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किसान आंदोलन: दिग्गज नेता अरुण जेटली की कमी सबसे ज्यादा महसूस कर रही है बीजेपी

कृषि कानूनों को लेकर जारी आंदोलन के बीच बीजेपी अपने संकटमोचक नेता अरूण जेटली को मिस कर रही है। साल 2014 में सत्ता संभालने के एक साल बाद हीं 2015 में मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के बाद मोदी सरकार पर "किसान विरोधी" का ठप्पा लगाया गया था।

Farmers Protest: BJP badly missing Arun Jaitley- India TV Hindi Image Source : FILE कृषि कानूनों को लेकर जारी आंदोलन के बीच बीजेपी अपने संकटमोचक नेता अरूण जेटली को मिस कर रही है। 

नई दिल्ली: कृषि कानूनों को लेकर जारी आंदोलन के बीच बीजेपी अपने संकटमोचक नेता अरूण जेटली को मिस कर रही है। साल 2014 में सत्ता संभालने के एक साल बाद हीं 2015 में मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के बाद मोदी सरकार पर "किसान विरोधी" का ठप्पा लगाया गया था। विपक्षी नेता संसद के अंदर और संसद के बाहर यह प्रचारित करने में जुटी थी कि मोदी सरकार, किसानों की जमीन हड़पकर पूंजीपतियों को देने के लिए यह अध्यादेश लाई है। जंतर मंतर पर प्रदर्शन का दौर भी शुरू हो गया था। तब पार्टी और सरकार की तरफ से मोर्चा संभाला अरूण जेटली ने।

एक ओर अरूण जेटली ने जहां संसद में अलग-अलग दलों के नेताओं को समझाने की कोशिश की वहीं किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से लंबी बैठकें कर उनका पक्ष समझा और अपनी बात समझाई। मीडिया के मार्फत देश को भी अपडेट करते रहे। बैठक में सरकार की तरफ से अरूण जेटली अकेले मोर्चा संभालते थे और दूसरी तरफ कई किसान संगठनों के प्रतिनिधि होते थे। जेटली इस बात के लिए खासे सतर्क रहते थे कि तर्क से पूरी बात समझाने और समझने के बावजूद कटुता ना आए।

2019 में मोदी सरकार के दुबारा सत्ता में आने के एक साल के बाद एक बार फिर से मोदी सरकार और बीजेपी पर "किसान विरोधी" का ठप्पा लगाया जा रहा है। सरकार और किसान संगठनों के बीच मैराथन बैठकें भी बेनतीजा रही हैं और बीजेपी ने किसान विरोधी छवि को काउंटर करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। 

पंजाब, पश्चिम यूपी और ब्रज क्षेत्र और हरियाणा में पंचायत स्तर पर पार्टी का आक्रामक प्रचार अभियान चलाया जा रहा है लेकिन अभियान में शामिल बीजेपी नेता बार बार इस कमी को बता रहे हैं --"काश! संकटमोचक अरूण जेटली जी होते।"

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