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पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया फैसलों की समीक्षा का कानून, क्या अब नवाज शरीफ कभी नहीं बन पाएंगे प्रधानमंत्री

पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने फैसलों की समीक्षा करने वाले कानून को रद्द करके पूर्व पीएम नवाज शरीफ के दोबारा प्रधानमंत्री बनने की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। उनके भाई व पाकिस्तान के निवर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ यह कानून लाए थे। ताकि नवाज को अपनी अयोग्ता को चुनौती देने का मौका मिल सके।

पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट।- India TV Hindi Image Source : AP पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट।

पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले से निर्वतमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की उम्मीदों को करारा झटका दिया है। साथ ही उनके बड़े भाई व पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ के दोबारा प्रधानमंत्री बनने की इच्छाओं पर भी पानी फेर दिया है। दरअसल पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को सर्वसम्मति से लिए गए एक निर्णय में अपने फैसलों की समीक्षा करने की प्रक्रिया में संशोधन करने वाले एक कानून को रद्द कर दिया। इस फैसले से सार्वजनिक पद धारण करने के लिए आजीवन अयोग्य ठहराए जाने के फैसले को चुनौती देने के इच्छुक पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की आखिरी उम्मीदें भी ध्वस्त हो गई हैं।

प्रधान न्यायाधीश उमर अता बंदियाल की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने फैसले में कहा कि उच्चतम न्यायालय (फैसलों और आदेशों की समीक्षा) कानून-2023 असंवैधानिक था। अदालत ने 87 पेज के आदेश में कहा, ‘‘संसद उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र और शक्तियों से संबंधित किसी भी मामले पर कानून नहीं बना सकती।’’ उसने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि संविधान की व्याख्या करने का अधिकार निरपेक्ष रूप से पाकिस्तान की उच्चतम न्यायालय के पास है। छह सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने 19 जून को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

पीएम शहबाज शरीफ ने बनाया था कानून

पाकिस्तान सरकार ने मई में अपने मूल अधिकार क्षेत्र के तहत उच्चतम न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अपील दायर करने का अधिकार देने के लिए कानून बनाया था। निवर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के बड़े भाई नवाज शरीफ को वर्ष 2017 में शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय पीठ ने अयोग्य घोषित कर दिया था, लेकिन वह अपील दायर नहीं कर सके, क्योंकि उच्चतम न्यायालय के फैसले को चुनौती देने के लिए कोई कानून नहीं था। वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद नवाज (73) सार्वजनिक पद संभालने के लिए आजीवन अयोग्य हो गए थे। पूर्व प्रधानमंत्री नवंबर 2019 से चिकित्सीय उपचार के लिए लंदन में हैं, जब पाकिस्तानी अदालत ने उन्हें चार सप्ताह की राहत दी थी।

अब नवाज नहीं बन पाएंगे पाकिस्तान के पीएम

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से नवाज शरीफ अब कभी भी पाकिस्तान के पीएम नहीं बन पाएंगे। क्योंकि उनके पास दोबारा अपील का अधिकार अब नहीं है। ऐसे में वे आजीवन ऐसे सार्वजनिक पद ग्रहण करने के लिए अयोग्य बने रहेंगे। तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे नवाज लंदन रवाना होने से पहले अल-अजीजिया भ्रष्टाचार मामले में लाहौर स्थित कोट लखपत जेल में सात साल कारावास की सजा काट रहे थे। उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद-62 के तहत नेता जहांगीर तरीन को भी अयोग्य ठहराया था। जियो न्यूज की खबर में कहा गया है कि यदि आज का फैसला याचिकाकर्ताओं के पक्ष में रहा होता, तो दोनों नेताओं को अपनी अयोग्यता को चुनौती देने का मौका मिल जाता। प्रधान न्यायाधीश उमर अता बंदियाल की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने विवादास्पद कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करने के बाद फैसला सुनाया। उन्होंने कहा, ‘‘यह अच्छी परंपरा नहीं है कि अदालतें बार-बार संसद के कामकाज में हस्तक्षेप करें और ऐसे फैसले दें, जो इसकी स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचाएं।

अदालत ने फैसले में क्या कहा

न्यायमूर्ति इजाजुल अहसन और न्यायमूर्ति मुनीब अख्तर भी इस पीठ में शामिल थे। विस्तृत फैसले में कहा गया है कि यह कानून संसद की विधायी क्षमता से परे होने के साथ-साथ ‘संविधान के प्रतिकूल’ है। आदेश में कहा गया है, ‘‘तदनुसार इसे अमान्य मानते हुए रद्द किया जाता है और इसका कोई विधिक असर नहीं होगा।’’ अदालत ने कहा कि यह कानून उच्चतम न्यायालय की शक्तियों और क्षेत्राधिकार के सामान्य कानून में हस्तक्षेप करने का एक प्रयास था। अदालत द्वारा कानून रद्द करने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने जियो न्यूज से कहा कि फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। कानून को निष्प्रभावी घोषित किए जाने के बाद नवाज शरीफ के भाग्य के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि फैसले का पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के सर्वोच्च नेता की अयोग्यता के मामले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

चीफ जस्टिस के अधिकारों को कम करना चाहते थे शहबाज

 यह कानून तब लाया गया था, जब पंजाब और खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत में चुनाव कराने पर मतभेद के कारण कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच तनाव बढ़ गया था। चूंकि, प्रधान न्यायाधीश बंदियाल स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई कर रहे थे, इसलिए सरकार ने स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करने की उनकी विवेकाधीन शक्तियों को कम करने और ऐसे मामलों पर आगे बढ़ने के लिए न्यायाधीशों के पैनल का गठन करने के लिए जल्दबाजी में एक कानून पारित किया था। कानून ने स्वत: संज्ञान क्षेत्राधिकार के तहत अदालत द्वारा लिए गए निर्णयों के खिलाफ समीक्षा के दायरे को भी बढ़ा दिया था और ऐसे निर्णयों से प्रभावित सभी लोगों को अपील दायर करने की अनुमति दे दी थी। (भाषा)

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