद मिलेगी। इसके लिए रिसर्चर्स की एक टीम दिन-रात काम कर रही है। IIT रुड़की ने इसकी जानकारी दी है।

मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, प्रोफेसर के के पंत, निदेशक, आईआईटी रुड़की, (पूर्व में आईआईटी दिल्ली का हिस्सा) की अध्यक्षता में एक शोध समूह प्लास्टिक कचरे और ई-कचरे के बढ़ते खतरे से निपटने के साथ-साथ धन के सृजन के लिए टिकाऊ टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है। इस टेक्नोलॉजी से अपशिष्टों को खत्म करने में मदद मिलेगी। 

जीरो-वेस्ट डिस्चार्ज कॉन्सेप्ट पर करेगी काम

संस्थान ने सूचित किया कि उन्होंने ई-कचरा रीसाइक्लिंग प्रक्रियाओं को विकसित किया है, जो जीरो-वेस्ट डिस्चार्ज कॉन्सेप्ट पर काम करेगी। ये टेक्नोलॉजी 'स्मार्ट सिटीज' और 'स्वच्छ भारत अभियान' पहल के अनुसार शुरू की गई है।

क्लोज्ड-लूप रीसाइक्लिंग प्रक्रिया

आईआईटी रुड़की ने कहा, "प्रस्तावित क्लोज्ड-लूप रीसाइक्लिंग प्रक्रिया को संभावित रूप से बढ़ाया जा सकता है और पारंपरिक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली एसिड-लीचिंग टेक्नोलॉजी के लिए पर्यावरण को साफ रखने के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।"

ई-कचरा पर्यावरण को पहुंचा रहा नुकसान

इस तरह के रिसर्च के उपयोग में तेजी से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बनाया जा रहा है। यदि इस तरह की प्रक्रियाओं को देश भर में जल्द से जल्द विकसित और लागू नहीं किया जाता है, तो ई-कचरा लंबे समय तक धरती और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकता है

इसके अलावा, उन्होंने कहा, "आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं द्वारा प्रस्तावित क्लोज्ड-लूप रीसाइक्लिंग प्रक्रिया को संभावित रूप से बढ़ाया जा सकता है और पारंपरिक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली एसिड-लीचिंग तकनीकों के लिए एक व्यवहार्य पर्यावरण-सौम्य विकल्प के रूप में उपयोग किया जा सकता है।"

 

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