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मकान खरीदारों के हितों और अधिकारों की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय में दायर की गई याचिका

रियल एस्टेट फर्मों को दिवालिया घोषित करने के लिए कार्यवाही शुरू होने पर लाखों मकान खरीदारों के हितों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है।

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नई दिल्ली बैंकों और वित्‍तीय संस्थाओं द्वारा रियल एस्टेट फर्मों को दिवालिया घोषित करने के लिए कार्यवाही शुरू होने पर लाखों मकान खरीदारों के अधिकारों और वित्‍तीय हितों की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय में एक नयी जनहित याचिका दायर की गयी है। यह जनहित याचिका वकील विवेक नारायण शर्मा ने दायर की है। याचिका में दावा किया गया है कि नई दिवाला संहिता, 2016 में वित्‍तीय लेनदारों या सक्रिय लेनदारों की परिभाषा में मकान खरीदारों को शामिल नहीं किया गया है परंतु उन्हें लेनदारों की सूची में सबसे अंत में रखा गया है जिनके दावों का निबटारा दिवालिया घोषित करने की कार्यवाही के दौरान किया जाएगा।

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प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ इस याचिका पर छह अक्‍टूबर को सुनवाई करेगी। इस पीठ के समक्ष ही रियल एस्टेट कंपनियों यूनिटेक, सुपरटेक और आम्रपाली के खिलाफ अनेक याचिकाएं पहले से ही लंबित हैं।  इस याचिका में दिवाला संहिता के कुछ प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने के साथ ही यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है कि जिन मकान खरीदारों को अपने सपनों के घर का कब्जा नहीं मिला है, वे भी ऐसी रियल एस्टेट कंपनी के खिलाफ कॉरपोरेट दिवाला प्रस्ताव प्रक्रिया शुरू करने की पात्रता रखते हैं।

इसमें यह भी कहा गया है कि मकान खरीदारों की हिमायत करने वाले कानून रेरा के प्रावधानों को इस संहिता द्वारा सीमित नहीं किया जाना चाहिए। इस समय रियल एस्टेट कंपनी के खिलाफ दिवालिया घोषित करने की कार्यवाही शुरू होने के साथ ही अदालतों और उपभोक्ता मंच के आदेश निष्प्रभावी हो जाते हैं क्योंकि उन पर अमल नहीं किया जा सकता है। यही नहीं, ऐसी कंपनी के खिलाफ मकान खरीदार कोई नया मामला भी नहीं ला सकते हैं।

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याचिका में रियल एस्टेट फर्मों का फॉरेन्सिक आडिट करा कर मकान खरीदारों के योगदान का पता लगाने और उनके द्वारा निवेश किये गए धन की रक्षा करने का भी अनुरोध किया गया है।

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