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मिलिए देश के इन किसानों से जिनको नए कृषि कानूनों से हुआ फायदा, बिना टेंशन कर रहे खेती

नए कानून के नाम पर आंदोलन कर रहे किसानों को अपने इन साथी किसानों की ये सक्सेज स्टोरीज जरूर पढ़नी चाहिए।

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नई दिल्ली। नए कृषि कानून 2020 के खिलाफ किसानों के आंदोलन का आज आठवां दिन होने को है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के किसानों ने दिल्ली की सीमाओं को घेर रखा है। जहां एक तरफ सरकार नए कृषि कानून 2020 को लेकर किसानों के सवालों का जवाब दे रही है वहीं नए कृषि कानून की सच्चाई क्या है, ये जानने के लिए हम देश भर के किसान के खेतों तक पहुंचे और उनसे बात की। अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग में हमें ऐसे बहुत से किसान मिले जिनकी जिंदगी नए कृषि कानूनों ने बदल दी है। नए कानून के नाम पर आंदोलन कर रहे किसानों को अपने इन साथी किसानों की ये सक्सेज स्टोरीज जरूर पढ़नी चाहिए। आप भी जानिए कि आखिर इन किसानों को नए कृषि कानूनों से कैसे और कितना फायदा हुआ है और इनका क्या कहना है। 

नए कृषि कानून के कारण किसान जितेंद्र को 3 दिनों के अंदर ऐसे मिला अटका हुआ पैसा

जितेंद्र ने अपने खेत में मक्का की खेती की जिसका सौदा एक व्यापारी से 3 लाख 32 हजार रुपए में हो गया। जितेंद्र को अपनी फसल के बदले में 25 हज़ार रुपए का एडवांस पेमेंट भी मिल गया। तय हुआ कि बाक़ी पैसे का भुगतान अगले 15 दिनों में कर दिया जायेगा। लेकिन जितेंद्र को पिछले 4 महीने से अपना पैसा नहीं मिला, लेकिन अपने मेहनत के पैसे की उम्मीद छोड़ चुके जितेंद्र को नए कृषि बिल की वजह से अटका हुआ पूरा पैसा मिल गया है। नए कृषि कानून के मुताबिक, व्यापारी को किसान की फसल खरीदने के 3 दिनों के अंदर भुगतान करना होगा। अगर पैसा नहीं मिलता है, तो किसान इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकता है और दोषी व्यापारी पर कार्यवाही की जा सकती है। जितेन्द्र ने भी शिकायत की और कुछ ही दिनों में उन्हें उनका पैसा मिल गया। जिंतेद्र की ये बात आज उन किसानों को समझनी चाहिए जो कृषि बिल के नाम पर भ्रम और अफवाहों के बीच सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं। 

सेब की खेती करने वाले हरीश को ऐसे हुआ 5 लाख का फायदा

हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के रहने वाले सेब बागवान और हिमाचल फ्रूट वेटिटेबल्स एंज फ्लावर्स ग्रोवर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट हरीश चौहान ने बताया कि उन्हें सेब की खेती करने में नए कृषि कानूनों से काफी मदद मिली। सेब की खेती करने वाले हरीश को 2020 में 100 मिट्रिक टन का उत्पादन हुआ। किसान हरीश ने बताया कि हमने 20 मिट्रिक टन सेब अडाणी ग्रुप और बिग बास्केट जैसी कंपनियों को डायरेक्ट दिया है और 20 मिट्रिक टन बाहरी राज्यों से आए हुए खरीदारों को सीधे बेचा गया। हरीश ने बताया कि 20 मिट्रिक टन सेब को स्टोर कर लिया गया। 40 मिट्रिक टन सेब को APMC के तहत बेचा गया। किसान हरीश ने बताया कि नए कृषि कानून के तहत सेब की खेती करने और डायरेक्ट बेचने में करीब 5 लाख रुपए का मुनाफा हुआ है। हालांकि, हरीश के मन में ये सवाल भी है कि बड़ी कंपनियों पर सरकार की पकड़ रहे जिससे किसानों का हित सुरक्षित रहें। हरीश ने कहा कि APMC की मंडियों की खामियों को भी सुधारा जाए। एमएसपी को लेकर हरीश ने बताया कि अभी केवल 23 उत्पादों में मिलती है जिसे सभी कृषि बागवानी के उत्पादों पर लागू किया जाए ताकि किसानी और बागवानी करने वाले किसानों को फायदा हो।    

दिनेश वैरागी हर साल कमा रहे करीब 25 से 30 लाख रुपए

मिलिए उज्जैन के किसान दिनेश वैरागी से, जो आज की तारीख में अपनी फसल का पूरा दाम दाम ले रहे हैं और वो भी बिल्कुल सही समय पर। इस फायदे के पीछे भी नए कृषि कानून का सबसे बड़ा योगदान है। दिनेश वैरागी के पास आज 80 बीघा ज़मीन है जिस पर की गई खेती से ये हर साल करीब 25 से 30 लाख रुपये कमा रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह ये है कि ये अपनी फसल एक प्राइवेट कंपनी को बेचते हैं, जो समय पर दिनेश को पूरा पैसा चुका देती है। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि दिनेश को अपनी फसल का भाव पहले ही पता चल जाता है और उसी हिसाब से किसान अपनी फसल बेच सकते हैं, जबकि कुछ साल पहले तक मंडी में फसल बेचने के लिए दिनेश को एक दिन पहले मंडी में पहुंचना पड़ता था, जिसमें आढ़तियों और बिचौलियों से फसल की कीमत से कम पैसा मिलता था। जाहिर है सरकार ने इन कृषि क़ानूनों के जरिए ही दिनेश जैसे किसानों को आज अपनी फसल का पूरा दाम मिल रहा है। नए कृषि कानून की वजह से किसानों को कस्टमर केयर जैसी सुविधा मिल रही है। उनके सामने मंडी से बाहर फ़सल बेचने का विकल्प रखा है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का विकल्प भी खुला है। जिस किसान को इसमें फ़ायदा दिखता है, वो उसे अपना सकता है और जो मंडी में फ़सल बेचता चाहता है वो किसान मंडी में भी अपनी फसल बेच सकता है। 

सोयाबीन की फसल पर प्रति कुंतल 200 से 400 रूपए का हुआ मुनाफा 

अब मिलिए मध्य प्रदेश के देवास के रहने वाले किसान कमल पटेल से जो नए कृषि बिल से मुनाफा कमा रहे हैं। अब ये नजरिये की बात है कि आप इस बिल से खेती में फायदा देखते हैं या सियासी साजिश का शिकार हो रहे हैं। पिछले दिनों में किसान कमल पटेल को अपनी सोयाबीन की फसल पर प्रति कुंतल 200 से 400 रूपये का मुनाफा हुआ है। दरअसल, कमल पटेल और दूसरे किसान हरिओम पटेल ने आईटीसी पर अपनी फसल बेचीं गई, जिसमें फसल की तुलाई का पैसा किसान को नहीं देना पड़ता है। इलेक्ट्रॉनिक तरीके की गई तुलाई के वजह कमल जैसे किसानों को फसल का पूरी दाम सही समय पर मिलता है। फसल की पेमेंट के लिए कहीं भटकने की भी ज़रूरत नहीं है। किसानों को कृषि बिल से दूसरा फायदा ये भी है कि निजी कंपनियां अच्छी फसल की उम्मीद में किसानों से एडंवास में फसल खरीदने की डील कर सकती हैं जिससे किसान अपनी फसल के बेचने की टेंशन से फ्री हो जाता है और अपना सारा ध्यान सिर्फ़ फसल की क्वालिटी पर रखता है। 

किसानों को फसल के मिल रहे अच्छे दाम, 3 दिन में सीधे खाते में आ जाता है पैसा

इन किसानों को उम्मीद है कि कृषि बिल के आने के बाद ज़्यादा से ज़्यादा कंपनियां सीधे किसानों से उनकी फसल खरीद सकती है जिसकी वजह से बाजार में कॉम्पिटिशन बढ़ने के कारण किसानों को फसल के अच्छे दाम मिल सकते हैं। जो हर तरीके से देशभर के किसानों के लिए फ़ायदे का सौदा है। ये बात आप अजमेर के रहने वाले किसान अजय मेरू से पूछिये जो अपने अनार के खेतों में अपनी शर्तों पर अपनी शर्तों पर फसल का सौदा करने अधिकार रखते हैं। कृषि बिल की वजह से ही अजय को अपने फसल का भाव तय करने का अधिकार मिला है। कृषि बिल से पहले किसानों को अपनी फसल बेचने मंडी में आना पड़ता था अब इस कानून के बाद कंपनियों को किसानों खेतों तक जाना पड़ रहा है जिसकी वजह से अजय जैसे किसान अपनी फसल का बाज़िव दाम तय करके मुनाफ़ा कमा रहे हैं। आज अनार की फसल खरीदने के लिए सीधे कंपनियां अजय जैसे किसानों से कॉन्ट्रैक्ट कर रही हैं जो किसानों के लिए फायदेमंद है और 3 दिन में पैसा देने वाले नियम के तहत किसानों को अपनी फसल का पूरा दाम सही समय पर मिल रहा है। 

अब किसानों को मंडियों में नहीं रात-रात भर रुकना पड़ता

अजय की तरह मध्य प्रदेश के राजगढ़ के रहने वाले किसान शंकरलाल और संजय भी कृषि बिल से बहुत राहत महसूस कर रहे हैं। शंकरलाल की तरह संजय भी मंडियों में माल बेचने के लिए रात-रात रुकते थे, लेकिन अब किसानों को इस परेशानी से छुटकारा मिल गया है। अब किसान दूसरी कंपनियों और व्यापारियों के सेंटर पर जाकर अपनी फसल बेचकर नगद पैसे लेकर घर आ जाता है। इससे किसानों को अपनी फसल का मूल्य भी अच्छा मिलता है। देशभर के किसान ये मानते है कि नए कृषि कानून किसानों की परेशानियों को कम करने वाला है लेकिन सियासी राजनीति के चलते कुछ लोग अब भी बहुत से किसानों के मन में भ्रम और डर बनाये हुए हैं। इन किसानों को ये समझना होगा कि किसान बिल के विरोध का माइलेज कौन-कौन से नेताओं को मिल रहा है। ऐसे किसानों को आज इन सफल किसानों की कहानियों को समझना चाहिए जो विरोध के बजाए अपने खेती से फायदा कमाने वाली कोशिशों पर ध्यान दे रहे हैं।

बता दें कि, आंदोलनकारी किसान और सरकार के बीच गुरुवार (3 दिसंबर) को करीब साढ़े 7 घंटे चली चौथे दौर की वार्ता बेनतीजा रही। किसान नेताओं और सरकार के बीच अब अगली बैठक 5 दिसंबर (शनिवार) को होगी। 

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