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क्या चीन की पहेली में फंसेगा नेपाल? असंतुलन और कर्ज से कैसे पाएगा पार

नेपाल एक जीवंत शक्ति बनना चाहता है और भूटान जैसा ही ग्रास नेशनल हैप्पीनेस हासिल करना चाहता है। इसलिए उसके लिए अपने औद्योगिक और वाणिज्यिक केंद्रों के साथ भारत और इस क्षेत्र में अन्य बहुपक्षीय व्यवस्थाओं के साथ तेज, सस्ते और आसानी से सुलभ मार्गों और सुविधाओं से जुड़ने की आवश्यकता है।

Nepal China- India TV Hindi Image Source : TWITTER/PRCAMBNEPAL Representational Image

नई दिल्ली. व्यापार को सुगम बनाने के लिए बुनियादी ढांचे के विकास की आड़ में नेपाल को दिए गए चीन के सस्ते ऋणों से यह एक और कर्ज जाल में फंसने की तरफ बढ़ेगा। भारत के सरकारी सूत्रों ने यह बात कहते हुए इस पर चिंता जताई है। भारत पड़ोस के इस घटनाक्रम को करीब से देख रहा है कि किस तरह चीन हिमालयी राष्ट्र में अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए कथित तौर पर इसे अपने जाल में फंसा रहा है।

पिछले साल खबरों से पता चला था कि चीन, केन्या में मोम्बासा के बेहद लाभदायक बंदरगाह पर कब्जा कर लेगा। बीजिंग ने केन्या के रेल नेटवर्क के विकास के लिए बहुत बड़ी रकम उधार दी थी, जिसे अफ्रीकी देश चुकाने में असमर्थ है। इतना ही नहीं नैरोबी के कंटेनर डिपो पर भी चीनी अधिग्रहण का खतरा मंडरा रहा है।

हमारे पड़ोस में भी चीन ने इसी तरह के तौर-तरीकों को अपनाया जब श्रीलंका को चीनी उधार का भुगतान न करने के कारण 99 साल की लीज पर हंबनटोटा बंदरगाह चीन को सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ा। पाकिस्तान भी अब चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे परियोजना के बारे में बहुत आशावादी नहीं है। उस पर कर्ज का बोझ और इसे चुकाने का दबाव असहनीय स्तर तक बढ़ गया है। और, यह तब है जब इन अवसंरचना परियोजनाओं से लाभ बहुत कम और अनिश्चित है। 

तो, सवाल यह उठता है कि क्या नेपाल जैसे गरीब देशों को विकास को बढ़ावा देने और व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए बुनियादी ढांचे के विकास की आड़ में चीन द्वारा दिया जाने वाला कर्ज इन्हें विकास की तरफ ले जाएगा या एक और ऋण जाल में पंसा देगा। इसका जवाब कई देश भारी कीमत देकर चुका रहे हैं और वे इसे अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन शायद नेपाल का राजनीतिक नेतृत्व इस कीमत से अनजान है।

एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने कहा, "इससे पहले कि हम आगे की बात करें, चीन की ऋण-जाल कूटनीति को समझना महत्वपूर्ण है।"

इस अधिकारी ने विस्तारपूर्वक बताया कि परिवर्तनकारी अवसंरचना परियोजनाओं के लिए चीन सस्ते ऋणों की पेशकश द्वारा गरीब देशों को लुभाता है। जैसे कि वर्तमान में चीन द्वारा नेपाल को प्रस्तावित किया गया है। अधिकारी ने बताया, "फिर अगर वे देश अपना पुनर्भुगतान नहीं कर पाते तो बीजिंग ऋण राहत के बदले रियायत या अन्य लाभ की मांग कर सकता है।" इस प्रक्रिया को राजनयिक ऋण जाल के रूप में जाना जाता है।

श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह विकास परियोजना ऐसे किसी के लिए भी एक चेतावनी है, जो यह सोचता है कि उनके बुनियादी ढांचे के विकास के लिए चीन का समर्थन बिना किसी कीमत के मिलता है। कील इंस्टीट्यूट फॉर द वल्र्ड इकोनॉमी द्वारा हाल ही में प्रकाशित किए गए शोध के अनुसार, दुनिया में सात देश हैं जिनका चीन का बाहरी ऋण उनकी जीडीपी के 25 प्रतिशत से अधिक है। इनमें से जिबूती, नाइजर और कांगो गणराज्य अफ्रीका में स्थित हैं, जबकि किर्गिस्तान, लाओस, कंबोडिया और मालदीव एशिया में हैं।

चीन केवल एक ही बात समझता है और वह है अर्थशास्त्र। एक वैकल्पिक पारगमन देश की नेपाल की खोज, चीन के साथ पारगमन परिवहन समझौते को अंतिम रूप देने में सफल रही। चीन औपचारिक रूप से नेपाल को सात पारगमन बिंदु प्रदान करने के लिए सहमत हुआ। इनमें चार समुद्री बंदरगाह (तिआनजिन (शिंगैंग), शेन्जेन, लियानयुंगांग, झांजियांग और तीन भूमि बंदरगाह लान्चो, ल्हासा, जिगात्से शामिल हैं।

प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की मार्च 2016 में चीन यात्रा के दौरान पारगमन परिवहन समझौते (टीटीए) पर हस्ताक्षर हुए थे। एक अन्य सरकारी अधिकारी ने कहा, "उच्च हिमालय के मासूम लोगों को गुमराह करने के लिए दोनों सरकारों द्वारा इसका बड़े धूमधाम से जश्न मनाया गया।"

चीनी अर्थशास्त्रियों के अनुसार, नए मार्ग से नेपाल को काफी लाभ होगा लेकिन चीनी ऋण के तहत कराह रहे अन्य देशों के रणनीतिक विशेषज्ञ इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं। नेपाल के सामने मौजूद व्यापार मार्ग विकल्पों का विश्लेषण बताता है कि चीन के माध्यम से तीसरे देश और द्विपक्षीय व्यापार उद्देश्यों के लिए मार्ग, भारत के मार्ग की तुलना में महंगा साबित हो सकता है।

एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी का कहना है कि उदाहरण के लिए, 20 फीट का कंटेनर चीन के पूर्वी तट पर स्थित किसी भी बंदरगाह से नेपाल के बीरगंज तक पहुंचने में लगभग 45 दिन (वन वे) लेता है। जबकि बीरगंज के रास्ते कोलकाता या हल्दिया से काठमांडू के लिए आयात के लिए माल के पारगमन में 16 दिन लगते हैं और निर्यात में लगभग सात से आठ दिन लगते हैं।

चीन के दक्षिण-पूर्वी स्थित किसी भी चीनी बंदरगाह से बीरगंज तक का परिवहन शुल्क भारत के माध्यम से माल परिवहन करते समय भुगतान किए जाने से अधिक है। नेपाली व्यापारियों को चीनी बंदरगाहों के माध्यम से बीरगंज तक माल परिवहन के लिए उच्च कीमत चुकानी होगी। 

इसी तरह चीन के पश्चिमी औद्योगिक क्षेत्र लान्चो से आयातित सामान, तिब्बत के काइरोंग होते हुए काठमांडू पहुंचने में 35 दिन लगते हैं। लगभग 3,155 किलोमीटर की यह दूरी रेलवे और रोडवेज दोनों द्वारा कवर की जा सकती है। चीन द्वारा नेपाल को आवंटित चार बंदरगाह काठमांडू से 4,000 किलोमीटर या इससे अधिक दूर हैं।

चीनियों के अनुसार यह सभी दिक्कतें प्रस्तावित बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव रेलवे द्वारा दूर हो जाएंगी। अधिकारी ने स्पष्ट किया, "लेकिन यह भी एक और झूठ प्रतीत होता है जिसे ड्रैगन राष्ट्र नेपाल को बेचना चाहता है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) है कहां? इस तथाकथित बीआरआई का एक संक्षिप्त विश्लेषण करना जरूरी है।"

प्रस्तावित बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव रेलवे दक्षिणी तिब्बत में केरुंग शहर को नेपाल की राजधानी काठमांडू से जोड़ेगी जो रासुवा जिले में देश में प्रवेश करेगी और अंतत: भारत जाएगी। लेकिन, स्थानीय लोगों ने इसे स्पष्ट कारणों से 'कागतको रेल' (पेपर रेलवे) और 'सपनको रेल' (ड्रीम रेलवे) के रूप में करार दिया है। चीन ने नेपाल के लिए रेलवे की पूर्व-व्यवहार्यता का अध्ययन किया और इसकी रिपोर्ट में कहा कि यह एक अत्यंत कठिन परियोजना है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि चीनी अध्ययन को काफी मांग के बाद भी सार्वजनिक नहीं किया गया। यह माना जाता है कि रिपोर्ट छह चरम अवस्थाओं की बात करती है जिसमें टोपोग्राफी, मौसम, जल विज्ञान और टेक्टोनिक्स शामिल हैं जो परियोजना को बेहद चुनौतीपूर्ण या शायद असंभव बना देंगे। रिपोर्ट यह भी बताती है कि नेपाल की तरफ का लगभग 98 प्रतिशत रेलवे सुरंगों और पुलों पर लगभग पांच स्टॉपओवर के साथ होगा।

रेलवे को ऊंची पहाड़ियों पर ट्रैक बनाने की जरूरत होगी। काठमांडू में 1,400 मीटर की ऊंचाई तिब्बत में लगभग 4,000 मीटर की हो जाएगी। इस पर ट्रैक बनाना दुरूह होगा। यह रूट भूकंप के लिए भी अतिसंवेदनशील है। इन सभी सीमाओं और चुनौतियों के साथ कोई भी आसानी से समझ जाएगा कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के सपने को पूरा करना असंभव है। अगर यह 2022 तक पूरी हो जाए तो भी यह कायम नहीं रहेगी। अधिकारी ने कहा, "चीन, किसे बेवकूफ बना रहे हो। नेपाली लोग आपके जाल को समझने के लिए बहुत बुद्धिमान हैं।" 

नेपाल एक जीवंत शक्ति बनना चाहता है और भूटान जैसा ही ग्रास नेशनल हैप्पीनेस हासिल करना चाहता है। इसलिए उसके लिए अपने औद्योगिक और वाणिज्यिक केंद्रों के साथ भारत और इस क्षेत्र में अन्य बहुपक्षीय व्यवस्थाओं के साथ तेज, सस्ते और आसानी से सुलभ मार्गों और सुविधाओं से जुड़ने की आवश्यकता है।

एक आईपीएस अधिकारी ने कहा, "हमेशा विकल्पों की तलाश में रहने के बजाय नेपाल को अपने लिए कहीं अधिक सुविधानजनक सहयोगियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उसे अपने लोगों की खुशहाली के लिए भारत और बांग्लादेश के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय, दोनों स्तरों पर अपनी बातचीत जारी रखनी चाहिए। भारत हमेशा से नेपाल का समय पर खरा उतरने वाला दोस्त रहा है।"

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