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Sardar Udham Review: उधम सिंह के मकसद और जज्बे को जीने में कामयाब रहे विक्की कौशल

विक्की कौशल द्वारा अभिनीत इस फिल्म में जलियावालां बाग हत्याकांड से लेकर जनरल डायर की हत्या तक सरदार उधम सिंह के जीवन में घटे घटनाक्रम को खूबसूरती से दिखाया गया है।

विनीता वशिष्ठ 23 Oct 2021, 18:51:40 IST
मूवी रिव्यू:: सरदार उधम
Critics Rating: 4 / 5
पर्दे पर: Oct 16, 2021
कलाकार: विक्की कौशल
डायरेक्टर: शुजीत सरकार
शैली: बायोग्राफिकल क्राइम-थ्रिलर
संगीत: -

स्वतंत्रता सेनानी सरदार उधम सिंह ओटीटी के अमेजन प्राइम पर रिलीज हो चुकी है। विक्की कौशल द्वारा अभिनीत इस फिल्म में जलियावालां बाग हत्याकांड से लेकर जनरल डायर की हत्या तक सरदार उधम सिंह के जीवन में घटे घटनाक्रम को खूबसूरती से दिखाया गया है। शूजीत सरकार ने एक वीर सेनानी की संघर्ष और जज्बे से भरी कहानी को दिखाने में कतई जल्दबाजी नहीं की है। फिल्म के छोटे-छोटे फ्लैशबैक, उधम सिंह के दिमाग में चल रही बदले की हद और भारत की आजादी का जज्बा, उन्हें बड़े ही तफ्सीली नजरिए से पेश किया है, जिसे एक हद तक सफल माना जा सकता है। इस फिल्म में देखा जाए तो अंग्रेजी राज भी दिखा है और विदेशी राज भी। 1900 से 1941 के दौर के भारत और लंदन का जीवंत जीवन दिखाने के लिए शूजीत सरकार को पूरे नंबर दे देने चाहिए, लेकिन केवल जीवन दिखाने से ही फिल्म पूरी नहीं मान ली जाती। 

फिल्म का मुख्य हिस्सा उधम सिंह बने विक्की कौशल के हर सफर को तसल्ली बख्श तरीके से गढ़ता है। यूं भी शूजीत किसी किरदार को यूं ही पैदा करके फिल्म में नहीं डालते। वो किरदार के जन्म से लेकर उसके मैच्योर होने तक का वक्त दिखाते हैं और उसी वक्त की कहानी को खूबसूरत तरीके से कहने की कहानी अच्छी बन पड़ी है।

जलियावालां बाग से उधम सिंह का निजी कनेक्शन, अपनों का बदला लेने का जज्बा कब देश को आजाद कराने की जिद में बदल जाता है, फिल्म बताती है। कुछ विदेशियों की मदद और कुछ देशवालों की मदद से जब उधम सिंह पराए मुल्क में एक जनरल को जलसे में गोली मारता है तो वो भागने की बजाय वहीं रुककर पुलिसवालों के सामने खड़ा हो जाता है। फिर क्या..फांसी।

Image Source : insta: vickykaushal09Sardar Udham Review: उधम सिंह के मकसद, दोस्ती और जज्बे को जीने में कामयाब दिखे विक्की कौशल

फिल्म में उधम सिंह के जिद और जुनून के साथ-साथ उनकी निजी जिंदगी की छोटी सी झलक मिलती है, निर्देशक चाहता तो इसे बड़ा बना सकता था, लेकिन जरूरी नहीं समझा गया और वो ठीक ही रहा। इससे किरदार के मकसद को जस्टिफाई करने में दिक्कतें आती है और फिल्म दूसरे रास्ते पर चली जाती है। भारत की अधिकतर फिल्मों में ऐसी गलतियां हुई हैं, जिन्हें ठीक करने का वक्त आया ही लगता है।

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उधम सिंह के निजी जीवन पर शूजीत ने भले ही सुराख भर जगह छोड़ी हो, लेकिन उस वक्त दुनिया की हर हलचल को कैनवास पर रखना ही उनके लिए प्लस प्वाइंट बन सकता है। मतलब शूजीत ने एक मटके में केवल काम की चीजें भरी, ऐसी जबरदस्त चीजें जिनके चलते मटका लबालब भी रहा और छलका या छनका भी नहीं।

अब बात करते हैं विक्की कौशल की। विक्की की बेहतरीन एक्टिंग के बारे में लोग काफी कुछ सुन और पढ़ चुके हैं। परफेक्शन के मामले में उनकी हर अगली फिल्म पिछली फिल्म से एक कदम आगे ही निकलती है। वे अपनी अदाकारी को लगातार मांज रहे हैं। उनके किरदार में वर्सेटाइल बदलाव आ रहे हैं, जो बताते हैं कि वो मसाला फिल्मों के एक्टरों से एक अलग कतार शुरू कर रहे हैं, जिसमें सबसे आगे वही होंगे।

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उधम सिंह के किरदार को विक्की ने पूरी शिद्दत से निभाया है। उनके चेहरे के हाव भाव घटनाओं के साथ-साथ बदलते हैं। एक टीनएजर लड़का, गमजदा किशोर और फिर एक जिद्दी जवान के बाद प्लान बनाकर काम करने वाला वयस्क। हर घटना के वक्त विक्की ने अपने किरदार को फिल्टर किया है। वो विक्की नहीं लगे हैं, वो हर घटना के वक्त सरदार उधम सिंह ही लगते हैं और यही विक्की की सफलता कही जा सकती है कि एक बायोपिक और ऊपर से पीरियोडिक फिल्म में भी उन्होंने अपने किरदार को इस शानदार तरीके से जिंदा रखने में कामयाबी हासिल की है। 

निर्देशन का कमाल हम आपको बता ही चुके हैं। कैमरा वर्क शानदार बन पड़ा है। फिल्म लाउड महसूस नहीं कराती, रंग संयोजन भी मधुर है। 

सबसे आखिर में उस पौन घंटे की त्रासदी का जिक्र नहीं किया तो शायद सही नहीं होगा। जलियावालां बाग लोगों की याद से मिट चुका है। लोग वहां जाते हैं, बाग के निशान देखते हैं औऱ लौट आते है। उस नरसंहार को एक बार फिर परदे पर ठीक उसी तरह जीवंत दिखाकर शूजीत ने शायद दर्शकों को उस विभीषिका से दो चार करवाया है। कमजोर और भावुक दिल वाले वो दृश्य देखकर रो पड़ेंगे, वहां विक्की कौशल नहीं दिखते, वहां दिखता है बस मंजर। इस मंजर को फिल्माने के लिए अगर अलग से कहीं रेटिंग देने की व्यवस्था होती तो शायद नंबर अलग से दिए जाते।  इस घंटे में लगभर हर दर्शक ने उस नरसंहार को जिया है और भोगा है। केवल पंजाब ने इसे नहीं भोगा...नए जमाने के युवा को ये दिखाना और इस अंदाज में दिखाना जस्टिफाई हो गया है क्योंकि सोशळ मीडिया पर उस त्रासदी का जिक्र हो रहा है।

कुल मिलाकर पीरियॉडिक फिल्म बनाने का शूजीत सरकार का सपना साकार हुआ है और देखना ये है कि दर्शक इसे कितना पसंद करते हैं। मसाला फिल्मों से इतर एक बायोपिक फिल्म में इतिहास और उसके नायक को खूबसूरती से फिल्माने के लिए शूजीत को 4 स्टार तो बनते हैं।