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कांग्रेस मुक्त हुआ 'पूर्वोत्तर', बंदूक छोड़ नेता बने जोरामथंगा होंगे मिजोरम के नए CM, जानिए उनके बारे में खास बातें

जोरामथंगा दो बार मिजोरम के मुख्यमंत्री रहे है। वह एक पूर्व भूमिगत नेता थे और एमएनएफ के नेता लालडेंगा के करीबी सहयोगी थे।

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आइजोल: मिजोरम में जोरामथांगा को सर्वसम्मति से एमएनएफ विधायक दल का नेता चुन लिया गया है। वहीं, मिजोरम के मुख्यमंत्री लल थनहवला ने राज्यपाल के. राजशेखरन को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। पिछले एक दशक से राजनीतिक गुमनामी झेल रहे विद्रोही से राजनेता बने जोरामथंगा ने जोरदार ढंग से वापसी की है। उनके नेतृत्व में मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) ने राज्य के चुनावों में जबर्दस्त जीत हासिल की है। जोरामथंगा दो बार मिजोरम के मुख्यमंत्री रहे है। वह एक पूर्व भूमिगत नेता थे और एमएनएफ के नेता लालडेंगा के करीबी सहयोगी थे।

जोरामथंगा (74) उस समय भूमिगत संगठन रहे एमएनएफ में शामिल हुए थे जब वह इम्फाल के डी एम कॉलेज से कला में स्नातक की डिग्री का इंतजार कर रहे थे। लालडेंगा के नेतृत्व वाले एमएनएफ ने एक मार्च,1966 को भारतीय संघ से आजादी मिलने की घोषणा की थी। जोरामथंगा को जब यह पता चला कि वह अंग्रेजी ऑनर्स में स्नातक हो गए है तो उस समय वह एमएनएफ के अपने कामरेड के साथ जंगलों में थे। उन्हें 1969 में एमएनएफ ‘अध्यक्ष’ लालडेंगा का सचिव नियुक्त किया गया था और वह एमएनएफ पार्टी के उपाध्यक्ष भी रहे।

एमएनएफ के झंडे तले निर्दलीय उम्मीदवारों के एक समूह ने पहली बार 1987 में 40 सदस्यीय मिजोरम विधानसभा के लिए चुनाव लड़ा जिनमें से जोरामथंगा समेत 24 उम्मीदवार निर्वाचित हुए। बाद में कुछ विधायकों द्वारा दलबदल के बाद 1988 में मिजोरम में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। वह 1989 में हुए विधानसभा चुनावों में चम्फाई सीट से फिर से निर्वाचित हुए।

लालडेंगा की फेफड़ों के कैंसर के कारण सात जुलाई,1990 को मृत्यु होने के बाद जोरामथंगा को एमएनएफ का अध्यक्ष बनाया गया और वह आज तक इस पद पर बने हुए है। उन्होंने 1993 में चम्फाई सीट से राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा था और वह तीसरी बार जीते और राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता बने। जोरामथंगा के नेतृत्व वाले एमएनएफ ने 1998 में राज्य विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की और 21 विधायकों के साथ सरकार बनाई। वह पहली बार मुख्यमंत्री बने और अपना कार्यकाल पूरा किया। उन्होंने 2003 के राज्य विधानसभा चुनाव में सत्ता बरकरार रखी और वह मुख्यमंत्री बने रहे।

जोरामथंगा ने चम्फाई सीट और कोलासिब सीटों से जीत दर्ज की। हालांकि उन्होंने कालासिब सीट बाद में छोड़ दी थी। उनकी पार्टी को 2008 के चुनाव में करारी हार झेलनी पड़ी थी और यह पार्टी केवल तीन सीटों तक ही सिमट कर रह गई थी। जोरामथंगा दोनों चम्फाई उत्तर और चम्फाई दक्षिण सीटों पर हार गए थे।

मिजोरम पीपुल्स कांफ्रेंस (एमपीसी) और जोराम नेशनलिस्ट पार्टी (जेडएनपी) दोनों ने दो-दो सीटों पर जीत दर्ज की थी। विपक्षी कांग्रेस ने 32 सीटों पर जीत दर्ज की थी और लल थनहवला राज्य के मुख्यमंत्री बने थे।

पिछले विधानसभा चुनाव में भी जोरामथंगा पूर्वी तुईपुई सीट पर हार गए थे और कांग्रेस ने 34 सीटों पर जीत दर्ज करके सत्ता को बरकरार रखा था। इस बार उन्होंने आइजोल ईस्ट-I सीट से चुनाव लड़ा और उन्होंने जीत दर्ज की।