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कॉरपोरेट घरानों को बैंकिंग लाइसेंस देने की सिफारिश चौंकाने वाली: राजन

रिजर्व बैंक के द्वारा गठित एक आंतरिक कार्य समूह (आईडब्ल्यूजी) ने पिछले सप्ताह कई सुझाव दिये थे। इन सुझावों में यह सिफारिश भी शामिल है कि बैंकिंग विनियमन अधिनियम में आवश्यक संशोधन करके बड़े कॉरपोरेट घरानों को बैंक शुरू करने का लाइसेंस दिया जा सकता है।

<p>रघुराम राजन</p>- India TV Paisa Image Source : GOOGLE रघुराम राजन

नई दिल्ली। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा है कि कॉरपोरेट घरानों को बैंक स्थापित करने की मंजूरी देने की सिफारिश आज के हालात में चौंकाने वाली है। दोनों का मानना है कि बैंकिंग क्षेत्र में कारोबारी घरानों की संलिप्तता के बारे में अभी आजमायी गयी सीमाओं पर टिके रहना अधिक महत्वपूर्ण है। रिजर्व बैंक के द्वारा गठित एक आंतरिक कार्य समूह (आईडब्ल्यूजी) ने पिछले सप्ताह कई सुझाव दिये थे। इन सुझावों में यह सिफारिश भी शामिल है कि बैंकिंग विनियमन अधिनियम में आवश्यक संशोधन करके बड़े कॉरपोरेट घरानों को बैंक शुरू करने का लाइसेंस दिया जा सकता है।

राजन और आचार्य ने एक साझा आलेख में यह भी कहा कि इस प्रस्ताव को अभी छोड़ देना बेहतर है। आलेख में कहा गया है, "जुड़ी हुई बैंकिंग का इतिहास बेहद त्रासद रहा है। जब बैंक का मालिक कर्जदार ही होगा, तो ऐसे में बैंक अच्छा ऋण कैसे दे पायेगा? जब एक स्वतंत्र व प्रतिबद्ध नियामक के पास दुनिया भर की सूचनाएं होती हैं, तब भी उसके लिये खराब कर्ज वितरण पर रोक लगाने के लिये हर कहीं नजर रख पाना मुश्किल होता है।’’ इस कार्य समूह का गठन देश के निजी क्षेत्र के बैंकों में स्वामित्व से संबंधित दिशानिर्देशों और कंपनी संचालन संरचना की समीक्षा करने के लिये किया गया था। आलेख में कार्य समूह के इसी प्रस्ताव की ओर इशारा करते हुए कहा गया कि बड़े पैमाने पर तकनीकी नियामकीय प्रावधानों को तार्किक बनाये जाने के बीच यह (कार्पोट घरानों को बैंक का लाइसेंस देने संबंधी सिफारिश) सबसे महत्वपूर्ण सुझाव ‘चौंकाने वाला है।’

 

आलेख में कहा गया, ‘‘इसमें प्रस्ताव किया गया है कि बड़े कॉरपोरेट घरानों को बैंकिंग क्षेत्र में उतरने की मंजूरी दी जाये। भले ही यह प्रस्ताव कई शर्तों के साथ है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करता है: ऐसा अभी क्यों?’’ यह आलेख रघुराम राजन के लिंक्डइन प्रोफाइल पर सोमवार को पोस्ट किया गया। इसमें कहा गया, आंतरिक कार्य समूह ने बैंकिंग अधिनियम 1949 में कई अहम संशोधन का सुझाव दिया है। इसका उद्देश्य बैंकिंग में कॉरपोरेट घरानों को घुसने की मंजूरी देने से पहले रिजर्व बैंक की शक्तियों को बढ़ाना है। दोनों लेखकों ने कहा, ‘‘यदि अच्छा नियमन व अच्छी निगरानी सिर्फ कानून बनाने से संभव होता तो भारत में गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) की समस्या नहीं होती। संक्षेप में कहा जाये तो तकनीकी रूप से तार्किक बनाने पर केंद्रित आंतरिक समूह के कई सुझाव अपनाये जाने योग्य हैं, लेकिन इसका मुख्य सुझाव यानी बैंकिंग में कॉरपोरेट घरानों को उतरने की मंजूरी देना अभी पड़े रहने देने लायक है।’’ राजन और आचार्य ने कहा कि दुनिया के कई अन्य हिस्सों की तरह भारत में बैंकों को शायद ही कभी विफल होने दिया जाता है। यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक को हाल में जिस तरह से बचाया गया है, यह इसी का उदाहरण है। इसी कारण से जमाकर्ताओं को यह भरोसा होता है कि अधिसूचित बैंकों में रखा उनका पैसा सुरक्षित है। इससे बैंकों के लिये जमाकर्ताओं के रखे पैसे के बड़े हिस्से का इस्तेमाल करना आसान हो जाता है।

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