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गुजरात सरकार और CBI से सुप्रीम कोर्ट का सवाल- तीस्ता और उनके पति को जेल वापस क्यों भेजना चाहते हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार और सीबीआई से पूछा कि आप तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद को जेल भेजना चाहते हैं?

सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़- India TV Hindi Image Source : FILE PHOTO सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़

सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति जावेद आनंद के मामले में बुधवार को गुजरात सरकार और सीबीआई से सवाल किया। कोर्ट ने पूछा कि आप सरकार दोनों को जेल भेजना चाहते हैं? बता दें कि तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति सात साल से अधिक समय से इस मामले में अग्रिम जमानत पर बाहर हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस  सवाल पर सीबीआई और गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता रजत नायर ने न्यायाधीश संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा किया कि मामलों के संबंध में अदालत के सामने रिकॉर्ड पर कुछ अतिरिक्त सामग्री लाने की आवश्यकता है और चार सप्ताह के समय का अनुरोध किया।

"आप किसी को कब तक हिरासत में रख सकते हैं?"
जस्टिस अभय एस. ओका और बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा, सवाल यह है कि आप किसी को कब तक हिरासत में रख सकते हैं। शीर्ष अदालत सीतलवाड़, उनके पति, गुजरात पुलिस और सीबीआई द्वारा दंपति के खिलाफ दर्ज तीन प्राथमिकियों से उत्पन्न याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रही थी। सीतलवाड़ और उनके पति का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अधिवक्ता अपर्णा भट ने कहा कि एक कार्यवाही में जहां सीबीआई अपील में आई है, अग्रिम जमानत दी गई थी जिसके बाद आरोप पत्र दायर किया गया था और उसके बाद उन्हें नियमित जमानत दी गई थी।

तीस्ता के वकील ने क्या कहा?
इस पर पीठ ने कहा, अग्रिम जमानत दिए हुए सात साल बीत चुके हैं। आप उसे वापस हिरासत में भेजना चाहते हैं..? सिब्बल ने कहा कि अग्रिम जमानत के खिलाफ जांच एजेंसी की अपील टिक नहीं पाती, क्योंकि नियमित जमानत पहले ही दी जा चुकी है। नायर ने तर्क दिया कि यह एक मामले में हुआ था, लेकिन उसके खिलाफ एक से अधिक मामले हैं, और कहा कि इस मामले को दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा एक बड़ी पीठ को भेजा गया था और इस अदालत द्वारा तय किए जाने वाले प्रश्नों को तैयार किया गया था। 

किस मामले के लिए है जमानत याचिका
खंडपीठ ने मामले की आगे की सुनवाई चार सप्ताह के लिए निर्धारित की है। शीर्ष अदालत ने मार्च 2015 में, 2002 के दंगों में तबाह हुई अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में एक संग्रहालय के लिए धन के कथित गबन के संबंध में सीतलवाड़ और उनके पति की अग्रिम जमानत याचिका को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया था और अपने अंतरिम आदेश की अवधि बढ़ा दी थी।

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