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BREXIT: ब्रिटेन EU में रहेगा या नहीं, जनता आज करेगी फैसला

ब्रिटेनवासी आज होने वाले जनमत संग्रह में तय कर देंगे कि अब द ग्रेट ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन में रहेगा या नहीं। आपको बता दें करीब 40 साल पहले यानी 1975 में भी इसी तरह का एक जनमत संग्रह हुआ था।

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लंदन: ब्रिटेनवासी आज होने वाले जनमत संग्रह में तय कर देंगे कि अब द ग्रेट ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन में रहेगा या नहीं। आपको बता दें करीब 40 साल पहले यानी 1975 में भी इसी तरह का एक जनमत संग्रह हुआ था जिसमें ब्रिटेन के लोगों ने ईयू के साथ रहने का फैसला किया था। इस फैसले पर देश के करीब 67 फीसदी लोगों ने अपनी हामी दी थी। गौरतलब है कि अगर ब्रिटेन ईयू से अलग होता है तो मुश्किलें भारत के लिए भी कम नहीं होंगी।  

क्या है BREXIT (ब्रैग्जिट): द ग्रेट ब्रिटेन के EU से एग्जिट को ही ब्रैग्जिट कहा जा रहा है। यानी कभी दुनिया पर राज करने वाले ब्रिटेन अब ईयू की शर्तों पर नहीं बल्कि अपनी शर्तों पर चलना चाहता है और वह अपनी खोई हुई वह संप्रभुता को वापस पाना चाहता है, जिसके खोने की वह दलील देकर यूनियन से बाहर होने का तर्क दे रहा है। इसी मुद्दे पर लोग दो धड़ों में बंट चुके हैं।

लीवर्स: ये लोग ईयू से अलग होने की बात कह रहे हैं। वो नहीं चाहते कि अब ब्रिटेन ईयू का हिस्सा रहे।

रिमेनर्स: वहीं रिमेनर्स चाहते हैं कि ब्रिटेन पहले की तरह ईयू का हिस्सा बना रहे क्योंकि ऐसा आर्थिक लिहाज से बेहतर रहेगा।

क्या है ईयू:  दरअसल ईयू 28 देशों का एक ग्रुप है। जो कि इन देशों के बीच मुक्त व्यापार, अर्थव्यवस्था, तकनीक, विवाद और अन्य विषयों पर इनके बीच आपसी समन्वय कराने वाले एक नियामक के तौर पर काम करता है। इसकी अपनी एक कोर्ट और संसद है। साल 1975 में छह देशों की रोम संधि के जरिए यूरोपियन कम्युनिटी की शुरूआत हुई थी जिसमें बाद में कई यूरोपीय देश जुड़ते चले गए और यह यूरोपियन यूनियन बन गया।

ब्रिटेन की समस्या: वैसे तो ब्रिटेन ईयू का मेंबर होकर भी एक तरह से उससे अलग है, या यूं कहें कि उसे एक अलग स्टेटस मिला हुआ है। मसलन जब पूरे यूरोपियन यूनियन में यूरो प्रचलन में है तब ब्रिटेन द ग्रेट ब्रिटेन पाउंड (GBP) में लेन-देन करता है।

दुनिया के सबसे बड़े वित्तीय क्रेंद ब्रिटेन के लिए यूरोप ही सबसे अहम बाजार है। अगर वह ईयू से अलग होने का फैसला करता है को उसे वित्तीय केंद्र वाले स्टेटस को बड़ा धक्का लग सकता है। इस वजह से देश की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो सकती है और देश में बेरोजगारी में भी भारी इजाफा हो सकता है।

ब्रिटेन को करीब 9 अरब डॉलर ईयू के लिए देने पड़ते हैं जिसकी वजह से उसे तकलीफ हो रही है। ब्रिटेन ईयू से अलग होकर अपनी खोई हुई संप्रभुता और रूतबा हासिल करना चाहता है। साथ ही वह ईयू से अलग होकर उन तमाम शर्तों और नियमों से मुक्ति पा जाएगा जो ईयू ने लगा रखी हैं।

भारत पर भी असर:

अगर ब्रिटेन ईयू से अलग होता है तो भारत पर असर होना लाजिमी है, क्योंकि भारत की सैकड़ों कंपनियों ने ब्रिटेन में निवेश कर रखा है। एफडीआई के जरिए निवेश करने वाली ये कंपनियां यहां बिजनेस कर रही हैं। अगर ब्रिटेन ईयू से बाहर जाता है तो एफडीआई बाहर जा सकता है, क्योंकि अब तक जो कंपनियां यूरोपियन यूनियन (मुक्त व्यापार के जरिए आपस में सहज लेन-देन) के जरिए लेन-देन व्यापार कर रही थीं अब वह उतना आसान नहीं होगा, क्योंकि ब्रिटेन अब अपने नियम और शर्तें लागू करेगा।  

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