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Hindi News विदेश अन्य देश Global Warming: 7 साल बाद हर गर्मियों में आर्कटिक महासागर से लुप्त हो जाएगी बर्फ, वैज्ञानिकों ने बताई ये वजह

Global Warming: 7 साल बाद हर गर्मियों में आर्कटिक महासागर से लुप्त हो जाएगी बर्फ, वैज्ञानिकों ने बताई ये वजह

नई जांच रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का असर यह है कि उत्तरी गोलार्ध में स्थित आर्कटिक महासागर में 2030 से हर गर्मियों में जो बर्फ अभी ग्लेशियर के रूप में तैरती दिखाई देती है, वह भी गायब हो जाएगी।

7 साल बाद हर गर्मियों में आर्कटिक महासागर से लुप्त हो जाएगी बर्फ, वैज्ञानिकों ने बताई ये वजह- India TV Hindi Image Source : FILE 7 साल बाद हर गर्मियों में आर्कटिक महासागर से लुप्त हो जाएगी बर्फ, वैज्ञानिकों ने बताई ये वजह

Global Warming: ग्लोबल वार्मिंग के कारण पूरी दुनिया के मौसम पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। जहां बारिश होती थी, वहां तेज गर्मी पड़ रही है और जहां बारिश नहीं होती थी, वहां बाढ़ आ रही है। यूरोपीय देशों में तो हीटवेव ने हाहाकार मचा रखा है। ऐसे में कई जलवायु सम्मेलनों में भी ग्लोबल वार्मिंग की चिंता जताई गई है। लेकिन कोई असर नहीं पड़ा है। इसी बीच एक नई जांच रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का असर यह है कि उत्तरी गोलार्ध में स्थित आर्कटिक महासागर में 2030 से हर गर्मियों में जो बर्फ अभी ग्लेशियर के रूप में तैरती दिखाई देती है, वह भी गायब हो जाएगी। 

तापमान 1.5 डिग्री तक भी रोका जाए,  तो भी तैरती बर्फ पिघलने से नहीं रोक सकते

नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पेरिस में हुई जलवायु संधि के तहत अगर ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर भी रोका जाए तब भी आर्कटिक महासागर पर तैरती बर्फ को पिघलने से नहीं रोक सकते। दक्षिण कोरिया के एक शोधकर्ता और लेखक सेउंग की मिन ने बताया कि पर्माफ्रॉस्ट को पिघलाकर यह ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा देगा। बर्फ के टुकड़े के पिघलने के कारण इससे ग्रीनहाउस गैस और समुद्री स्तर में बढ़ावा होगा। 

आर्कटिक को कब कहते हैं बर्फमुक्त

दरअसल, यदि आर्कटिक महासागर एक मिलियन वर्ग किलोमीटर से कम बर्फ से घिरा है या पूरे महासागर में बर्फ सात प्रतिशत से कम है तो वैज्ञानिक इसे बर्फ मुक्त कहते हैं। फरवरी में अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ 1.92 मिलियन वर्ग किलोमीटर तक गिर गई, जो अब तक के अपने सबसे निचले स्तर पर है। 1991-2020 के औसत से यह स्थिति लगभग एक मिलियन वर्ग किलोमीटर नीचे है।

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