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Hindi News भारत राष्ट्रीय 370 हटाने पर दुनिया के किस-किस देश का भारत को मिला था समर्थन और कौन पाकिस्तान के साथ खड़ा हुआ?

370 हटाने पर दुनिया के किस-किस देश का भारत को मिला था समर्थन और कौन पाकिस्तान के साथ खड़ा हुआ?

आइए, आपको बताते हैं कि 5 अगस्त 2019 को जम्मू एवं कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म किए जाने पर किस देश ने भारत का समर्थन किया था और कौन पाकिस्तान के पाले में खड़ा था।

One Year After 370, Imran Khan, Imran Khan Pakistan, Narendra Modi, Pakistan Article 370- India TV Hindi Image Source : FILE प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा 5 अगस्त 2019 को जम्मू एवं कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रवाधानों का हटाया जाना एक ऐतिहासिक घटना थी।  

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा 5 अगस्त 2019 को जम्मू एवं कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रवाधानों का हटाया जाना एक ऐतिहासिक घटना थी। केंद्र ने न सिर्फ जम्मू एवं कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किया, बल्कि उसे 2 केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख में बांट भी दिया था। भारत सरकार के इस फैसले पर पूरी दुनिया से प्रतिक्रियाएं आईं, जिनमें भारत के पड़ोसी देश भी शामिल थे। वहीं, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसी महाशक्तियों ने भी भारत सरकार के इस कदम पर अपनी प्रतिक्रियाएं दी थीं। आइए, आपको बताते हैं कि उस समय किस देश ने भारत का समर्थन किया था और कौन पाकिस्तान के पाले में खड़ा था।

अनुच्छेद 370 पर भारत के रुख का समर्थन करने वाले प्रमुख देश
रूस:
अनुच्छेद 370 के मसले पर रूस ने भारत का साथ दिया था। रूस ने कहा था कि अनुच्छेद 370 पर भारत सरकार का संप्रभु निर्णय है और यह पूरी तरह से उसका आंतरिक मामला है। रूस का कहना था कि कश्मीर मसले को भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला और लाहौर समझौते के तहत हल किया जा सकता है। रूसी नेतृत्व ने यह भी कहा था कि इस मसले पर हमारे विचार बिल्कुल भारत जैसे ही हैं। साथ ही उसने यह भी साफ किया कि भारत-पाकिस्तान विवाद में उसकी कोई भूमिका नहीं है, जब तक कि दोनों देश मध्यस्थता के लिए नहीं कहते। रूस ने UNSC में बंद दरवाजे की बैठक के दौरान भी कश्मीर को भारत का आंतरिक मुद्दा बताया था।

Image Source : Fileरूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

बांग्लादेश: भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने जम्मू एवं कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाए जाने को नई दिल्ली का आंतरिक मामला बताया था। बांग्लादेश का कहना था कि भारतीय सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाना भारत सरकार का आंतरिक मुद्दा है। बांग्लादेश ने आगे यह भी कहा था कि हमने हमेशा से क्षेत्रीय शांति और स्थिरता बनाए रखने वाले सिद्धांत के बात की वकालत की है। उसने कहा था कि सभी देशों को चाहिए कि वह अपने विवादों को सुलझाकर विकास पर ध्यान दें। 

श्रीलंका: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को उम्मीद थी कि इस मसले पर श्रीलंका उसका कुछ हद तक साथ देगा, लेकिन हुआ बिल्कुल उल्टा। श्रीलंका के तत्कालीन प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने न सिर्फ इसे भारत का आंतरिक मसला बताया था, बल्कि लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने पर खुशी भी जाहिर की थी। विक्रमसिंघे ने सोशल मीडिया साइट पर एक पोस्ट में कहा था, ‘लद्दाख और राज्य का पुनर्गठन भारत का आंतरिक मामला है। मैं मानता हूं कि आखिरकार लद्दाख भारतीय राज्य (केंद्रशासित क्षेत्र) बन जाएगा। लद्दाख में 70 प्रतिशत बौद्ध आबादी है और बौद्ध बहुल यह पहला भारतीय राज्य होगा।’

अफगानिस्तान: भारत और अफगानिस्तान के बीच आमतौर पर अच्छे रिश्ते ही रहे हैं, तो अनुच्छेद 370 के मामले पर उसका नई दिल्ली के खिलाफ जाना मुमकिन ही नहीं था, लेकिन यहां पाकिस्तान को असली झटका तालिबान ने दिया। पाकिस्तान के साथ अक्सर खड़े नजर आने वाले तालिबान ने इस्लामाबाद की ओर से अफगानिस्तान और कश्मीर मुद्दे को जोड़ने का विरोध किया था। तालिबान के प्रवक्ता जबीहउल्लाह मुजाहिद ने कहा था, ‘कश्मीर के मुद्दे को कुछ पक्षों की ओर से अफगानिस्तान से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। इससे संकट से निपटने में कोई मदद नहीं मिलेगा क्योंकि अफगानिस्तान के मुद्दे का इससे कोई लेना-देना नहीं है। इसके अलावा अफगानिस्तान अन्य देशों की प्रतिस्पर्धा के बीच नहीं फंसना चाहता।'

फ्रांस: मोदी सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले पर फ्रांस ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी थी। फ्रांस के राष्ट्र्पति इमैनुएल मैक्रों ने जम्मूप-कश्मीिर से मोदी सरकार द्वारा अनुच्छे‍द 370 हटाए जाने का समर्थन किया था। उन्होंकने कहा था कि कश्मी‍र मुद्दे पर किसी भी तीसरे देश के दखल की कोई जरूरत नहीं है और यह भारत और पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मुद्दा है। फ्रांस के राष्ट्रतपति ने कहा था कि यह जरूरी है कि जम्मूक और कश्मीर में शांति कायम रहे। उन्होंने यह भी कहा था कि मैं कुछ दिनों बाद पाकिस्ताैन के पीएम इमरान खान से बातचीत करूंगा और उनसे कहूंगा कि इस मुद्दे पर बातचीत द्विपक्षीय ही रहनी चाहिए।

सऊदी अरब: पाकिस्तान को उम्मीद थी कि भारत सरकार के इस फैसले पर अधिकांश इस्लामिक देश उसके साथ होंगे, लेकिन यहां भी उसे निराशा ही हाथ लगी। मलेशिया और तुर्की को छोड़कर किसी भी प्रमुख मुस्लिम देश ने इस मुद्दे पर पाकिस्तान का खुलकर समर्थन नहीं किया, और अधिकांश ने इसे भारत का आंतरिक मामला बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया। सऊदी अरब ने भी पाकिस्तान से साफ कह दिया कि जम्मू-कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है। पाकिस्तान की कोशिश थी कि भारत सरकार के कदम पर दुनिया के इस्लामिक देश कार्रवाई करें, लेकिन उसे अधिकांश देशों से मायूसी ही हाथ लगी।

भारत के रुख का एक हद तक समर्थन करने वाले देश
अमेरिका: भारत सरकार के फैसले पर अमेरिका ने एक तरह से नई दिल्ली का ही साथ दिया था। ट्रम्प प्रशासन ने इस मामले पर कहा था कि वह जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के पीछे के भारत के मकसद का समर्थन करता है, लेकिन वह घाटी में मौजूदा स्थिति को लेकर चिंतित है। उसने कहा था कि वह भारत के पांच अगस्त के इस फैसले के बाद से राज्य में हालात पर करीब से नजर रख रहा है। वहीं, अमेरिका के कई सांसदों ने भारत के इस कदम की तारीफ की थी, तो कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने इसे लेकर कुछ सवाल उठाए थे। लेकिन अधिकांशत: अमेरिका का रुख भारत के ही पक्ष में था।

Image Source : Fileअमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

ब्रिटेन: अनुच्छेद 370 को लेकर ब्रिटेन ने भारत के नजरिए का साथ जरूर दिया था, लेकिन उसके कुछ सांसद पाकिस्तान के पाले में भी खड़े नजर आए थे। ब्रिटेन का कहना था कि भारत सरकार के इस फैसले के बाद हमने स्थिति को लेकर अपनी कुछ चिंताएं जाहिर की हैं और शांति की अपील की है, लेकिन हमने भारत के नज़रिए से स्थिति को भी समझा है। ब्रिटेन के कुछ सांसदों ने इस मसले पर पाकिस्तान का साथ दिया था, लेकिन बाद में खबर आई थी कि ब्रिटेन के सांसदों को पाकिस्तान का दौरा करने के बदले मोटी रकम मिली। ब्रिटिश सांसद डेबी अब्राहम्स की अगुवाई में सांसदों के इस समूह ने इस साल फरवरी में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का दौरा किया था। बता दें कि ब्रिटिश सांसद डेबी अब्राहम्स को बीती फरवरी में दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से ही उनके देश वापस भेज दिया गया था।

जर्मनी: भारत सरकार के फैसले का जर्मनी ने खुलकर समर्थन नहीं किया था, लेकिन पाकिस्तान की तरफ से भी स्टैंड नहीं लिया था। जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने इस मसले पर जर्मन मीडिया से कहा था कि कश्मीर में मौजूदा स्थिति ‘स्थाई नहीं' है और निश्चित ही इसे बदलने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा था कि चूंकि इस समय कश्मीर में स्थिति स्थायी और अच्छी नहीं है तो इसे निश्चित तौर पर बदलने की आवश्यकता है।

अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर पाकिस्तान के पाले में खड़े होने वाले देश
चीन: जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने तथा इसे 2 केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के भारत के फैसले पर चीन ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए दो अलग-अलग बयान जारी किए थे। चीन ने अपने पहले बयान में लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने पर आपत्ति जताई थी और क्षेत्र पर अपना दावा किया था। वहीं, जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटाए जाने पर कहा था कि वह कश्मीर में वर्तमान स्थिति को लेकर ‘काफी चिंतित’ है और ‘संबंधित पक्षों’ को संयम बरतना चाहिए तथा बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए। इस तरह देखा जाए तो चीन की मुख्य आपत्ति लद्दाख को लेकर थी।

Image Source : Fileचीन, तुर्की और मलेशिया जैसे कुछ देशों को छोड़कर किसी ने भी इस मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ नहीं दिया था।

तुर्की: भारत सरकार के फैसले पर पाकिस्तान का साथ देने वाले कुछ देशों में एक तुर्की भी था। तुर्की ने भारत सरकार के फैसले का विरोध करते हुए कई बयान दिए थे। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयेप एर्दोगन ने फरवरी 2020 में पाकिस्तान की यात्रा भी की थी और भारत का नाम लिए बिना कहा था, ‘हमारे कश्मीरी भाइयों और बहनों को दशकों से असुविधाओं का सामना करना पड़ा है और हाल के दिनों में उठाए गए एकतरफा कदमों से इनमें ब़़ढोतरी हुई है। कश्मीर का मुद्दा हमारे लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना पाकिस्तान के लिए।’ उन्होंने कहा था कि तुर्की कश्मीर के मुद्दे को हमेशा उठाता रहेगा।

मलेशिया: तुर्की के साथ मलेशिया ने भी पाकिस्तान का इस मुद्दे पर खुलकर साथ दिया था। मलेशिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 और धारा 35 ए हटाने का विरोध किया था। मोहम्मद ने आगे चलकर नागरिकता कानून में संशोधन का भी विरोध किया था। हालांकि बाद में भारत की कड़ी प्रतिक्रिया के बाद उनके तेवर ढीले पड़ गए थे। मलेशिया के कई सांसदों ने उस समय महातिर के बयानों का विरोध किया था और उनके बयान को उनकी अपनी सोच बताया था। इन सांसदों का कहना था कि हमें किसी भी देश के आंतरिक मामलों में नहीं पड़ना चाहिए।

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