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Kartik Purnima 2021: कार्तिक पूर्णिमा आज, जानिए स्नान-दान और पूजा का शुभ मुहूर्त

कार्तिक पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन गंगा स्नान, दीपदान और भगवान की आराधना करने का विशेष महत्व है।

Kartik Purnima 2021 November - India TV Hindi Image Source : INSTGRAM/DHARMGYAN01 Kartik Purnima 2021 November 

Highlights

  • 19 नवंबर को स्नान-दान की कार्तिक पूर्णिमा मनाई जाएगी।
  • कुछ दान करने से मिलता है कई गुना फल
  • भगवान कार्तिकेय की पूजा का विशेष महत्व

पूर्णिमा तिथि दोपहर 2 बजकर 26 मिनट तक रहेगी। उसके बाद मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि लग जायेगी। लिहाजा, 19 नवंबर को स्नान-दान की कार्तिक पूर्णिमा है । इस बार पूर्णिमा तिथि दो दिनों की होने से पूर्णिमा का व्रत तो आज ही किया जा रहा है और शुक्रवार को स्नान-दान किया जा रहा है।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान-दान का बहुत ही महत्व होता है, साथ ही जब कार्तिक पूर्णिमा कृतिका नक्षत्र से युक्त होती है तो ये महाकार्तिकी पूर्णिमा कहलाती है और शास्त्रों में इसको बड़ा ही पुण्यकारी बताया गया है। संयोग की बात ये है कि इस बार कार्तिक पूर्णिमा के दिन कृतिका नक्षत्र भी है।

कार्तिक पूर्णिमा को स्नान, दान और हवन आदि का बहुत ही महत्व है। किसी तीर्थ स्थल पर स्नान करने से वर्ष भर तीर्थस्थलों पर स्नान का फल मिलता है, साथ ही जो भी कुछ दान किया जाये, उसका कई गुना लाभ मिलता है । वास्तव में कार्तिक मास की पूर्णिमा मनुष्य के अंदर छुपी बुराईयों को, निगेटिविटी को, अहंकार, काम, क्रोध, लोभ और मोह को दूर करने में सहायता करती है और जीवन में पॉजिटिविटी, प्रसन्नता और पवित्रता का संचार करती है।

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कार्तिकेय भगवान की पूजा का विशेष महत्व

पूरे साल भर में से कार्तिक पूर्णिमा को ही भगवान कार्तिकेय जी के ग्वालियर स्थित मन्दिर के कपाट खुलते हैं और उनकी पूजा- अर्चना की जाती है । बाकी साल भर मन्दिर के कपाट बंद रहते हैं । 

पौराणिक तथ्यों के आधार पर एक बार कार्तिकेय जी के द्वारा उनके दर्शन न किये जाने के श्राप से परेशान मां पार्वती और शिवजी ने कार्तिकेय जी से प्रार्थना की और कहा कि वर्षभर में कोई एक दिन तो होगा, जब आपका दर्शन-पूजन किया जा सके। तब भगवान कार्तिकेय ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने दर्शन की बात कही । इसीलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान कार्तिकेय जी के दर्शन-पूजन का इतना महत्व है।

कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर गंगा स्नान या घर पर स्नान कर लें। इसके बाद भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करें। स्नान करने के बाद हाथ में कुश लें और दान देते हुए संकल्प लें। इससे आपको पूरा लाभ मिलेगा। इस दिन व्रत रखें। अगर नहीं हो सकता है तो कम से कम 1 समय तो जरूर रखें। इसके बाद श्री सूक्त और लक्ष्मी स्त्रोत का पाठ करते हुए हवन करें। इससे महालक्ष्मी प्रसन्न होगी। रात को विधि-विधान के साथ भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करें। इसके बाद सत्यनारायण की कथा सुनें या पढ़े। भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आरती उतारने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य दें। 

कार्तिक पूर्णिमा कथा

पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था। उसके तीन पुत्र थे - तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए। तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्मजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा। 
 
तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।

तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया। 

इस दिव्य रथ की हर एक चीज़ देवताओं से बनीं। चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने। इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चाल घोड़े बनें। हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बनें। भगवान शिव खुद बाण बनें और बाण की नोक बने अग्निदेव। इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव। 

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