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Hindi News लाइफस्टाइल जीवन मंत्र Chanakya Niti: धन के पीछे भागने वालों को नहीं बल्कि ऐसे इंसान को मिलती है असल सुख-शांति

Chanakya Niti: धन के पीछे भागने वालों को नहीं बल्कि ऐसे इंसान को मिलती है असल सुख-शांति

आचार्य चाणक्य ने अपनी एक नीति में सुख-शांति को लेकर विस्तार से बताया है। उनके अनुसार असली सुख-शांति भोग-विलास या फिर धन के पीधे भागने में नहीं है बल्कि इस काम को करने से मिलती हैं।

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Highlights

  • आचार्य चाणक्य से जानिए किन लोगों को मिलती है असल खुशी
  • धन के पीछे भागने से नहीं बल्कि इस चीज से मिलती है सुथ-शांति

कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से प्रसिद्ध आचार्य चाणक्य विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और असाधारण और बुद्धि के स्वामी थे। आचार्य चाणक्य ने अपने बुद्धि कौशल का परिचय देते हुए ही चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाया था। आचार्य चाणक्य हमेशा दूसरों के हित के लिए बात करते थे। उन्होंने अपनी नीतियों में एक सफल व्यक्ति बनने की कई नीतियां बताई हैं जिनका पालन करके आप सुख-शांति के साथ जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

आचार्य चाणक्य ने अपनी एक नीति में सुख-शांति को लेकर विस्तार से बताया है। उनके अनुसार असली सुख-शांति भोग-विलास या फिर धन के पीधे भागने में नहीं है बल्कि इस काम को करने से मिलती हैं। 

श्लोक
सन्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तिरेव च। 
न च तद्धनलुब्धानामितश्चेतश्च धावाताम्

 भावार्थ :
संतोष के अमृत से तृप्त व्यक्तियों को जो सुख और शान्ति मिलता है, वह सुख- शान्ति धन के पीछे इधर-उधर भागनेवालों को नहीं मिलती ।

आचार्य चाणक्य के अनुसार आज के समय में लोग धन के पीछे इस कदर से पागल हो गए हैं कि उसे पाने की लालसा में घर-परिवार को पीछे छोड़ दिया है। यहीं आदत उनके निजी जीवन की तबाही का कारण बनती हैं। क्योंकि वह धन कमाने की होड़ में इस कदर से शामिल हो जाते हैं कि उनके आसपास मौजूद हर एक चीज को अनदेखा कर देते हैं। 

आचार्य चाणक्य के अनुसार जीवन में वहीं व्यक्ति सुख-शांति के साथ रह सकता हैं जिसके पास संतोष हो। क्योंकि अगर व्यक्ति के पास संतोष होगा तो वह हर चीज के पीछे भागेगा नहीं बल्कि आराम से अपने आसपास मौजूद चीजों को भी वक्त देने के साथ उनकी जरूरतें पूरी करेगा।

आज के दौर में धन के पीछे दौड़ लगाने वालों से कहीं अधिक खुश वह व्यक्ति हैं जिसके पास जीवन जीने के पर्याप्त संसाधनों के बाद संतोष की लकीरें भी जीवन की धारा में शामिल हैं और वो उसके भीतर ही रहकर जीवन का आनंद ले रहा है। 

आचार्य चाणक्य की इस श्लोक का मतलब ये नहीं है कि आप इस तरह इस संतोष कर बैठ जाएं कि जरूरत की चीजों से भी मुंह मोड़ लें। बल्कि आपको अपनी जरूरत की चीजों से ज्यादा की अपेक्षा न करके संतोष के साथ घर-परिवार के साथ समय व्यतीत करना चाहिए। 

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