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Hindi News लाइफस्टाइल सैर-सपाटा BLOG: मैक्लॉडगंज ...जहां बाहें फैलाकर स्वागत कर रही है हिमाचल की वादियां, बादल और आपके अपने पहाड़

BLOG: मैक्लॉडगंज ...जहां बाहें फैलाकर स्वागत कर रही है हिमाचल की वादियां, बादल और आपके अपने पहाड़

मैं अलसाई...अधखुली आँखों से हिमाचल की खूबसूरती अपने अंदर समेटने की नाकाम कोशिश कर रहा था... गाड़ी से उतरते ही ठण्ड हवा के झोकों ने मुझे कांपने को मज़बूर कर दिया... ऐसा लग रहा था जैसे ये हवाएं भी किसी अनजाने रेस का हिस्सा हो...

<p><span style="color: #333333; font-family: sans-serif,...- India TV Hindi मैक्लॉडगंज

प्रशांत तिवारी

नई दिल्ली: मैक्लॉडगंज..आपने नाम तो सुना ही होगा। हिमालय की वादियों में बसा एक छोटा पर बहुत ही खूबसूरत शहर। धर्मशाला से 9 किलोमीटर ऊपर और अगर गूगल की माने तो दिल्ली से लगभग 500 किलोमीटर दूर जिसे बस से तय करने में लगते है लगभग 10 या 11 घंटे। इससे पहले मैं आपको मैक्लॉडगंज के बारे में ऐसी कुछ दिलचस्प बातें बताऊंगा जिसको बिना जाने इस यात्रा की शुरुआत हो ही नहीं सकती।

मैक्लॉडगंज का नाम सर 'डोनाल्ड फ्रील मैक्लॉड' के नाम पर रखा गया जो कि पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे। 'गंज' हिंदी का शब्द है जिसका सामान्य अर्थ "पड़ोस" होता है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचाई 2,082 मीटर (6,831 फीट) है और यह धौलाधार पर्वतश्रेणी में स्थित है। चलिए आपको लेकर चलते हैं उस वादियों के सफर पर जहां से मैं लौट आया हूं लेकिन अब भी मेरे ज़हन में इन वादियों की खूबसूरती अटकी पड़ी हैं। वापस आने का तो मन नहीं था पर मज़बूरी थी वापस आना ही पड़ा। लेकिन चलिए आपको लेकर चलते हैं एक खूबसूरत सफर पर। जहां से मैं लौट तो आया पर आज जब भी मुझे वक़्त मिलता है तो हर शाम मेरा दिमाग वहीं पहुंच जाता है उस खूबसूरत यादों के सफर में। आइये आप भी चलिए।

कैसे पहुंचे मैक्लॉडगंज

उस दिन बुधवार था और मेरे पास सिर्फ तीन दिन की छुट्टियां और इस भीड़-भाड़ से भागना मेरी सिर्फ एक छोटी सी ख्वाहिश थी, बस का टिकट भी मिल गया रात 10 बजे का मैंने बैग उठाया और निकल पड़ा। 

मैक्लोडगंज पहुंचने के लिए आपको दिल्ली ISBT से धर्मशाला की वॉल्वो बस ले सकते हैं। जिसका किराया ज़्यादा से ज़्यादा 1000 रुपये हैं और करीब 10 से 11 घंटे की यात्रा। 

मेरी बस रात 11 बजे दिल्ली के ISBT बस अड्डे से हिमाचल के लिए रवाना हुई। आप चाहे तो प्राइवेट बस भी ले सकते हैं जिसके लिए आपको ऑनलाइन बुकिंग करानी आती हैं और वो बस 'मजनू का टीला' पर मिलती है।

हाँ एक बात और जब आप रात की वॉल्वो बस से यात्रा कर रहे हैं तो कोशिश करिये की डिनर करके ही बस पर बैठे क्योंकि बस जिन ढाबों या होटल पर रात को खाने के लिए रूकती हैं वहां का खाना, महंगा होने के साथ-साथ टेस्टलेस होता है। यानि आपको इन ढाबा पर खाकर आपको बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा इसलिए कोशिश करें अपने साथ कुछ खाना का सामान रख लें या तो खा कर ही बस पर बैठें।

मैक्लॉडगंज

इस जगह की यात्रा करने से पहले मैंने काफी रिसर्च कर लिया था तो ऐसे में मैंने भी खाना खा कर बस में बैठना ज्यादा बेहतर समझा। क्योंकि मैंने खाना खा लिया था तो इसलिए बस में बैठते ही सो गया जब सुबह करीब 10 बजे मेरी नींद खुली तो मैं पहाड़ों के बीच अपनी मंजिल धर्मशाला पहुंच चुका था और वहां से मैक्लॉडगंज की दुरी सिर्फ 9 किलोमीटर थी। जिसको तय करने के लिए टैक्सी स्टैंड से गाड़ी ली जिसकी कीमत 250 रुपये निर्धारित थी और मैंने टैक्सी ली और फिर 20 मिनट में अपनी मंजिल तक पहंच गया।

Himachal Pradesh

सच बोलूं तो जब मैं अपनी मंजिल पर पहुंचा तो मैं अलसाई आँखों से हिमाचल की खूबसूरती अपने अंदर समेटने की नाकाम कोशिश कर रहा था। गाड़ी से उतरते ही ठण्ड हवा के झोके ने मुझे एक पल के लिए कपकंपा दिया, दिल्ली की भीषण गर्मी को झेलने के बाद हिमाचल की ठंडी हवाओं में मेरी हालत ऐसी थी जैसे इन हवाओं के आपसी रेस में मैं इनका हिस्सा बन गया था। इससे आप ये अंदाजा लगा सकते हैं कि ठंड से मेरी कितनी हालत खराब हो गई थी।

होटल की तलाश

खैर मैक्लॉडगंज पहुंचने के बाद मुझे तलाश थी एक अच्छे से होटल की जहां मैं आराम से बैठ सकूं क्योंकि मैंने होटल की बुकिंग नहीं कराई थी आप लोग चाहे तो करा सकते हैं। पर मुझे लगता हैं खुद जा कर होटल लेने पर थोड़े पैसे बच जाते हैं पर कभी-कभी आपको ऑनलाइन डील्स भी अच्छी मिल जाती है। होटल खोजता इससे पहले मैं एक ओपेन रेस्ट्रां में ब्रेकफास्ट करने के लिए बैठ गया।

एक तरफ हवाओं की रेस मुझे ज़बरदस्त ठण्ड का एहसास करा रही थी पर वही दूसरी ओर सूरज की रोशनी ठंडक में सुकून का एहसास करा रही थी और वहां से दिखाई देते चीड़, देवदार और पहाड़ी पेड़ उन वादियों को इस तरह सजा रही थी जैसे मोर को खूबसूरत बनाते उसके पंख। मैंने ब्रेकफास्ट में बनाना पैनकेक, तिब्बती चाय आर्डर की। ब्रेकफास्ट ख़त्म करने के बाद मैंने होटल लिया। यहाँ पर होटल के कमरे आपको 500 से लेकर 5000 से ज्यादा तक के मिल सकते हैं। 

Best places to visit in McLeodganj

...लेकिन मैं आपको सलाह दूंगा की जब आप वहां जाए तो अपना होटल 'नदी व्यू पॉइंट' पर ले क्योंकि वहां से पहाड़ और बादल के मिलन का ऐसा नज़ारा देखने को मिलेगा कि आप खुद ही कह उठेंगे कि मोहब्बत भी बिल्कुल इन बादलों सी होनी चाहिए। पता हैं उन्हें, कि नहीं समझेंगे 'मोहब्बत' को ये पथरीले पहाड़... फिर भी उन्हें अपने आगोश में ऐसे समेटने की कोशिश करती हैं की 'बस अब जैसा भी हैं ये मेरा हैं' और ठंडी हवाएं बादलों को पहाड़ से अलग करने की जद्दोजहद में हर वक़्त लगे रहते हैं। हवा-बादल की इस अनकहे जंग में  पहाड़  बहुत ही खूबसूरत नज़र आता हैं और उस पर गिरी बर्फ वादियों में चार चाँद लगाने के लिए काफी हैं।

..अगर मैं अपने अंदाज में कहूं तो  मैक्लॉडगंज- खूबसूरती, क्रांति और संस्कृति का एक ऐसा अनोखा संगम हैं जिसे देखने बार-बार जाया जा सकता हैं। इन खूबसूरत वादियों में तिब्बती संस्कृति का जो स्वरुप देखने को मिला वो वाकई में एक सुखद एहसास था। फिर उसी संस्कृति से जन्मी क्रांति जो वापस अपने वतन जाने की चाह में सदियों से इंतज़ार कर रहे तिब्बती लोगों की एक और सिर्फ एकलौती ख्वाहिश हैं कि आखिरी सांस अपनी सरजमीं पर ले। 

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ये बात वहां रह रहे एक बुजुर्ग तिब्बती ने बड़े ही सर्द लहजे में कही थी। चारों तरफ 'फ्री तिब्बत" के स्लोगन वाले पोस्टर, वाल पेंंट खुद में संघर्ष की दास्ताँ सुना रहे थे। अगर आपको एक क्रांति और तिब्बत की संस्कृति की झलक देखनी हैं तो मैक्लॉडगंज एक सबसे बेहतर जगह है।

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मैं भी कहां आपको इतिहास और फिलॉस्फी की बाते बताने लगा, चलिए अब आपको उन खास जगहों के बारे में बताते हैं जहा आप घूम सकते हैं।

त्रिउंड ट्रेक

धौलाधार पर्वत की तलहटी पर बसा यह क्षेत्र लगभग 2,828 मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ है। त्रिउंड जाने के लिए मार्च से जून और सितंबर से दिसंबर का समय उपयुक्त है।

Tsuglag Khang: मंदिर में अध्यात्मिक प्रार्थना होती है।

हिमाचल की हवाओं में पैराग्लाइडिंग

Bhagsu Waterfall: इस जगह घूमने जाएं तो थोड़ा ट्रेक करके झरने के ऊपर जाएं वहा आपको असीम शांति, खूबसूरत नज़ारा और सुकून मिलेगा।

St. John चर्च: ये चर्च बेहद ख़ूबसूरत है। 1852 में बना ये चर्च Lord Elgin के समय में बना था। Lord Elgin भारत के गवर्नर जनरल थे।

डल लेक 

नदी व्यू पॉइंट : बाकी वादियों में आप जहा बैठेंगे आपको वहा अच्छा लगेगा। लेकिन इस जगह आपको वो सुकून मिलेगा जिसकी तलाश में आप आये हैं। यहां आप रुकिए और आराम करिये। बाकी आप खुद किसी नए पॉइंट कि खोज करियेगा और उसे एक नाम ज़रूर दीजियेगा। बहुत कुछ हैं वहा देखने के लिए लेकिन सबसे जरूरी है आपका खूबसूरत नजरिया।(Monsoon Trip: इस मौसम कहीं घूमने का कर रहे हैं प्लान तो नेपाल की इन जगहों से बेहतर कुछ नहीं हो सकता)

घूमने के बाद मैक्लॉडगंज में क्या खाएं

यह जगह खाने के लिए बहुत अच्छी है आप जिमी इटैलियन किचेन में जाकर वहा का पिज़्ज़ा ज़रूर खाइयेगा। मोमोस , मैगी, पैनकेक, तिब्बती खाना, तिब्बती  चाय के अलावा कहवा भी ट्राई कर सकते हैं।

शॉपिंग: शॉपिंग के लिए भी ये एक बेहतर जगह है। यहां आपको काफी हैंडमेड ज़रूरत की चीज़े मिल जाएंगी जिसे आप किसी को तोहफा भी दे सकते हैं और खुद के इस्तेमाल के लिए भी बहुत कुछ खरीद सकते हैं। स्वेटर, जैकेट, वूलेन शाल, और भी बहुत कुछ।(देहरादून जाने का है प्लान, तो न भूलें इन जगहों पर जाना)

जब आप वापस लौट रहे होंगे तो आपके पास ढेर सारी यादों के साथ कई ऐसी अनकही कहानियां ज़हन में दफ़्न हो जाएगी जिसे आप बताना तो चाहेंगे पर किसी से कुछ कह नहीं पाएंगे। शायद आपको अंत में मोहब्बत हो जायेगी कुछ वक़्त के लिए उन हसीन वादियों से जिसके चाहत में रहकर आप अपनी सारी उम्र बिता देने की ख्वाहिश रखते हैं। लेकिन आपको, हमको और हम सभी लोगो को पता है कि इस ज़िन्दगी में ख्वाब और ख्वाहिश बहुत कम ही पूरी हो पाती है और मैं भी अपना अधूरा ख़्वाब और ख्वाहिश लिए अपना बैग कंधे पर लटकाये अनमने भाव से लौट रहा था। वादियों कि हवाएं जो पहले मुझे कभी किसी रेस का हिस्सा लगी थी, लौटते वक़्त अपने ठन्डे-ठन्डे झोके से वादियों कि आवाज़ बन मुझसे कह रही थी 'फिर आना मुझे तुम्हारा इंतज़ार रहेगा' और मैं एक हारे हुए आशिक़ की तरह वापस लौट रहा था, अपनी उसी उलझन भरी दुनिया में।(लड़कियों में सोलो ट्रेवलिंग का बढ़ रहा है क्रेज, आप भी कर रहे हैं प्लान तो जेनिफर मोरिस के इन टिप्स को करें फॉलो)

यात्राओं का सिलसिला अभी रुका नहीं हैं आगे भी हैं अभी ढेर सारी कहानियां।।

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