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Rajat Sharma's Blog: जाति की आड़ में अपराधियों को महिमामंडित करना बन्द करें

विकास दुबे ने जो अपराध किया है, वह घिनौना है, उसका गुनाह नाकाबिले बर्दाश्त है, उसे सजा भी मिलेगी, लेकिन अगर कोई जाति के नाम पर, ब्राह्मण होने के नाम पर, उसकी मदद करने की कोशिश करेगा, उसका समर्थन करेगा, तो वह भी अपराधी होगा, गुनहगार होगा ।

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गुरुवार को मध्य प्रदेश के उज्जैन में उत्तर प्रदेश के खूंखार गैंगस्टर विकास दुबे की गिरफ्तारी के साथ, आखिरकार पिछले 6 दिन से  इस हत्यारे की अलग-अलग राज्यों में हो रही तलाश खत्म हुई। कानून को ताक पर रखने वाले इस मुजरिम को अब कानून का सामना करना पड़ेगा। देश का कानून ही तय करेगा कि इस गैंगस्टर को कौन सी सज़ा दी जाय, क्योंकि उसने अनेक लोगों का कत्ल किया है।
 
मैं आज एक ऐसी बात कहना चाहता हूं जो कोई नहीं कहेगा, ऐसी बात जो जानते सब हैं, आपस में ऐसी बातें करते भी हैं, लेकिन सार्वजनिक तौर पर इस मुद्दे पर बात नहीं करते । आज मैं ये बात करूंगा क्योंकि यह जरूरी है और अगर इस मुद्दे पर अब भी बात नहीं की गई तो इससे देश का, समाज का, व्यवस्था का, और हम सबका बहुत नुकसान होगा।
 
मैं बात करना चाहता हूं, जाति को लेकर बंटते हुए समाज की, जाति के नाम पर अपराध की, अपराधियों की अनदेखी की । मैं दो दिन से सोशल मीडिया पर देख रहा हूं, बहुत से लोगों से सुन रहा हूं, वीडियो और कमेंट देख रहा हूं, कि लोग हत्यारे की, दुर्दांत अपराधी की जाति देख रहे हैं., जाति के आधार पर उसका समर्थन कर रहे हैं, मुझे बड़े दुख के साथ ये कहना पड़ रहा है कि उत्तर प्रदेश में आठ पुलिस वालों की जघन्य हत्या करने वाले विकास दुबे को लेकर कुछ लोग जाति का सवाल उठा रहे हैं। अगर साफ-साफ कहूं तो चूंकि विकास दुबे एक ब्राह्मण है सिर्फ इसीलिए ब्राह्मण समाज में कुछ लोग ऐसे हैं, जो उसे हीरो बता रहे हैं। किसी ने उसे शेर कहा, किसी ने हत्यारे की जांबाजी को सलाम किया, मैं हैरान हूं कि कुछ लोग ही सही, लेकिन समाज में ऐसे लोगों हैं जो अपराधी की गुनाह नहीं उसकी जाति देख रहे हैं। ये बहुत ही शर्म की बात है।
 
हम हमेशा कहते हैं कि अपराधी की कोई जाति नहीं होती, समाज के लोग अपराधी को सिर्फ क्रिमिनल की नजर से देखते हैं, लेकिन ये कड़वा सच है कि यूपी और बिहार में आज भी जाति के नाम पर सारा खेल होता है, इसीलिए आज ब्राह्मणों के बीच,  उत्तर प्रदेश में, बिहार में, खूंखार अपराधी विकास दुबे का महिमामंडन करने की कोशिश की गई ।
 
आज मैं इस तरह की सोच रखने वालों की आत्मा को जगाना चाहता हूं,  इस तरह की बातें करने वालों की आंखें खोलना चाहता हूं, विकास दुबे ने जो अपराध किया है, वह घिनौना है, उसका गुनाह नाकाबिले बर्दाश्त है, उसे सजा भी मिलेगी, लेकिन अगर कोई जाति के नाम पर, ब्राह्मण होने के नाम पर, उसकी मदद करने की कोशिश करेगा, उसका समर्थन करेगा, तो वह भी अपराधी होगा, गुनहगार होगा ।
 
विकास दुबे जैसे अपराधी का समर्थन करना, जाति के नाम पर समर्थन करना, उसे हीरो बताना समाज के प्रति गुनाह है। इस तरह से सोचने वालों को ये नहीं भूलना चाहिए कि विकास दुबे ने आठ पुलिस वालों की हत्या पूरी प्लानिंग के साथ और निर्ममता के साथ की, और वह ये गुनाह सिर्फ इसलिए कर पाया कि कुछ पुलिस वालों ने ही मुखबिरी की थी। ये सब पुलिसकर्मी भी जांच के दायरे में हैं, लेकिन मुझे पता चला कि विकास दुबे के साथ-साथ इन पुलिस वालों की जाति की भी खूब बात हो रही है, इसलिए आज मैं आपको एक ऐसे पुलिस अफसर की बात बताना चाहता हूं, जो खुद ब्राह्मण हैं, जिन्होंने खुद बिना जाति देखे बड़े-बड़े अपराधियों का काम तमाम किया है, जो खुद बिहार पुलिस के महानिदेशक हैं, सबसे सीनियर पुलिस ऑफिसर हैं....गुप्तेश्वर पांडे कानपुर में पुलिस वालों की ह्त्या से आहत हैं और जब से उन्होंने ये देखा कि कुछ लोग सिर्फ जाति के कारण, सिर्फ ब्राह्मण होने के कारण विकास दुबे जैसे दुर्दांत अपराधी का समर्थन कर रहे हैं, तो गुप्तेश्वर पांडे खुद को रोक नहीं पाए, अपना दर्द, अपना गुस्सा, अपनी चिंता कैमरे के सामने जाहिर कर दी ।
 
गुप्तेश्वर पांडे ने बुधवार को विकास दुबे जैसे अपराधियों का महिमामंडन करने की प्रवृति की आलोचना की। गुप्तेश्वर पांडे ने जनता से अपील की कि वह  "अपराध की संस्कृति" को बढावा न दें और अपराधियों को हीरो न बनाएं। उन्होंने कहा, "क्या हमें उसकी आरती उतारनी चाहिए? यह शर्म की बात है कि आठ पुलिसकर्मियों की हत्या करने के बाद ऐसा शातिर अपराधी भाग निकला। क्या विकास दुबे एक शेर है, या भगत सिंह है, या नेताजी, या अशफाकुल्लाह खान है ? "
 
गुप्तेश्वर पांडे की बात वाकई में दिल को छूने वाली है, समाज की आंखें खोलने वाली हैं। खासतौर पर उन लोगों को तो एक बार नहीं गुप्तेश्वर पांडे की बात बार-बार सुननी चाहिए जो सिर्फ ब्राह्मण होने के कारण पुलिस वालों के हत्यारे विकास दुबे को शेर बता रहे हैं, हीरो बता रहे हैं। गुप्तेश्वर पांडे पुलिस अफसर की तरह नहीं बोले, बिहार पुलिस के मुखिया की तरह नहीं बोले, उन्होंने समाज के एक संवेदनशील इंसान की तरह अपनी वेदना समाज के साथ शेयर की, समाज को आईना दिखाने की कोशिश की, लोगों की आत्मा को झकझोरने की कोशिश की।
 
इसके लिए गुप्तेश्वर पांडे की तारीफ होनी चाहिए। आमतौर पर अफसर, खासतौर पर पुलिस अफसर अपराधियों के बारे में, अपराधियों की जाति के बारे में इस तरह से खुलकर बोलने से बचते हैं। लेकिन गुप्तेश्वर पांडे ने जो कहा, बिल्कुल सही कहा। इस पर विचार करने, इस पर अमल करने की जरूरत है। उनकी ये बात सही है कि अपराधी की कोई जाति नहीं होती, कोई धर्म नहीं होता। अपराधी पहले शार्टकट से पैसा कमाने के लिए, बिना मेहनत के ऐशो-आराम की जिंदगी के लिए अपराध करता है। इसके बाद अपने गुनाहों को छुपाने के लिए गुनाह करता है। फिर बचने के लिए जाति का सहारा लेता है, लेकिन वो किसी का सगा नहीं होता।
 
विकास दुबे को ही देख लें,उसने किसको मारा? संतोष शुक्ला कौन थे? पंडित थे। विकास दुबे ने जिन पुलिस वालों को निर्ममता से मारा उसमें DSP देवेंद्र मिश्रा कौन थे? ब्राह्मण ही थे। विकास दुबे के चक्कर में एनकाउंटर में कल उसका जो साथी मारा गया, अमर दुबे, वो भी ब्राह्मण था। चौबेपुर थाने के जो पुलिस वाले विकास दुबे के लिए पुलिस की ही मुखबिरी करते थे, जो अब जेल में है, SHO विनय तिवारी और दारोगा कृष्णपाल मिश्रा, ये दोनों भी ब्राह्मण हैं। और तो और विकास दुबे ने अपने कजिन पर, अपने भाई पर जानलेवा हमला करवाया। कहने का मतलब ये है कि अपराधी अपराधी होता है। वो अपने फायदे के लिए, अपने बचाव के लिए, शील्ड की तरह अपनी जाति का इस्तेमाल कर सकता है।
 
सबसे ज्यादा चिंता की बात तो ये है कि समाज में जाति का जहर तो पहले से था, लेकिन सिस्टम में जाति का जहर इस कदर घुस गया है,ये विकास दुबे के मुखबिरों के नाम देखकर पता चला।
 
विकास दुबे की गिरफ्तारी के साथ, निश्चित रूप से सारी परतें खुलने वाली हैं। यूपी पुलिस में कई ऐसे थे जो इस गैंगस्टर के लिए मुखबिरी का काम कर रहे थे और गैंगस्टर से पूछताछ करने के बाद उनके चेहरे से नकाब उतर जाएगा। समय आ गया है कि अब पुलिस में काम कर रहे घर के भेदियों की पहचान की जाय और उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाय। (रजत शर्मा)

देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 08 जुलाई 2020 का पूरा एपिसोड

 

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