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जानिए, जग्गनाथ मंदिर में मिलने वाले 'महाप्रसाद' से जुड़ा क्या है रहस्य

पुरी का जग्गनाथ मंदिर चार धामों में से एक है। यह मंदिर उड़िसा के पुरी शहर में स्थित है। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ भगवान बलराम और देवी सुभद्रा की मूर्ती है जो कि विश्वरभर में फेमस है। आपको बता दें कि हर साल पूरी जग्गनाथ रथ यात्रा निकाली जाती है।

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नई दिल्ली:पुरी का जग्गनाथ मंदिर चार धामों में से एक है। यह मंदिर उड़िसा के पुरी शहर में स्थित है। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ भगवान बलराम और देवी सुभद्रा की मूर्ती है जो कि विश्वरभर में फेमस है। आपको बता दें कि हर साल पूरी जग्गनाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। इस दौरान देश-विदेश के श्रद्धालु इसमें शामिल होते हैं। हर साल रथ यात्रा के दौरान मंदिर के शिखर का ध्वज बदला जाता है। रोजाना शाम को किया जाता है और वह होता है मंदिर के गुंबद पर लगा ध्वजा परिवर्तन।

किसी भी तीर्थ स्थान पर मिलने वाले प्रसाद को सामान्यतया प्रसाद ही कहा जाता है, परंतु उड़ीसा स्थित जगन्नाथ मंदिर में मिलने वाले प्रसाद को 'महाप्रसाद' माना जाता है। जगन्नाथ मंदिर एकमात्र ऐसा स्थान है जिसके प्रसाद को महाप्रसाद कहा जाता है। आइए जानते हैं इससे जुड़ा रहस्य...

बताया जाता है कि एक बार महाप्रभु वल्लभाचार्य एकादशी व्रत के दिन जगन्नाथ मंदिर पहुंचे। तब भगवान जी ने उनकी निष्ठा की परीक्षा लेने का सोचा। व्रत के दिन वहां वल्लभाचार्य को किसी ने प्रसाद दिया।(पंचांग 14 जुलाई 2018: दिन शनिवार पुनर्वसु नक्षत्र, जानिए आज का शुभ मुहूर्त और राहुकाल)

वल्लभाचार्य ने वो प्रसाद और उन्होंने स्तवन करते हुए दिन के बाद रात भी बिता दी। अगले दिन द्वादशी को स्तवन समाप्त होने पर उन्होंने प्रसाद को ग्रहण किया। जिसके बाद 'प्रसाद' को 'महाप्रसाद' का गौरव प्राप्त हुआ।(पंचांग 13 जुलाई 2018: दिन शुक्रवार पुनर्वसु नक्षत्र, जानिए आज का शुभ मुहूर्त और राहुकाल)

आपको बता दें, जगन्नाथ मंदिर में भोग बनाने के लिए करीबन 500 रसोइए और उनके 300 सहयोगी काम करते हैं। बताया जाता है कि रसोई में जो भी भोग तैयार किया जाता है वह सब मां लक्ष्मी की देखरेख में होता है।(Solar Eclipse 2018: इस समय लगेगा सूर्य ग्रहण, घर में रहकर करें ये काम)

भोग के लिए रोजाना 56 तरह के भोग तैयार किये जाते हैं। ये सारे व्यंजन मिट्टी के बर्तनों में तैयार किये जाते हैं। यह महाप्रसाद आनंद बाजार में मिलता है, जो विश्वनाथ मंदिर के पांच सीढ़ियां चढ़ने पर आता है। 

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