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दुर्गामती रिव्यू : हर बार नहीं चलेंगे तमिल के तुरुप के पत्ते, कमजोर स्क्रिप्ट ने निकाला फिल्म का दम

दुर्गामती से साबित कर दिया है कि तमिल की सुपरहिट फिल्मों के रीमेक हर बार सुपरहिट नहीं होंगे। ये बात बॉलीवुड को अब समझ जानी चाहिए।

विनीता वशिष्ठ 12 Dec 2020, 10:27:09 IST
मूवी रिव्यू:: दुर्गामती रिव्यू
Critics Rating: 2 / 5
पर्दे पर: 12/12/2020
कलाकार: भूमि पेड़नेकर
डायरेक्टर: जी अशोक
शैली: हॉरर
संगीत: यू

बतौर निर्माता अक्षय कुमार ने दुर्गामती ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज करते वक्त इसका ऐसा हश्र नहीं सोचा होगा। जी हां बात हो रही जी अशोक द्वारा निर्देशित फिल्म दुर्गामती की जिसे अक्षय कुमार और विक्रम मलहोत्रा ने मिलकर प्रोड्यूस किया है और फिल्म की हीरोइन हैं एक्सपेरिमेंटल रोल के लिए मशहूर भूमि पेडनेकर। दुर्गामती तमिल की सुपरहिट फिल्म भागमती का रीमेक जरूर रही लेकिन फिल्म का भाग्य भागमती की तरह चमकता हुआ नहीं आया। कमजोर स्क्रिप्ट ने निर्देशन की रीढ़ तोड़ दी है। एक ही कहानी में कई एंगल घुसाने के चक्कर में कहानी भी कमजोर हो गई है और क्लाईमेक्स इतना प्रेडिक्टिबल है कि आप भूमि के होते हुए भी फिल्म को कुछ ही मिनटों में भूल जाएंगे। 

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सबसे पहले बात करते हैं प्रोडक्शन के पहलू की। हालांकि अक्षय ने इस फिल्म के हर एंगल को देखा परखा होगा लेकिन कहीं तो वो चूक गए हैं। तमिल की सुपरहिट फिल्म के रीमेक लक्ष्मी में बतौर एक्टर खामियाजा उठा चुके अक्षय एक और गलती बतौर प्रोड्यूसर उठाई है जिसका नतीजा है दुर्गामती। लक्ष्मी भी सुपरहिट कंचना का रीमेक थी जिसे सफलता पूर्वक परदे पर उतारा नहीं जा सका और दुर्गामती इसी क्रम में दूसरी भूल कही जा सकती है। 

निर्देशन की बात करें तो जी अशोक पूरी तरह कंफ्यूज लगे हैं फिल्म की नैया पार लगाने में। कहानी में कई किरदार जबरदस्ती ठूंसे गए लगते हैं। ओवरएक्टिंग, लाउड और एवरेज दृश्य फिल्म को कमजोर करते हैं। फिल्म अगर हॉरर एंगल की थी तो इसमें राजनीति का एंगल घुसाने की क्या जरूरत थी, ये जी अशोक जानते होंगे। लेकिन ये बात वो दर्शकों को समझा नहीं पाए। सिनेमेटोग्राफी, संगीत जिस भी पक्ष को देखिए, सब इतने कमजोर है कि कुछ बेहतर खोज निकालने के लिए मेहनत करनी होगी। 

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अब बात करते हैं एक्टिंग की। फिल्म में यूं तो कई बड़े नाम हैं। अपने वर्सेटाइल किरदारों को लेकर अलग पहचान बना चुकी भूमि ने ये फिल्म क्यों साइन की? पहले ये सवाल उठना चाहिए। वो पूरी फिल्म में अपने किरदार के साथ न्याय नहीं कर पाईं है। वो दरअसल हॉरर सीन करती हुई जम ही नहीं रही है। उनका चिल्लाना, डरना और रौद्र रूप तक जस्टिफाई नहीं हो पा रहा है। कई सीन में ऐसा लग रहा है मानों उन्हें चिल्लाकर बोलने के लिए कैमरे के पीछे से दबाव बनाया जा रहा है। 

माही गिल का काम ठीक ठाक कहा जा सकता है हालांकि उनका रोल पूरी तरह से जमाया नहीं जा सका है। अरशद वारसी ने भी अपने किरदार के सा न्याय करने की कोशिश की है, हालांकि उनके अभिनय की रेंज काफी बड़ी है और इस लिहाज से ये फिल्म उनके लिए नहीं थी। पर फिर भी ठीक ठाक रहे वो। ओवरएक्टिंग करने में जीशु सेनगुप्ता ने कई लोगो को पीछे छोड़ दिया है। लगता है जैसे डायरेक्टर ने उन्हें खुला छोड़ दिया हो, कि कर लो जो करना है।  

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अब बात करते हैं दर्शकों की। देखिए इस बात को समझना बहुत जरूरी है कि दुर्गामती उस कड़ी की फिल्म है जिसे केवल बेचने के लिए बनाया गया है। यानी बेहद कम रकम में कैसी भी कहानी उठा लो, फिल्म कैसी बनी है, इसमें न निर्माता की रुचि है और न निर्देशक ही। यहां तक कि  सितारो को भी इसके प्लाट से कोई लेना देना नहीं है। अब फिल्म बन गई है तो ओटीटी पर बेच डालो। इस बात का रिस्क ही नहीं कि सिनेमाहाल में दर्शक कम आए तो नुकसान कैसे पूरा होगा। निर्माता तो एक बार में पैसा पा गया। अब दर्शकों को क्या मिल रहा है, इसका लेना देना किसी को नहीं है।