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Hindi News भारत राष्ट्रीय मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुशील चंद्रा ने संसद में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व को लेकर निराशा जताई

मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुशील चंद्रा ने संसद में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व को लेकर निराशा जताई

संसदीय कार्यवाही में व्यवधान के मुद्दे पर, सीईसी सुशील चंद्रा ने कहा कि जोरदार बहस और चर्चा एक मजबूत संसद के मापदंड हैं, लेकिन बार-बार व्यवधान पैदा करना, बहिर्गमन और भूख हड़ताल कतई मापदंड नहीं हैं।

Sushil Chandra, Chief Election Commissioner (CEC) - India TV Hindi Image Source : PTI FILE PHOTO Sushil Chandra, Chief Election Commissioner (CEC) 

Highlights

  • सभी पांच राज्यों में लिंग अनुपात में वृद्धि हुई है- सुशील चंद्रा
  • संसद की कार्यवाही के दौरान व्यवधानों के कारण समय बर्बाद होने पर भी चिंता व्यक्त की
  • चंद्रा ने बताया कि स्थानीय निकायों में, संविधान महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की गारंटी देता है

नयी दिल्ली: मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) सुशील चंद्रा ने संसद में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व को लेकर शनिवार को निराशा जताई। साथ ही उन्होंने हाल के वर्षों में महिलाओं के बड़ी संख्या में मतदान करने के लिए आगे आने की ओर भी इशारा किया। उन्होंने संसद की कार्यवाही के दौरान व्यवधानों के कारण समय बर्बाद होने पर भी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।

‘संसद रत्न’ पुरस्कार देने के लिए यहां आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सुशील चंद्रा ने कहा कि पहली लोकसभा में 15 महिला सांसद थीं और 17वीं लोकसभा में 78 महिला सांसद हैं। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन प्रगति अभी भी धीमी है, यह सच है, संसद को बहुत समावेशी होना चाहिए।’’ चंद्रा ने बताया कि स्थानीय निकायों में, संविधान महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की गारंटी देता है। उन्होंने कहा कि कई जमीनी स्तर की महिला नेताओं ने अपने नेतृत्व गुणों का प्रदर्शन किया है और वे अपने समुदायों में स्पष्ट परिवर्तन लाई हैं। उन्होंने सांसदों और लोगों के बीच संपर्क बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया।

संसदीय कार्यवाही में व्यवधान के मुद्दे पर, चंद्रा ने कहा कि जोरदार बहस और चर्चा एक मजबूत संसद के मापदंड हैं, लेकिन बार-बार व्यवधान पैदा करना, बहिर्गमन और भूख हड़ताल कतई मापदंड नहीं हैं। चंद्रा ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि व्यवधानों के कारण संसद की कार्यवाही का काफी समय बर्बाद हो जाता है और यह मजबूत संसदीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘संसद की कार्यवाही में भाग लेना, प्रश्नकाल और शून्यकाल के आधार पर महत्वपूर्ण मामलों को उठाना स्थापित संसदीय प्रथाएं हैं, इस बहुमूल्य अवसर को नारेबाजी करके या आसन के निकट आकर हंगामा करके बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए।’’ चुनावों में महिलाओं की भागीदारी पर उन्होंने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब और मणिपुर में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के आंकड़े साझा किए। उन्होंने कहा कि पांच में से चार राज्यों- गोवा, उत्तराखंड, मणिपुर और उत्तर प्रदेश में महिला मतदाताओं ने पुरुष मतदाताओं से अधिक मतदान किया है और पंजाब में यह लगभग बराबर है। उन्होंने कहा कि सभी पांच राज्यों में लिंग अनुपात में वृद्धि हुई है।

उन्होंने कहा कि अकेले उत्तर प्रदेश में यह 29 अंक बढ़ा है। भारतीय चुनाव प्रणाली का विवरण देते हुए उन्होंने कहा कि देश में 1951 में प्रथम लोकसभा चुनाव के दौरान 17.3 करोड़ मतदाता थे और लगभग 45.6 प्रतिशत मतदान हुआ था। उन्होंने कहा कि 2019 के संसदीय चुनावों के दौरान, मतदाताओं की संख्या लगभग 91.2 करोड़ थी और 66.4 मतदान प्रतिशत हुआ था। चंद्रा ने कहा, ‘‘आज की स्थिति में 95.3 करोड़ से अधिक मतदाता हैं, जिनमें 49.04 करोड़ पुरुष और 46.09 करोड़ महिलाएं हैं।’’

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