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चीन के डर से मोदी सरकार ने की नेपाल से डील, अगले 3 साल तक सप्लाई करेगी 13 लाख टन के पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स

भारत सरकार ने चीन के डर से नेपाल के साथ बड़ा समझौता किया है, जिसके तहत वह पड़ोसी देश को अप्रैल 2017 से लेकर मार्च 2022 तक ईंधन उत्पादों की आपूर्ति करेगा।

चीन के डर से मोदी सरकार ने की नेपाल से डील, अगले 3 साल तक सप्लाई करेगी 13 लाख टन के पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स- India TV Paisa चीन के डर से मोदी सरकार ने की नेपाल से डील, अगले 3 साल तक सप्लाई करेगी 13 लाख टन के पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स

नई दिल्ली। सरकारी पेट्रोलियम कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOC) ने नेपाल के साथ एक बड़े समझौते पर दस्तखत किए, जिसके तहत वह पड़ोसी देश को अप्रैल 2017 से लेकर मार्च 2022 तक ईंधन उत्पादों की आपूर्ति करेगा। आपको बता दें कि भारत का इंडियन अॉयल कॉरपोरेशन 1974 से ही नेपाल को ईंधन और एलपीजी की सप्लाई कर रहा है।

चीन के डर से मोदी सरकार ने की नेपाल से डील

  • भारत को यह डर था कि कहीं नेपाल चीन से अपनी ईंधन की जरूरतें पूरी करने के लिए समझौता न करे ले। यही सोचकर भारत नेपाल को समझौते के तहत कुछ अन्य सुविधाएं जैसे प्रॉडक्ट पाइपलाइन और स्टोरेज की सुविधा भी मुहैया कराएगा। समझौते में तय किया गया है कि आईओसी नेपाल को सालाना 13 लाख टन की ईंधन सप्लाई करेगा और 2020 तक वह सप्लाई को दोगुना कर देगा।
  • मार्च महीने की शुरुआत में नेपाल ने अॉयल कॉरपोरेशन (NOC) ने चेतावनी दी थी कि वह आईओसी-एनओसी के बीच समझौते में एक नया क्लॉज डालने जा रहा है, जिसके तहत अगर आईओसी उसे ईंधन सप्लाई करने को लेकर सुनिश्चित नहीं करता तो वह दूसरे देशों से भी ईंधन खरीद लेगा। \

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भारत नेपाल को मुआवजा भी देगा!

भारत और नेपाल के बीच यह समझौता इसी महीने रिन्यू होना था। चीन को पड़ोसी देश में पैंठ बनाने से रोकने के लिए आईओसी ने मामूली मार्केटिंग चार्जेज स्वीकार किए और भुगतान में देरी के लिए एनओसी पर लगाए गए ब्याज में छूट दी। सूत्रों के मुताबिक भारत इस बात पर राजी हुआ है कि अगर वह ईंधन उत्पादों की सप्लाई करने में नाकाम रहता है तो वह नेपाल को मुआवजा भी देगा।

चीन के साथ खत्म कर दिया एग्रीमेंट

  • सितंबर 2015 में भारत ने नेपाल पर 6 महीने की आर्थिक नाकेबंदी लगा दी थी, उस वक्त चीन ईंधन सप्लाई करने वाला अतिरिक्त विकल्प बनने की कोशिश कर रहा था।
  • मार्च 2016 में केपी ओली सरकार ने चीन के साथ ईंधन उत्पादों की आपूर्ति को लेकर एक कमर्शियल समझौते पर भी दस्तखत किए थे। हालांकि यह एमओयू उस वक्त खारिज हो गया जब तीन महीने बाद ही ओली को अविश्वास प्रस्ताव के चलते प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

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