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आईबीसी के तहत दावों का सिर्फ एक-तिहाई ही वसूल, समाधान में भी ज्यादा समय: क्रिसिल

मामलों के समाधान में लगने वाला औसत समय भी 419 दिन रहा है जबकि संहिता में इसके लिए अधिकतम 330 दिन की समयसीमा तय है।

<p>आईबीसी के तहत दावों...- India TV Paisa Image Source : PTI आईबीसी के तहत दावों का सिर्फ एक-तिहाई ही वसूल

नई दिल्ली। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने बुधवार को कहा कि पांच साल पहले दिवालिया संहिता लागू होने के बाद से दिवालिया घोषित होने वाली कंपनियों के सिर्फ एक-तिहाई वित्तीय दावों की ही वसूली हो पाई है। क्रिसिल के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में सिर्फ 2.5 लाख करोड़ रुपये की ही वसूली होने से ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवाला संहिता (आईबीसी) के तहत चलाई जाने वाली समाधान प्रक्रिया पर अधिक जोर देने की जरूरत है, ताकि इसे ज्यादा कारगर बनाया जा सके। हालांकि, रेटिंग एजेंसी ने यह माना है कि यह कानून लागू होने के बाद से हालात कर्जदारों के बजाय ऋणदाताओं के अनुकूल हुए हैं। 

क्रिसिल ने बयान में कहा, ‘'आंकड़ों पर करीबी निगाह डालने पर पता चलता है कि वसूली या रिकवरी की दर और समाधान में लगने वाले समय में अभी सुधार की काफी गुंजाइश है। यह संहिता को लगातार मजबूत बनाने और समग्र पारिस्थितिकी को स्थिरता देने के लिहाज से बेहद जरूरी है।’' रेटिंग एजेंसी का यह बयान इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि बड़े मूल्य के बकाया राशि वाले मामलों में करीब पांच प्रतिशत की ही वसूली होने से चिंताएं बढ़ी हैं। दरअसल, शुरुआती दौर में बकाये की वसूली दर कहीं ज्यादा थी। क्रिसिल का मानना है कि आईबीसी कानून लागू करने के पीछे के दो अहम उद्देश्य- रिकवरी को अधिकतम करना और समयबद्ध समाधान को पूरा करने में नतीजा मिलाजुला ही रहा है। ‘‘सिर्फ कुछ बड़े मामलों में ही ज्यादा वसूली हो पाई है। अगर हम कर्ज समाधान मूल्य के लिहाज से शीर्ष 15 मामलों को अलग कर दें तो बाकी 396 मामलों में वसूली दर 18 प्रतिशत रही है। 

इसके अलावा समाधान में लगने वाला औसत समय भी 419 दिन रहा है जबकि संहिता में इसके लिए अधिकतम 330 दिन की समयसीमा तय है। अभी तक जिन मामलों का समाधान नहीं हो पाया है उनमें से 75 प्रतिशत 270 दिन से ज्यादा समय से लंबित हैं। क्रिसिल के निदेशक नितेश जैन ने कहा, 'वसूली दर कम रहने और समाधान में ज्यादा समय लगने के अलावा एक बड़ी चुनौती परिसमापन के लिए जा रहे मामलों की बड़ी संख्या भी है। 30 जून, 2021 तक स्वीकृत 4,541 मामलों में से करीब एक-तिहाई परिसमापन की स्थिति तक पहुंचे थे और रिकवरी दर सिर्फ पांच प्रतिशत थी।'’ हालांकि, उन्होंने उम्मीद जताई है कि ऐसे करीब तीन-चौथाई मामलों के बीमार या निष्क्रिय कंपनियों से संबंधित होने से आने वाले समय में वसूली दर और समाधान के समय दोनों में सुधार आएगा। 

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