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पाकिस्तान में एक के बाद एक आंदोलन जारी, इमरान खान की कुर्सी पर आया बड़ा संकट

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं।

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इस्लामाबाद: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। सत्तारूढ़ पार्टी की हालत पाकिस्तान में आसमान छूती महंगाई और बिगड़ती अर्थव्यवस्था से पार पाने की तमाम असफल कोशिशों के बीच आंदोलनों में फंसकर और भी बुरी हो गई है। सरकार अभी फजलुर रहमान के नेतृत्व में हुए बड़े आंदोलन से उबर भी नहीं पाई थी कि अब छात्रों ने देशव्यापी आंदोलन छेड़ दिया है। बड़ी बात यह है कि फजलुर रहमान का आंदोलन अभी भी पूरी तरह से शांत नहीं हुआ है। 

सरकार की जन-विरोधी नीतियों से लेकर लचर कानून व्यवस्था पर फजलुर रोजाना सरकार को खरी-खोटी सुनाते रहते हैं। इसके साथ ही वह विभिन्न विपक्षी पार्टियों व अन्य संगठनों के साथ भी संपर्क में हैं और एक बार फिर से बड़े आंदोलन की नींव रखने की तैयारी कर रहे हैं। इमरान सरकार को सत्ता से हटाने के लिए आजादी मार्च और देशव्यापी धरनों के बाद अब आंदोलन के अगले चरण पर विचार के लिए जमीयते उलेमा-ए इस्लाम-एफ (JUI-F) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने इसी सप्ताह सभी दलों का एक सम्मेलन भी बुलाया था।

JUI-F सूत्रों ने बताया कि फजलुर रहमान के पास आजादी मार्च के लिए कोई एक ही योजना नहीं है, बल्कि उनके पास प्लान ए और बी हैं। इसके अलावा वह विपक्षी दलों के इन नेताओं को सरकार को गिराने के लिए हुई गुप्त वार्ताओं की भी जानकारी दे रहे हैं। वह विपक्षी नेताओं को बता रहे हैं कि सरकार की जड़ों को कैसे काटना है। वहीं दूसरी ओर इमरान खान की नींद छात्र आंदोलन ने उड़ाकर रख दी है। छात्र संघों की बहाली, बेहतर व सुलभ शिक्षा उपलब्ध कराने व परिसरों में किसी भी तरह के लैंगिक तथा धार्मिक भेदभाव के खिलाफ पाकिस्तान के छात्र-छात्राओं ने शुक्रवार को देशव्यापी प्रदर्शन किया। 

उनके इस आंदोलन में समाज के अन्य तबकों के लोग भी शामिल हुए। सभी प्रांतों में शुक्रवार को जगह-जगह निकाले गए 'छात्र एकजुटता मार्च' में अभिव्यक्ति व दमन से आजादी की मांग करते हुए 'हमें क्या चाहिए.आजादी' के नारे लगाए गए। स्टूडेंट ऐक्शन कमेटी (SAC) के नेतृत्व में हुए इस मार्च को राजनैतिक दलों के साथ-साथ, किसान, मजदूर व अल्पसंख्यक समुदायों के संगठनों का समर्थन हासिल रहा। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस मार्च के मायने इसलिए अधिक हैं, क्योंकि इसमें विद्यार्थियों के साथ-साथ उनके माता-पिता, वकील व सिविल सोसाइटी के सदस्य भी शामिल हुए। 

इरमान सरकार की मुश्किलें यहीं पर खत्म होती नहीं दिख रही हैं, क्योंकि फजलुर रहमान व छात्रों के आंदोलन के साथ ही पाकिस्तान की आम जनता महंगाई व बेरोजगारी से त्रस्त है और इमरान खान के कुर्सी से हटने का बेसब्री से इंतजार कर रही है, जिससे अब इमरान खान को अपनी कुर्सी का डर सताने लगा है। उधर एक और बड़ा सवाल यह है कि पाकिस्तान की सीनेट में इमरान के पास बहुमत नहीं है और उन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार अगले 6 महीने में सेना प्रमुख के सेवा विस्तार पर कानून लाना होगा।

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