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Hindi News विदेश एशिया हिंसा, विद्रोह और तख्तापलट के एक साल बाद कितना बदला बांग्लादेश? जानें अब कैसे हैं हालात

हिंसा, विद्रोह और तख्तापलट के एक साल बाद कितना बदला बांग्लादेश? जानें अब कैसे हैं हालात

हिंसा और विद्रोह के बीच शेख हसीना को पिछले साल 5 अगस्त को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था। शेख हसीना का तख्तापलट होने के बाद बांग्लादेश किस हाल में है। क्या नया बांग्लादेश बन गया है या फिर बनने की राह में अग्रसर है? चलिए इस बारे में जानते हैं।

Bangladesh Protest Last Year (2024)- India TV Hindi Image Source : AP Bangladesh Protest Last Year (2024)

ढाका: बांग्लादेश में व्यापक हिंसा और विद्रोह के बीच पिछले साल 5 अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा था। भले ही हसीना ने देश दिया लेकिन अब एक साल बाद भी बांग्लादेश राजनीतिक तौर पर अस्थिर ही नजर आ रहा है। बांग्लादेश में शेख हसीना का पतन होने के बाद नए बांग्लादेश के नारे गूंज रहे थे। हसीना की सरकार का तख्तापलट होने के बाद माना जा रहा था कि यहां नई व्यवस्था लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेगी। हिंसा के भंवर में फंसे देश की कमान नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के हाथ आई लेकिन नया बांग्लादेश तो कोसों दूर अब पुराना बांग्लादेश भी वैसा नहीं है जो हसीना के कार्यकाल में था। 

'ऐसे बांग्लादेश की कल्पना नहीं'

हिंसा और विद्रोह के बीच ज्यादातर लोगों के लिए हसीना का पद छोड़ना खुशी की बात थी। ऐसे समय में मोहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में कार्यभार संभाला और व्यवस्था बहाल करने, सुधारों के बाद नए चुनाव कराने का वादा किया। हसीना की अनुपस्थिति में उन पर मानवता के खिलाफ अपराधों के आरोप में मुकदमा चल रहा है। वह इस समय भारत में निर्वासन में हैं। इतना सब होने के बाद भी अब लोगों का कहना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक सहिष्णुता का सपना अब भी अधूरा है। लोग तो यह भी कह रहे हैं कि ऐसे बांग्लादेश की कल्पना नहीं की थी। 

Image Source : apBangladesh Violence Last Year (2024)

हिंसा के बाद बांग्लादेश को मिला क्या?

‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ की एशिया मामलों की निदेशक मीनाक्षी गांगुली कहती हैं कि जो लोग एक साल पहले शेख हसीना की दमनकारी सत्ता के खिलाफ सड़कों पर उतरे थे, उनकी उम्मीदें अब भी अधूरी हैं। हसीना के खिलाफ हुए विद्रोह के दौरान सैकड़ों लोगों की मौत हुई है। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस थानों और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच खूनी संघर्ष भी हुआ। लेकिन, इतना सब होने के बाद भी सवाल वही है कि मिला क्या।

बांग्लादेश में चल क्या रहा है?

नए बांग्लादेश को स्वरूप देने के लिए यूनुस सरकार ने 11 सुधार आयोग बनाए हैं, जिनमें एक राष्ट्रीय सहमति आयोग भी शामिल है जो प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ चुनाव प्रक्रिया पर काम कर रहा है। लेकिन, अब तक चुनाव की समयसीमा और प्रक्रिया पर सहमति नहीं बन सकी है। महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़े हैं। मनमाने ढंग से हिरासत में लिए जाने के आरोप सामने आ रहे हैं। विशेषकर, शेख हसीना के समर्थकों को निशाना बनाने के आरोप हैं। हसीना की पार्टी अवामी लीग पर प्रतिबंध है और पिछले एक साल में हिरासत में उसके 24 से अधिक समर्थकों की मौत हो चुकी है। 

Image Source : apBangladesh Protest Last Year (2024)

असफल रही है यूनुस सरकार

‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ ने 30 जुलाई को कहा था कि अंतरिम सरकार अपनी मानवाधिकार प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में असफल रही है। उसने कुछ इलाकों में जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की शिकायत भी की है। देश में राजनीतिक अस्थिरता का दौर अब भी जारी है। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की अगुवाई वाली विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने दिसंबर या फरवरी में चुनाव की मांग की है, जबकि यूनुस सरकार अप्रैल में चुनाव की बात कह रही है। पूर्व में प्रतिबंधित इस्लामी दलों को यूनुस सरकार के तहत उभरने का अवसर मिला है। वहीं, आंदोलन का नेतृत्व करने वाले छात्र नेताओं ने एक नया राजनीतिक दल बना लिया है, जो संविधान में व्यापक बदलाव की मांग कर रहा है। 

बांग्लादेश के लिए खतरा हैं कट्टरपंथी ताकतें 

जमात-ए-इस्लामी जैसे दलों ने बड़ी रैलियां आयोजित की हैं, जिससे यह आशंका जताई जा रही है कि कट्टरपंथी ताकतें बांग्लादेश की राजनीति को और अधिक विभाजित कर सकती हैं। राजनीतिक विश्लेषक नजमुल अहसान कालिमुल्लाह ने कहा, ‘‘इस्लामी ताकतों का उभार दिखाता है कि भविष्य में बांग्लादेश में कट्टरता की जड़ें गहराई तक जा सकती हैं।’’ उन्होंने कहा कि यूनुस सरकार से लोगों की उम्मीद थी कि वह चुनावी प्रक्रिया में सुधार को प्राथमिकता देगी, लेकिन वह अवसर चूकती नजर आ रही है। प्रदर्शन के दौरान लोगों ने ऐसा बांग्लादेश चाहा था जहां कानून का शासन हो, जबरन गायब कर देने जैसी घटनाएं ना हों और बोलने की आजादी सुनिश्चित हो। लेकिन, क्या ऐसा बांग्लादेश बन पाया है या फिर बनने की राह में आगे बढ़ रहा है, जवाब आसान है। 

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