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Covid-19: भारत आशावान, दो-तिहाई लोगों ने कहा बुरा वक्त समाप्त

कोविड-19 संकट और दैनिक जीवन में आने वाले व्यवधानों के बावजूद भारत एक 'उच्च आशावाद सूचकांक' वाला समाज बना हुआ है, जहां दो-तिहाई लोगों का मानना है कि बुरा वक्त समाप्त हो चुका है और अब चीजें बेहतर होंगी।

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नई दिल्ली: कोविड-19 संकट और दैनिक जीवन में आने वाले व्यवधानों के बावजूद भारत एक 'उच्च आशावाद सूचकांक' वाला समाज बना हुआ है, जहां दो-तिहाई लोगों का मानना है कि बुरा वक्त समाप्त हो चुका है और अब चीजें बेहतर होंगी। यह बात आईएएनएस सी-वोटर कोविड ट्रैकर में सामने आई है। कोविड-19 के प्रभावों पर कोई भी राय नहीं रखने वालों की संख्या में तेजी से कमी आई है और यह गिरावट निम्न और उच्च आशावादी लोगों के बीच लगभग समान रूप से विभाजित हो गई है। तीसरा सर्वेक्षण चार से छह अप्रैल के बीच सभी राज्यों के कुल 1,114 लोगों के बीच किया गया।

सी-वोटर इंटरनेशनल के संस्थापक निदेशक यशवंत देशमुख ने इस संबंध में अपने विचार प्रकट किए। उन्होंने कहा कि पूरा देश एक बहुत उच्च आशावाद सूचकांक समाज बना हुआ है, जहां लगभग दो तिहाई भारतीय आशावादी बने हुए हैं और उनका मानना है कि सबसे बुरा समय गुजर चुका है और अब सब कुछ बेहतर हो जाएगा।

उन्होंने कहा कि इस मामले में महिलाएं अधिक आशावादी हैं और आशावादी होना भी उम्र के साथ बढ़ता देखा गया है, क्योंकि भारत के वरिष्ठ नागरिकों को अधिक विश्वास है कि हम इस संकट से बच निकलेंगे। देशमुख ने कहा कि यह देखकर खुशी होती है कि निम्न आय वर्ग का मानना है कि हम इस सकंट से पार पा लेंगे। उन्होंने कहा कि ग्रामीण भारत की तुलना में शहरी क्षेत्रों में आशावादी सोच कम दिखाई दी है।

कोरोना महामारी के बीच तैयारी को लेकर एक सवाल पूछा गया, आपके घर में आपके परिवार के लिए कितने दिन का राशन या दवाई आदि के पैसे उपलब्ध हैं? इस पर राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बाद पहले हफ्ते में एक बड़ी आबादी ने कहा कि उनके पास तीन हफ्तों के लिए पर्याप्त संसाधन मौजूद नहीं है। हालांकि दूसरे सप्ताह में स्थिति कुछ बेहतर देखने को मिली और भारतीय परिवारों ने बेहतर तैयारी होने की बात कही।

हालांकि यह एक तथ्य है कि बेहद निम्न वर्ग के 10 प्रतिशत से अधिक भारतीय अभी भी मान रहे हैं कि उनके पास एक या दो दिनों का ही राशन उपलब्ध है, लेकिन भारतीय मध्यम वर्ग का कहना है कि इस लॉकडाउन अवधि के दौरान उनके पास कई हफ्तों तक का स्टॉक उपलब्ध है। देशमुख ने कहा कि यह देखना दिलचस्प होगा कि लॉकडाउन के तीसरे सप्ताह में लोग इसकी अवधि और अधिक बढ़ने की संभावना के बीच अधिक स्टॉक की व्यवस्था करते हैं या नहीं।

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