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Hindi News विदेश यूरोप Vladimir Putin Birthday: गरीबी में पले-बढ़े, पिता फैक्ट्री में तो मां करती थी छोटे-मोटे काम; बेटा बना दुनिया का ताकतवर नेता

Vladimir Putin Birthday: गरीबी में पले-बढ़े, पिता फैक्ट्री में तो मां करती थी छोटे-मोटे काम; बेटा बना दुनिया का ताकतवर नेता

व्लादिमीर पुतिन की कहानी बताती है कि महानता किसी विलासिता से नहीं, बल्कि संघर्ष से जन्म लेती है। लेनिनग्राद की तंग गलियों से क्रेमलिन तक का सफर पुतिन ने अपनी मेहनत, अनुशासन और अटूट विश्वास से तय किया है।

Vladimir Putin- India TV Hindi Image Source : @EMBASSYOFRUSSIA (X) Vladimir Putin

Vladimir Putin Birthday: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर व्लादिमीरोविच पुतिन आज 7 अक्तूबर 2025 को अपना 73वां जन्मदिन मना रहे हैं। दुनिया उन्हें एक रहस्यमयी और ताकतवर नेता के रूप में जानती है, जिन्होंने रूस को दुनिया के सबसे ताकतवर देशों में बनाए रखा है। पिछले कुछ महीनों से पुतिन यूक्रेन युद्ध और दुनिया के कई देशों से अलगाव जैसी बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। लेकिन, उनके लिए यह नई बात नहीं है। उन्होंने अपने जीवन में ऐसे उतार-चढ़ाव बहुत देखे हैं।

पुतिन की कहानी

पुतिन की कहानी एक ऐसे शख्स की कहानी है, जो सोवियत संघ के सबसे गरीब इलाकों में चूहों से लड़ते हुए बड़ा हुआ, जहां उसके पिता कारखाने की मशीनों के बीच पसीना बहाते थे और मां सड़कों पर झाड़ू लगाती थीं। फिर, पुतिन कैसे दुनिया के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक बन गए? आज हम आपको पुतिन की जिंदगी के उन पन्नों के बारे में बताएंगे जिनमें गरीबी की काली रातों से शुरू होकर सत्ता के चमकदार महल तक पहुंचने की उनकी यात्रा लिखी है। 

लेनिनग्राद में हुआ था पुतिन का जन्म

व्लादिमीर पुतिन का जन्म 7 अक्टूबर 1952 को लेनिनग्राद में हुआ था। यह शहर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नाजी जर्मनी की घेराबंदी से बुरी तरह जूझ चुका था। पुतिन के पिता व्लादिमीर स्पिरिडोनोविच पुतिन और मां मारिया इवानोव्ना शेलोमोवा को इस जंग ने बहुत सारे जख्म दिए थे। उनके 2 बड़े बच्चे पहले ही काल का ग्रास बन गए थे। एक बच्चे की मौत डिप्थीरिया से हुई थी और दूसरा बचपन में किसी बीमारी से चल बसा था। पुतिन को परिवार का 'मिरैकल चाइल्ड' कहा जाता था, क्योंकि वह ऐसे समय पैदा हुए जब उनके घर में बहुत अभाव था और मां को अक्सर भूखे पेट रहना पड़ता था।

Image Source : apVladimir Putin

बचपन में चूहों से जंग लड़ते थे पुतिन

पुतिन के पिता एक मेटल फैक्ट्री में फोरमैन थे। जंग के दौरान वह बुरी तरह घायल हो चुके थे। उन्हें गोली लगी थी, जिसके बाद वे कभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो सके। मां मारिया तरह-तरह के छोटे-मोटे काम किया करती थीं जैसे कि कभी सड़कों की सफाई, कभी फैक्ट्रियों में मजदूरी। घर में बिजली-पानी जैसी बेसिक सुविधाएं भी नहीं थीं, और परिवार 3 अन्य परिवारों के साथ एक छोटे से अपार्टमेंट में रहता था। वहां ना गर्म पानी था, ना शौचालय, और चूहे अलग ही उपद्रव मचाते थे। पुतिन ने खुद अपनी किताब 'फर्स्ट पर्सन' में लिखा है कि बचपन में वो दोस्तों के साथ डंडे लेकर चूहों का पीछा करते थे। तो इस तरह पुतिन के माता-पिता पूरे दिन काम पर रहते और वह अकेले सड़कों पर घूमते रहते।

शुरुआत में ही सीखी पीछे ना हटने की कला

बचपन में पुतिन को पड़ोसियों के बच्चे अक्सर धमकाते थे, और वह भी बिना पीछे हटे डटकर मुकाबला करते। कहीं ना कहीं इन्हीं झगड़ों ने उन्हें सिखाया कि कमजोर ना बनो, अपनी लड़ाई लड़ो और जीतो। स्कूल के दिनों में पुतिन एक औसत छात्र थे। वो जूडो की क्लास लेते थे, जो उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट बना। जूडो ने उन्हें अनुशासन सिखाया। 1970 के दशक में, जब वो लेनिनग्राद स्टेट यूनिवर्सिटी में कानून पढ़ रहे थे, तो उन्हें जासूसी फिल्मों ने आकर्षित किया। 'द शील्ड एंड द स्वॉर्ड' जैसी सोवियत फिल्में देखकर वो सोवियत खुफिया एजेंसी केजीबी में शामिल होने का सपना देखने लगे।

'बर्लिन वॉल' के पतन ने दी बड़ी सीख

ग्रेजुएशन के बाद 1975 में वो KGB में भर्ती हो गए। यहां उनकी जासूसी वगैरह की ट्रेनिंग शुरू हुई। 1985 से 1990 तक वो पूर्व जर्मनी के ड्रेस्डेन में तैनात रहे, जहां वो NATO के राज उगलवाने की कोशिश करते। लेकिन, बर्लिन वॉल गिरने पर उन्हें अचानक सारा काम रोकना पड़ा और केजीबी के दस्तावेज बचाने के लिए उन्होंने उनमें आग लगा दी। इस अनुभव ने उन्हें सिखा दिया कि अराजकता में मजबूत केंद्रीय सत्ता कितनी जरूरी है।

तेजी से सियासत में आगे बढ़े पुतिन

सोवियत संघ के विघटन के बाद 1991 में पुतिन KGB छोड़कर लेनिनग्राद लौट आए। यहां किस्मत ने उनका साथ दिया। वो अपने पुराने प्रोफेसर अनातोली सोबचाक के सहायक बने, जो शहर के नए मेयर चुने गए थे। सोबचाक ने पुतिन को विदेशी निवेश और पैसों के मैनेजमेंट का जिम्मा सौंपा। पुतिन की मेहनत रंग लाई। वो 1994 तक डिप्टी मेयर बन गए। यह दौर रूस के लिए उथल-पुथल भरा था। अर्थव्यवस्था चरमरा रही थी, अपराध बढ़ रहा था, और पूर्व सोवियत राज्यों में अस्थिरता फैल रही थी। लेकिन पुतिन चुपचाप नेटवर्क बनाते रहे।

Image Source : (सोर्स: पब्लिक डोमेन)पुतिन केजीबी ऑफिसर

FSB में सख्त कार्रवाई से बनाई पहचान

1996 में सोबचाक चुनाव हार गए, तो पुतिन मॉस्को चले गए। यहां वो राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के प्रशासन में शामिल हो गए। येल्तसिन की टीम में वो चुपके-चुपके ऊपर चढ़ते गए। सबसे पहले क्रेमलिन के डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ, फिर 1998 में फेडरल सिक्योरिटी सर्विस के डायरेक्टर बन गए। FSB में उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई की, जो येल्तसिन को पसंद आई। 1999 में पुतिन की किस्मत चमकी जब येल्तसिन ने उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया। उसी साल चेचन्या में अलगाववादियों के हमलों ने रूस को हिला दिया।

चेचन्या की लड़ाई से शिखर तक पहुंचे

पुतिन ने सख्ती से जवाब दिया। उन्होंने सेना भेजी, और चेचन्या पर कब्जा कर लिया। यह 'दूसरा चेचन युद्ध' उनकी लोकप्रियता का राज बना। जनता को एक मजबूत नेता दिखा, जो 1990 के दशक की अराजकता को खत्म कर सकता था। 31 दिसंबर 1999 को येल्तसिन ने इस्तीफा दे दिया, और पुतिन कार्यवाहक राष्ट्रपति बन गए। मार्च 2000 के चुनाव में उन्होंने 53 फीसदी वोटों से जीत हासिल की। 2004 में वो दोबारा चुने गए, फिर 2008 में संविधान के नियम से राष्ट्रपति पद छोड़ना पड़ा, तो वो प्रधानमंत्री बने। 2012 में फिर राष्ट्रपति, और 2024 में संवैधानिक बदलाव से अब वह 2036 तक सत्ता में रहेंगे।

रूस की सत्ता पर मजबूती से काबिज हैं पुतिन

इस तरह देखा जाए तो पुतिन को दुनिया के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक बनाने में उनकी जिंदगी की घटनाओं ने अहम रोल अदा किया। बचपन की गरीबी ने उन्हें कठोर बनाया और यही वजह है कि पुतिन कभी शिकायत नहीं करते, बल्कि मौके तलाशने में लगे रहते हैं। जूडो ने उन्हें सिखाया कि गिरकर भी उठना जरूरी है। साथ ही उन्हें सही समय पर सही लोगों का साथ मिला। रूस की तत्कालीन परिस्थितियों ने भी उन्हें आगे बढ़ाने में मदद की। 1999 में  पहली बार सत्ता पर नियंत्रण करने के बाद से पुतिन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज 25 साल से ज्यादा का वक्त बीतने के बाद भी रूस के सर्वेसर्वा हैं।

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