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Hindi News भारत राष्ट्रीय कोरोना वायरस का टीका विकसित करने में जुटे भारतीय वैज्ञानिक

कोरोना वायरस का टीका विकसित करने में जुटे भारतीय वैज्ञानिक

दुनिया को तबाह करने वाले कोरोनावायरस के खिलाफ निर्णायक जंग छेड़ते हुए भारतीय वैज्ञानिक इसका टीका (वैक्सीन) विकसित करने में दिन-रात जुटे हुए हैं।

<p>Indian scientists involved in developing Coronavirus...- India TV Hindi Image Source : AP Indian scientists involved in developing Coronavirus vaccine

नई दिल्ली | दुनिया को तबाह करने वाले कोरोनावायरस के खिलाफ निर्णायक जंग छेड़ते हुए भारतीय वैज्ञानिक इसका टीका (वैक्सीन) विकसित करने में दिन-रात जुटे हुए हैं। टीका विकसित करने वाली भारत की सर्वोच्च संस्था नेशनल इंस्टीस्ट्यूट आफ इम्यूनोलोजी (एनआईआई) ने इस चुनौतीपूर्ण प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए टॉप टेन वैज्ञानिकों की टीम बनाई है। जीवनरक्षक कई टीकों के विकास में योगदान देने वाले एनआईआई के डायरेक्टर डा. अमूल्य के पांडा ने कहा, "यह मेरे करियर की सबसे कठिन चुनौती है। हमलोग इस खतरनाक वायरस बीमारी का हल खोजने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। टीका विकसित करने का काम शुरू हो चुका है।"

पांडा की टीम इससे पहले कैंसर का टीका विकसित कर चुकी है जिसका ट्रायल चेन्नई में अंतिम चरण में है। एनआईआई ने इससे पहले लेप्रोसी और टीबी का टीका विकसित किया था जिसकी दुनिया भर में सराहना हो चुकी है। एनआईआई का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और यह इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के संरक्षण में काम करती है। इसके साथ ही यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ मिलकर काम करती है।

कोविड-19 के टीके के विकास संबंधी पहली बार खुलासा करते हुए पांडा ने आईएएनएस से कहा, "एक कोर टीम बनाई गई है जिसमें विभिन्न फील्ड के विशेषज्ञों को शामिल किया गया है। वे टीके का विकास करने के लिए एक कांप्रिहेंसिव रिसर्च करेंगे। एनआईआई देश सेवा के लिए समर्पित है और संकट की घड़ी में दिन-रात जुटी हुई है।" कोविड-19 के उपचार के लिए टीका या दवा के विकास की बात हो या दवा की तरह क्लोरोक्वीन, वैज्ञानिक जुटे हुए हैं।

आईआईटी चेन्नई से एम.टेक और आईआईटी दिल्ली से डाक्टरेट डा. पांडा ने कहा, "भारत में वायरस से संक्रमित कई लोग ठीक हो गए हैं। हम देखेंगे कि उनके एंटीबाडी ने किस तरह वायरस का मुकाबला किया। इसी तरह हम वायरस के प्रकार को भी देखेंगे। यह भी हो सकता है कि जर्मनी या इटली या चीन से आने वाले भिन्न स्ट्रेन हो। इस वक्त इन सभी चीजों को बताना मुश्किल है।"

कोरोनावायरस के विचित्र व्यवहार के संदर्भ में डा. पांडा ने कहा, "ज्यादातर वायरस की संरचना फिक्स होती है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि कोरोनावायरस अपनी संरचना तेजी से बार-बार बदलती है और इस तरह उसको लक्ष्य कर टीका विकसित करना आसान नहीं है। यह पोलियो वायरस की तरह नहीं है जिसमें लक्षित टीका वर्षो तक काम करती है। कोरोना का टीका विकसित करना चैलेजिंग है इसमें कुछ वक्त लगेगा। हमें इस काम में आईसीएमआर और अन्य सरकारी संस्थानों से सहयोग मिल रहा है।"

उन्होंने कहा, "जब हम टीका विकसित करते हैं तो यह तीन चरणों से गुजरता है। जब यह बनकर तैयार हो जाता है तो पहले चूहे पर इसका परीक्षण किया जाता है, फिर खरगोश पर और फिर बंदर पर। इसके बाद अंतिम चरण में मानव पर इसका परीक्षण किया जाता है।"

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