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ऑस्ट्रेलिया में हर 5 में से 1 बच्चा रहता है भूखा, कागज चबाने को मजबूर!

7 साल की एक ऐसी बच्ची का भी केस सामने आया जो 5 दिन से भूखी थी…

Thousands of children who go to bed hungry in Australia | Pixabay Representative Image- India TV Hindi Thousands of children who go to bed hungry in Australia | Pixabay Representative Image

कैनबरा: ऑस्ट्रेलिया से एक ऐसी खबर सामने आई है जिसपर एकबारगी यकीन ही नहीं होता। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस विकसित मुल्क में गरीबी की वजह से बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।  बीते 12 महीनों में ऑस्ट्रेलियाई बच्चों में से 20 फीसदी से ज्यादा बच्चे भूखे रह रहे हैं। पिछले एक साल में हर 5 में से 1 ऑस्ट्रेलियाई बच्चा भूखा रहा, यहां तक कि बच्चे भूख लगने पर कागज चबाने को मजबूर हो रहे हैं। abc.net.au की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते 12 महीनों में हर 5 में से एक ऑस्ट्रलियाई बच्चा भूखा रहा है। फूडबैंक की रिपोर्ट कहती है कि बीते साल 5 में से 1 बच्चे को कई स्थितियों में भूखा रहना पड़ा। इसमें से 18 फीसदी को सप्ताह में कम से कम एक बार बिना नाश्ते के स्कूल जाना पड़ा।

इसी तरह 11 फीसदी को सप्ताह में कम से कम एक बार रात में बिना भोजन किए सोना पड़ा। रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 9 फीसदी को सप्ताह में कम से कम एक दिन पूरा दिन बगैर भोजन के गुजारना पड़ा। करीब 29 फीसदी माता-पिता अक्सर बिना खाए रह जाते हैं, जिससे उनके बच्चों को भोजन मिल सके। फूडबैंक द्वारा 1,000 माता-पिता के सर्वेक्षण में पाया गया कि 15 साल से कम उम्र के ऑस्ट्रेलियाई बच्चों का 22 फीसदी ऐसे परिवार में रहते हैं, जो बीते 12 महीनों में कभी न कभी खाने से वंचित रहे। फूडबैंक विक्टोरिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डाव मैकनामारा ने ऑस्ट्रेलियाई ब्रॉडक्रास्टिंग कॉरपोरेशन से कहा, ‘मेरा मानना है कि एक समाज के तौर यह हमारे लिए बहुत दुखद है।’

उन्होंने कहा, ‘हमारे समुदाय में सबसे कमजोर-हमारे बच्चे, हमारा भविष्य-पीड़ित है और मुझे नहीं लगता कि यह सही है, कोई भी इसे सही नहीं ठहरा सकता है।’ सर्वेक्षण में पाया गया है कि वयस्कों की तुलना में बच्चों के बिना भोजन रहने की संभावना अधिक रही। लेकिन 29 फीसदी माता-पिता ने कहा कि वे हफ्ते में कम से कम एक बार बिना भोजन के रहे, जिससे उनके बच्चे खाना खा सकें। मैकनामारा ने कहा, ‘कुछ बच्चे कागज खा रहे हैं। उनके माता-पिता ने उनसे कहा है कि पर्याप्त भोजन नहीं है और यदि आपको भूख लगती है तो आपको कागज चबाना होगा।’

रिपोर्ट में कहा गया है कि जीवनयापन लागत की वजह से माता-पिता को अपने बच्चों को खिलाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। जिलांग फूड रिलीफ सेंटर के मुख्य कार्यकारी कोलिन पीबल्स ने कहा कि बीते 3 सालों से सेवाओं की मांग बढ़ गई है। पीबल्स ने कहा, ‘हाल ही में हमारे पास गुरुवार की दोपहर फुडबैंक में एक 7 साल की लड़की आई, उसने बीते पांच दिनों से कुछ नहीं खाया था।’

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