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Hindi News हेल्थ बच्चों में बढ़ रहा वर्चुअल ऑटिज़्म खतरनाक, दिमाग पर कर रहा वार, स्वामी रामदेव से जानिए इससे कैसे बचें?

बच्चों में बढ़ रहा वर्चुअल ऑटिज़्म खतरनाक, दिमाग पर कर रहा वार, स्वामी रामदेव से जानिए इससे कैसे बचें?

Virtual Autism In Kids: बच्चों के दिमाग पर फोन और टीवी का बुरा असर हो रहा है। ज्यादा स्क्रीन टाइम से न सिर्फ आंखें खराब हो रही हैं बल्कि बच्चों के दिमाग पर भी खतरा मंडरा रहा है। फोन और टीवी के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म बढ़ रहा है।

Virtual Autism In Kids- India TV Hindi Image Source : FREEPIK Virtual Autism In Kids

इंसान का दिमाग एक ऐसा जादुई जहाज है। जो बिना परों के उड़ सकता है। सही सोच से मुस्तकबिल बना सकता है। एक इशारे में पूरी कायनात बदल सकता है। मगर उसके लिए जरूरी है कि दिमाग का ख्याल रखा जाए। सुबह-सुबह सूरज की रोशनी विटामिन D की कमी ना होने दी जाए। प्राणायाम-मेडिटेशन न्यूरॉन्स को एक्टिव बनाए। भरपूर पानी ब्रेन सेल्स को हाइड्रेट रखे। बेहतर आपसी रिश्ते और अच्छी नींद तनाव दूर रखे। लेकिन आज की जो बड़ी जरूरत है और चैलेंज भी है वो है अपने स्क्रीन टाइम को कम करना। क्योंकि इस दौर में टेक्नोलॉजी ने जहां जीवन को आसान बनाया है। वहीं इसका जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल रिश्तों का, समझ का और दिल का एहसास मिटा रहा है। बच्चों में 'वर्चुअल ऑटिज्म' बढ़ रहा है।

क्या आपका बच्चा दिनभर मोबाइल या टैब पर कार्टून देखता है? क्या वो आसपास के लोगों से कम बात करता है। अपनी ही दुनिया में खोया रहता है? मोबाइल लेने पर रोने लगता है और एग्रेसिव हो जाता है? अगर हां, तो सावधान हो जाइए!क्योंकि ये लक्षण ‘वर्चुअल ऑटिज्म’ के हो सकते हैं। एक ऐसी नई और तेजी से बढ़ती मानसिक परेशानी, जो मोबाइल की आदत, स्क्रीन टाइम ज्यादा होने की वजह से कॉमन होती जा रही है। 

क्या है वर्चुअल ऑटिज्म?

'वर्चुअल ऑटिज्म' कोई जन्म से होने वाली बीमारी नहीं है। ये एक नकली या टेम्परेरी 'ऑटिज्म' जैसा व्यवहार है। जो घंटों स्क्रीन के सामने रहने से आता है। जब बच्चे रील्स, गेम्स, शॉट्स की दुनिया में उलझे रहते हैं। खामियाजा ये कि बच्चे देर से बोलना शुरू करते हैं। आंखों में आंख डालकर बात नहीं करते। अपना नाम पुकारे जाने पर भी ध्यान नहीं देते। दूसरों से दूरी बना लेते हैं। पैरेंट्स को लगता है कि बच्चा ऑटिज्म का शिकार हो गया है, लेकिन असली वजह होती है 'सिर्फ स्क्रीन टाइम का ज्यादा होना'। 

फोन और टीवी से बच्चों में बढ़ रहा है ऑटिज्म

हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक स्क्रीन के ब्राइट कलर्स,आवाज और तेजी से लगातार बदलते सीन दिमाग पर असर डालते हैं। ऐसे में आपको 'डिजिटल डिटॉक्स' का संकल्प लेना चाहिए। रोजाना योग से शरीर और दिमाग को डिटॉक्स करना चाहिए। स्वामी रामदेव से जानते हैं कैसे बॉडी सेल्स को रिजुवनेट कर सकते हैं?

घंटों स्क्रीन देखने के नुकसान

जो लोग लंबे समय तक फोन या टीवी से चिपके रहते हैं उन्हें घबराहट, अकेलापन, अनिद्रा, डिप्रेशन, हकीकत से दूरी, डिजिटल एडिक्शन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे लोगों में मोटापा, डायबिटीज, हार्ट प्रॉब्लम, नर्वस प्रॉब्लम, स्पीच प्रॉब्लम, नजर कमजोर, हियरिंग प्रॉब्लम जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं। 

मोबाइल एडिक्शन से नींद की बीमारी

ज्यादा फोन के इस्तेमाल से नींद की समस्या भी बढ़ जाती है। फोन का इस्तेमाल करने वाले 60% लोगों में नींद की बीमारी पाई जाती है। इससे आंखों को भी नुकसान हो रहा है। स्मार्टफोन से निकलने वाली ब्लू लाइट रेटिना डैमेज कर नज़र कमज़ोर बनाती है। इससे विजन सिंड्रोम जैसे नजर कमजोर, ड्राईनेस, पलकों में सूजन, रेडनेस, तेज रोशनी से दिक्कत, एकटक देखने की आदत जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

फोन को कैसे दूर रखें?

स्वामी रामदेव फैमिली के साथ योग करने की सलाह देते हैं। माता-पिता और घर के दूसरे सदस्यों को बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहिए। बच्चों को खेल कूद में व्यस्त रखें, सुबह शाम पार्क लेकर जाएं। बच्चों से बातें करें और खेल में उनके साथ समय व्यतीत करें। सोते वक्त और उठते ही स्कीन से दूर रहें। सोशल मीडिया पर ज्यादा समय न बिताएं। अपना डेली का स्क्रीन टाइम चेक करें। रोजाना योग और एक्सरसाइज करें।

 

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