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सीमा विवाद पर नहीं बनी बात तो गीदड़भभकी पर उतरा चीन, प्रोपेगेंडा वेबसाइट से करने लगा युद्ध की बातें

चीन का यह लेख साफ बताता है कि भारत के दबाव के आगे वह बौखला गया है और इसी बैखलाहट में उसने लेख में यह भी लिखा है कि अमेरिका तथा चीन के बीच बिगड़े रिश्तों का फायदा भारत उठाना चाहता है।

China started talking about war after military talks with India collapse- India TV Hindi Image Source : PTI लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर जब कोई रास्ता नहीं निकला तो चीन अब गीदड़भभकी पर उतर आया है।

बीजिंग: भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर लंबित मुद्दों हुई 13वें दौर की बात में जब कोई रास्ता नहीं निकला तो चीन अब गीदड़भभकी पर उतर आया है। चीन अपनी प्रोपेगेंडा वेबसाइट ग्लोबल टाइम्स के जरिए बातचीत सफल नहीं होने के लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा रहा है और यहां तक कहने लगा है कि सीमा विवाद की वजह से अगर दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ता है तो भारत की हार होगी। चीन शायद भूल गया है कि लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों ने बिना हथियारों के ही कैसे उसके सैनिकों को मारकर खदेड़ दिया था।

चीन ने अपनी प्रोपेगेंडा वेबसाइट ग्लोबल टाइम्स पर एक लेख लिखा है जिसमें उसने लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर हुई 13वें दौर की बैठक की असफलता का ठीकरा पूरी तरह से भारत पर फोड़ दिया है और साथ में गीदड़भभकी भी दी है। ग्लोबल टाइम्स में लिखे लेख में चीन ने कहा है कि भारत जिस तरह का बॉर्डर चाहता है वह कभी नहीं मिलेगा और इस विवाद की वजह से अगर युद्ध होता है तो भारत की हार होगी। 

चीन का यह लेख साफ बताता है कि भारत के दबाव के आगे वह बौखला गया है और इसी बैखलाहट में उसने लेख में यह भी लिखा है कि अमेरिका तथा चीन के बीच बिगड़े रिश्तों का फायदा भारत उठाना चाहता है। हालांकि अपने लेख में चीन ने यह भी लिखा है कि चीन के लोग भारत को एक महाशक्ति के तौर पर देखते हैं और यह मानते हैं कि भारत के पास सीमा विवाद को लंबा खींचने की भरपूर क्षमता है। लेख में चीन ने यह भी लिखा है कि अगर चीन को सीमा विवाद की बात लंबा खींचने की जरूरत पड़ी तो वह इसे अंत तक खींचता रहेगा। 

चीन की बौखलाहट ग्लोबल टाइम्स में लिखे लेख से साफ नजर आ रही है, लेख में चीन भारत को अवसरवादी कहने से भी नहीं चूक रहा है। बौखलाहट में लिखे गए लेख में कहा गया है कि चीन तथा अमेरिका के बीच बिगड़े रिश्तों को भारत एक अवसर के तौर पर देख रहा है। चीन के इस लेख से साफ जाहिर है कि सीमा विवाद को लेकर भारत मजबूती से उसके सामने अपना पक्ष रख रहा है और अपनी शर्तों को मनाने के लिए चीन को मजबूर कर रहा है। 

रविवार को भारत और चीन के बीच 13वें दौर की सैन्य वार्ता पूर्वी लद्दाख में लंबित मुद्दों का समाधान निकालने में किसी नतीजे पर नहीं पहुंची। भारतीय सेना ने सोमवार को कहा कि उसके द्वारा दिए गए ‘सकारात्मक सुझावों’ पर चीनी सेना सहमत नहीं लगी। भारतीय सेना ने जो वक्तव्य जारी किया, उसमें मामले पर उसके सख्त रुख का संकेत मिला।

सेना ने कहा कि रविवार को हुई बैठक में, बाकी के क्षेत्रों में मुद्दों का समाधान नहीं निकला और भारतीय पक्ष ने जोर देकर कहा कि वह चीनी पक्ष से इस दिशा में काम करने की उम्मीद करता है। सेना ने एक वक्तव्य में कहा, ‘‘वार्ता के दौरान भारतीय पक्ष ने बाकी के क्षेत्रों में मुद्दों के समाधान के लिए सकारात्मक सुझाव दिए, लेकिन चीनी पक्ष उनसे सहमत नहीं लगा और वह आगे बढ़ने की दिशा में कोई प्रस्ताव भी नहीं दे सका। अत: बैठक में बाकी के क्षेत्रों के संबंध में कोई समाधान नहीं निकल सका।’’ 

यह वार्ता पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चूशुल-मोल्दो सीमा क्षेत्र में चीन की तरफ रविवार को हुई। वार्ता करीब साढ़े आठ घंटे तक चली। चीन की पीएलए की वेस्टर्न थियेटर कमान ने एक वक्तव्य में कहा, ‘‘भारत ने तर्कहीन और अवास्तविक मांगों पर जोर दिया, जिससे वार्ता में कठिनाई हुई।’’ उसने कहा कि सीमा पर ‘‘हालात को तनावरहित और शांत करने के लिए चीन ने बहुत अधिक प्रयास किए और अपनी ओर से गंभीरता का पूरी तरह से प्रदर्शन किया।’’ 

भारतीय सेना ने कहा कि वार्ता के दौरान भारतीय पक्ष ने इस बात का उल्लेख किया कि एलएसी पर जो हालात बने वे यथास्थिति को बदलने के चीन के ‘एकतरफा प्रयासों’ के कारण पैदा हुए हैं और यह द्विपक्षीय समझौतों का उल्लंघन भी करते हैं। उसने कहा, ‘‘इसलिए यह आवश्यक है कि चीनी पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अमन और चैन की बहाली के लिए बाकी के क्षेत्रों में उचित कदम उठाए।’’ 

भारतीय पक्ष ने जोर देकर कहा कि बाकी के क्षेत्रों में लंबित मुद्दों के समाधान से द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति होगी। भारतीय पक्ष ने चीन और भारत के विदेश मंत्रियों के बीच पिछले महीने हुई वार्ता का भी जिक्र किया, जो ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन से इतर हुई थी। सेना ने कहा, ‘‘यह दुशांबे में विदेश मंत्रियों के बीच हाल में हुई बैठक में दिए गए मार्गदर्शन के अनुरूप होगा, जिसमें उनके बीच सहमति बनी थी कि दोनों पक्ष लंबित मुद्दों का जल्द से जल्द समाधान निकालेंगे।’’ 

सेना ने कहा कि दोनों पक्ष जमीनी स्तर पर स्थिरता बनाए रखने तथा संवाद कायम रखने पर सहमत हुए। सेना ने कहा, ‘‘हम उम्मीद करते हैं कि चीनी पक्ष द्विपक्षीय संबंधों के संपूर्ण परिदृश्य को ध्यान में रखेगा और द्विपक्षीय समझौतों और नियमों का पालन करते हुए लंबित मुद्दों के जल्द समाधान के लिए काम करेगा।’’ ऐसा बताया गया कि भारतीय पक्ष ने पेट्रोलिंग पॉइंट 15 (पीपी-15) से सैनिकों की वापसी की रूकी हुई प्रक्रिया का मुद्दा और देप्सांग से जुड़े मुद्दे भी वार्ता में उठाए।

चीनी सैनिकों द्वारा घुसपैठ की कोशिश की दो हालिया घटनाओं की पृष्ठभूमि में 13वें दौर की वार्ता हुई। पहला मामला उत्तराखंड के बाराहोती सेक्टर में और दूसरा अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में सामने आया था। करीब दस दिन पहले अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में यांगत्से के पास भारतीय और चीनी सैनिकों का कुछ देर के लिए आमना-सामना हुआ था। हालांकि, स्थापित प्रक्रिया के अनुसार दोनों पक्षों के कमांडरों के बीच वार्ता के बाद कुछ घंटे में मामले को सुलझा लिया गया। चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के करीब 100 जवान 30 अगस्त को उत्तराखंड के बाराहोती सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को पार कर आये थे और कुछ घंटे बिताने के बाद लौट गये थे। 

इससे पहले, भारत और चीन के बीच 31 जुलाई को 12वें दौर की वार्ता हुई थी। कुछ दिन बाद, दोनों देशों की सेनाओं ने गोगरा से अपने सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया पूरी की थी और इसे क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता की बहाली की दिशा में एक बड़ा एवं उल्लेखनीय कदम माना गया था। सेना प्रमुख एम एम नरवणे ने शनिवार को कहा था कि पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चीन की ओर से सैन्य जमावड़ा और व्यापक पैमाने पर तैनाती अगर जारी रहती है तो भारतीय सेना भी अपनी तरफ अपनी मौजूदगी बनाए रखेगी, जो ‘‘पीएलए के समान ही है।’’ 

दोनों देशों की सेनाओं के बीच सीमा पर गतिरोध पिछले साल पांच मई को शुरू हुआ था। तब पैंगोंग झील के इलाकों में दोनों ओर के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। सैन्य और राजनयिक वार्ता की श्रृंखला के परिणामस्वरूप दोनों पक्षों ने अगस्त में गोगरा क्षेत्र में सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया पूरी की। फरवरी में दोनों पक्षों ने सहमति के अनुरूप पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से सैनिकों तथा हथियारों की वापसी की प्रक्रिया पूरी की थी। एलएसी पर संवेदनशील क्षेत्र में इस समय प्रत्येक पक्ष के करीब 50,000 से 60,000 सैनिक तैनात हैं। 

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