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Hindi News मध्य-प्रदेश MP News: क्या मिट जाएगा 'महाशीर मछलियों' का वजूद? जानें लगातार घटती इनकी संख्या के पीछे क्या है वजह

MP News: क्या मिट जाएगा 'महाशीर मछलियों' का वजूद? जानें लगातार घटती इनकी संख्या के पीछे क्या है वजह

MP News: अमरकंटक से निकलकर खंभात की खाड़ी में गिरने वाली नर्मदा नदी पर गत दशकों में अलग-अलग बांध बनने के बाद इसके पानी के प्राकृतिक बहाव में रुकावट आई है, जिससे मध्य प्रदेश की राजकीय मछली ‘महाशीर’ के वजूद पर खतरा बढ़ता जा रहा है।

Mahaseer- India TV Hindi Image Source : TWITTER Mahaseer

MP News: अमरकंटक से निकलकर खंभात की खाड़ी में गिरने वाली नर्मदा नदी पर गत दशकों में अलग-अलग बांध बनने के बाद इसके पानी के प्राकृतिक बहाव में रुकावट आई है, जिससे मध्य प्रदेश की राजकीय मछली ‘महाशीर’ के वजूद पर खतरा बढ़ता जा रहा है। इसकी सुध लेते हुए राज्य सरकार ने घोषणा की है कि वह साफ और बहते पानी की मछली महाशीर को बचाने के लिए अगले महीने से बड़ा अभियान शुरू करने जा रही है। इस मछली के संरक्षण के लिए वन विभाग के साथ मिलकर दो दशक से काम कर रहीं मत्स्य पालन विशेषज्ञ डॉ. श्रीपर्णा सक्सेना ने रविवार को पीटीआई-भाषा को बताया कि वर्ष 1964 के दौरान किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला था कि तब नर्मदा की हर 100 मछलियों में से 25 महाशीर होती थीं, लेकिन गत दशकों में नर्मदा और इसकी सहायक नदियों पर कई बांध बनने से जल प्रवाह में रुकावट और मानवीय दखलंदाजी से प्राकृतिक बसाहट प्रभावित हुआ है, जिससे नर्मदा में महाशीर की तादाद घटते-घटते अब एक प्रतिशत से भी कम रह गई है।

छह महीने में एक महाशीर नजर आती है

सक्सेना ने बताया,‘‘नर्मदा तट पर बसे मछुआरों का कहना है कि उनकी किस्मत अच्छी रही, तो उन्हें बड़ी मुश्किल से छह महीने में एक महाशीर नजर आती है।’’ अधिकारियों ने बताया कि मध्यप्रदेश में नर्मदा पर बने बड़े बांधों में बरगी, इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर और महेश्वर की परियोजनाएं शामिल हैं, जबकि गुजरात में इस नदी पर सरदार सरोवर बांध बनाया गया है। नर्मदा की सहायक नदियों पर भी अलग-अलग बांध बनाए गए हैं। इन बांधों से महाशीर के वजूद पर संकट के बारे में पूछे जाने पर राज्य के मछुआ कल्याण और मत्स्य विकास विभाग की प्रमुख सचिव कल्पना श्रीवास्तव ने कहा,‘‘बांध भी जरूरी हैं और महाशीर भी जरूरी है।’’ उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री मत्स्य विकास योजना के तहत सूबे में महाशीर का कुनबा बढ़ाने का कार्यक्रम अगले महीने से शुरू होने जा रहा है।

'महाशीर' का होना सबूत होता है कि पानी शुद्ध है

श्रीवास्तव ने उम्मीद जताई कि इस कार्यक्रम से अगले दो साल में महाशीर की तादाद में बड़ा इजाफा होगा। प्रदेश मत्स्य महासंघ के प्रबंध निदेशक पुरुषोत्तम धीमान ने बताया कि इस कार्यक्रम के तहत देनवा, तवा और नर्मदा की अन्य सहायक नदियों में महाशीर के बीज डाले जाएंगे। उन्होंने कहा,‘‘जैव विविधता के लिहाज से नर्मदा में महाशीर का होना बेहद जरूरी है। चूंकि महाशीर साफ पानी की मछली है। लिहाजा इस मछली का किसी नदी में होना अपने आप में सबूत होता है कि इसका पानी शुद्ध है।’’ 

मछुआरों को दिया गया ये निर्देश 

धीमान ने बताया कि राज्य में महाशीर के संरक्षण के कदमों के तहत मछुआरों को ताकीद की गई है कि अगर यह मछली उनके जाल में फंसती भी है, तो वे इसे पानी में जीवित हालत में छोड़ दें। गौरतलब है कि महाशीर को अपने डील-डौल और मछुआरों के कांटे में फंसने के बाद आजाद होने के लिए दिखाए जाने वाले गजब के साहस के कारण ‘‘पानी का बाघ’’ भी कहा जाता है। महाशीर संरक्षण के लिए काम कर रहीं सक्सेना ने बताया,‘‘हमें धार जिले के खलघाट में नर्मदा में 2017 के दौरान पांच फुट चार इंच लम्बी महाशीर मिली थी जिसका वजन करीब 17 किलोग्राम था। इसके बाद हमें इतनी बड़ी मछली आज तक देखने को नहीं मिली है।’’