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Jagannath Temple: भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी क्यों है? यहां जानिए मंदिर से जुड़े रहस्य

Jagannath Mandir: पुरी के जगन्नाथ मंदिर में अधूरी मूर्तियों की पूजा की जाती है। यहां भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। अधूरी मूर्तियों के पीछे का इतिहास और कथा क्या है जानिए यहां।

Jagannath Temple- India TV Hindi Image Source : INDIA TV Jagannath Temple

Jagannath Temple: ओडिसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर चार पवित्र धामों में से एक है। हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जो व्यक्ति चार धाम की यात्रा करता है उसके सभी पाप दूर हो जाते हैं और जीवन सुखी, समृद्ध बन जाता है। पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान नारायण बड़े भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान है। पुरी में हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ जी की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। इस रथ यात्रा में शामिल होने के लिए भक्त दूर-दूर से यहां आते हैं। वहीं आपको बता दें कि जगन्नाथ मंदिर में अधूरी मूर्तियों की पूजा की जाती है। तो आइए जानते हैं कि आखिर इसके पीछे की वजह क्या है।

भगवान जगन्नाथ की मूर्ति क्यों रहीं अधूरी?

जहां हिंदू धर्म में अखंड या अधूरी मूर्तियों की पूजा वर्जित माना गया है। वहीं पुरी के जगन्नाथ मंदिर में अधूरी मूर्तियों की पूजा की जाती है। यहां भगवान जगन्नाथ, बलराम और देवी सुभद्रा की मूर्तियां काष्ठ यानी लकड़ियों की बनी हुई है। प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार, इंद्रद्युमन नामक राजा भगवान श्रीकृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन कृष्ण जी ने राजा को दर्शन दिए और कहा कि वह उनकी और उनके बड़े भाई बलराम, बहन सुभद्रा की लकड़ी की मूर्ति बनवाकर मंदिर में स्थापित करें। भगवान कृष्ण के आदेश का पालन करते हुए उन्होंने मूर्ति बनवाने का कार्य शुरू कर दिया लेकिन इसके लिए उन्हें कोई कारीगर नहीं मिला। तब जाकर भगवान विश्वकर्मा भेष बदलकर राजा के यहां मूर्ति बनाने पहुंचे। विश्वकर्मा जी ने राजा इंद्रद्युमन के सामने शर्त रखी कि जब तक मूर्तियां नहीं बन जाती है उनके कमरे में कोई नहीं आएगा। लेकिन एक दिन जब कमरे के अंदर से किसी तरह की आवाज नहीं आई तो उन्होंने कमरे का दरवाजा खोल दिया। जैसे ही राजा इंद्रद्युमन ने कमरे का दरवाजा खोला तो देखा कि सामने तीनों मूर्तियां अधूरी हैं। ये सब देखकर राजा दुखी और परेशान हो गए। तब भगवान कृष्ण दोबारा उनके सपने में आए और कहा कि इसी रूप में मूर्तियों को मंदिर में विराजमान कर दे। राजा ने ऐसा ही किया और तब से जगन्नाथ जी समेत बलराम और सुभद्रा की अधूरी मूर्तियों की ही पूजा होने लगी।

रथ यात्रा का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, रथ यात्रा निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर पहुंचाया जाता हैं, जहां भगवान 7 दिनों तक विश्राम करते हैं। इसके बाद भगवान जगन्नाथ की वापसी की यात्रा शुरू होती है। कहते हैं कि गुंडिचा मंदिर जगन्नाथ जी का मौसी का घर है। जगन्नाथ रथयात्रा दस दिवसीय महोत्सव होता है। इस यात्रा में भाग लेने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु देश के अलग-अलग कोनों से यहां आते हैं और भगवान के रथ को खींचकर सौभाग्य पाते हैं। कहते हैं जो भी व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होता है, उसे हर प्रकार की सुख-समृद्धि मिलती है।

मंदिर से जुड़ी बातें

जगन्नाथ मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है। जगन्नाथ मंदिर ही एक अकेला ऐसा मंदिर है जहां का प्रसाद 'महाप्रसाद' कहलाता है। महाप्रसाद को मिट्टी के 7 बर्तनों में रखकर पकाया जाता है। महाप्रसाद को पकाने में सिर्फ लकड़ी और मिट्टी के बर्तन का ही प्रयोग किया जाता है। जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा एक रहस्य यह भी है कि कितनी भी धूप में इस मंदिर की परछाई कभी नहीं बनती है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। इंडियाटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है।) 

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