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Hindi News लाइफस्टाइल हेल्थ रिसर्च: आलसी लोगों के लिए खुशखबरी, उनमें होती है ये खास क्वालिटी

रिसर्च: आलसी लोगों के लिए खुशखबरी, उनमें होती है ये खास क्वालिटी

आलसी लोगों के बारे में आपने कई तरह की बात सुनी होगी और देखा भी होगा लेकिन आज के इस रिसर्च के बात शायद ही आप किसी आलसी के बारे में बुरा बोलेंगे।

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नई दिल्ली: आलसी लोगों के बारे में आपने कई तरह की बात सुनी होगी और देखा भी होगा लेकिन आज के इस रिसर्च के बात शायद ही आप किसी आलसी के बारे में बुरा बोलेंगे।अगर आप दिन भर सोफा पर पड़े रहना पसंद करते हैं, आराम करने के लिए आप थकने का इंतजार नहीं करते हैं, ज्यादातर अपनी एनर्जी बचाकर रखते हैं, सोने के लिए जगह और समय नहीं देखते तो आप आलसी की कैटिगरी में आते हैं। हालांकि आलसीपन को लेकर हमेशा दुखी रहने की जरूरत नहीं है क्योंकि आने वाले समय में ये चीजें आपके हक में हो सकती हैं। 

ये तो आपने कई बार सुना होगा कि आलसी लोग ज्यादा इंटेलिजेंट होते हैं। अब इस खबर से शायद आपको अपने आलसी होने का दुख-दर्द कम हो जाएगा। दरअसल, यूनिवर्सिटी ऑफ कैनजस की एक स्टडी में रिसर्चरों ने पाया है कि क्रमिक विकास 'सर्वाइवल ऑफ द लेजिएस्ट' यानी आलसियों के अस्तित्व के पक्ष में हो सकता है।

शोधकर्ताओं ने इस स्टडी में करीब 50 लाख वर्षों की अवधि तक में 299 प्रजातियों के मेटाबोलिक रेट्स (एक निश्चित अवधि में किसी जीव द्वारा खपत ऊर्जा की दर) का अध्ययन किया। वैज्ञानिकों ने विश्लेषण करने पर पाया कि ज्यादा मेटाबोलिक दर प्रजातियों के विलुप्त होने का संकेत कर रहे थे।

स्टडी कर रहे डॉक्टर स्ट्रोट्ज ने कहा, हम हैरान रह गए, क्या आप किसी जीव के उसकी ऊर्जा की खपत के आधार पर उसके विलुप्त होने की संभावना बता सकते हैं? हमने पिछले 50 लाख वर्षों के दौरान विलुप्त हुई घोंघे की प्रजाति और वर्तमान में अस्तित्व में घोंघे की प्रजाति के बीच एक अंतर पाया। जो प्रजातियां विलुप्त हुई हैं, उनका मेटाबोलिक रेट मौजूदा प्रजाति से बहुत ज्यादा था।(सावधान! अगर आपकी मांसपेशियां है कमजोर, तो समझ लों कि आपकी मौत जल्द: स्टडी)

जिन जीवों की ऊर्जा जरूरतें कम होती हैं, उनका अस्तित्व लंबे समय तक बचे रहने की संभावना होती है जबकि जो प्रजातियां ज्यादा सक्रिय और ज्यादा ऊर्जा जरूरत वाली होती हैं, उनका अस्तित्व कम समय तक रह सकता है। स्टडी में कहा गया है कि क्रमिक विकास में अब आलसी और सुस्त रहने की रणनीति सबसे बेहतर साबित होगी। स्टडी में शामिल एक दूसरे शोधकर्ता प्रोफेसर ब्रूस लिबरमैन ने कहा, 'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट' (योग्यतम उत्तरजीविता का सिद्धांत) के बजाए अब 'सर्वाइवल ऑफ लेजिएस्ट' का इस्तेमाल करना ज्यादा सही रहेगा।(सिर्फ 10 रुपये में हर स्टेज का कैंसर खत्म करने का दावा, घर में ही मौजूद है ट्रिटमेंट)

यह स्टडी 'प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसायटी बी' में प्रकाशित हुई है। स्ट्रोट्ज ने कहा, इस स्टडी की मदद से यह भविष्यवाणी करने में आसानी होगी कि जलवायु परिवर्तन के दौर में आने वाले वक्त में किस प्रजाति के विलुप्त होने की ज्यादा आशंका होगी। एक तरह से हम किसी प्रजाति के विलुप्त होने की संभावना बताने की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने आगे कहा, जीवों की प्रजातियों के स्तर पर मेटाबोलिक रेट ही किसी प्रजाति के विलुप्त होने का एक मात्र फैक्टर नहीं होगा, इसके पीछे और भी वजहें हो सकती हैं। लेकिन किसी जीव का मेटाबोलिक रेट भी विलुप्त होने का एक घटक हो सकता है। स्ट्रोट्ज ने कहा कि उन्होंने अपनी रिसर्च में घोंघे को इसलिए चुना क्योंकि इसकी जीवित और विलुप्त प्रजातियों पर पहले से काफी डेटा उपलब्ध है। रिसर्च टीम के मुताबिक, अब इस बात का अध्ययन किया जाएगा कि मेटाबोलिक रेट का अन्य जानवरों के विलुप्त होने पर किस हद तक असर पड़ता है? 

 

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