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हो जाएं तैयार, 10 मार्च के बाद EMI का बढ़ सकता है बोझ

एसबीआई की रिपोर्ट कहती है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के दायरे के बाहर रिवर्स रेपो दर में 20 आधार अंकों की बढ़ोतरी करनी चाहिए

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Highlights

  • रिजर्व बैंक को रिवर्स रेपो दर में 0.20 प्रतिशत की वृद्धि का सुझाव
  • केंद्र सरकार के सकल कर्ज को 14.3 लाख करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव
  • राज्यों को मिलाकर सकल ऋण 23.3 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान

मुंबई। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की एक रिपोर्ट में पहली छमाही में ऋण वृद्धि में तेजी और जमाओं में गिरावट आने से सावधि दरें बढ़ने एवं कर्ज के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के बाद रिजर्व बैंक को रिवर्स रेपो दर में 0.20 प्रतिशत की वृद्धि का सुझाव दिया गया है। 

एसबीआई की रिपोर्ट कहती है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के दायरे के बाहर रिवर्स रेपो दर में 20 आधार अंकों की बढ़ोतरी करनी चाहिए ताकि उसे नए सरकारी ऋणपत्रों के खरीदार मिल सकें। वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में केंद्र सरकार के सकल कर्ज को बढ़ाकर रिकॉर्ड 14.3 लाख करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव रखा गया है। 

राज्यों को मिलाकर अगले वित्त वर्ष में सकल ऋण 23.3 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान जताया गया है। इसके अलावा बजट में 3.1 लाख करोड़ रुपये के भुगतान का भी प्रस्ताव है। एसबीआई समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष के मुताबिक, कर्ज बढ़ने के साथ ब्याज दरों में वृद्धि के बीच यह बजट सरकारी बॉन्ड के वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में समावेशन का जिक्र नहीं करता है। 

घोष का मानना है कि आरबीआई एमपीसी के बाहर रेपो दर में 0.20 प्रतिशत तक की वृद्धि नहीं कर सकता है क्योंकि बढ़ती जमा दरों का मतलब है कि कर्ज दरों को भी बढ़ना होगा। ऐसा नहीं होने पर बैंकों का मार्जिन घट जाएगा। घोष ने कहा कि इस परिस्थिति में रिजर्व के लिए रिवर्स रेपो दर में 20 आधार अंकों की वृद्धि करने का यह माकूल मौका है लेकिन यह काम एमपीसी के दायरे से बाहर करना होगा। उन्होंने कहा कि रिवर्स रेपो के मुख्यतः तरलता प्रबंधन का साधन होने से इसमें वृद्धि भी जरूरी है क्योंकि दर अनिश्चितता में बड़ा फासला आ गया है। 

इस रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 की पहली छमाही में ऋण सुधार के संकेत दिखाई दिए। उन्होंने कहा कि जमा दरों में वृद्धि में कोई भी देरी आने वाले समय में दरों को बढ़ा सकती है। इसके अलावा छोटी बचत दरें आकर्षक बनी हुई हैं। इस स्थिति में रेपो दर में वृद्धि की तत्काल जरूरत है। 

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