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जानिए, आखिर मंदिर जाने में क्यों बजाते हैं घंटी

मंदिर के द्वार पर और विशेष स्थानों पर घंटी या घंटे लगाने का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। लेकिन आप जानते है कि इन घंटी को लगाने का पौराणिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी है।

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धर्म डेस्क: हिंदू धर्म के रीति-रिवाज, परंपराएं ऐसी है। जिसके कारण पूरी दुनिया के लोग इसे जानने और समसझने के लिए खीचें चले आते है। हिंदू धर्म में कई ऐसे ही कुछ बातें है। जिनके बारें में शायद ही हम जानते है। इन्ही में से एक हैं मंदिर जाने से पहले घंटा बजाने की पंरपरा। मंदिर के द्वार पर और विशेष स्थानों पर घंटी या घंटे लगाने का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। लेकिन आप जानते है कि इन घंटी को लगाने का पौराणिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी है।

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ऐसा नहीं है कि सिर्फ हिंदू मंदिर में ही आपको घंटी लगे मिले, बल्कि ये घंटी ईसाई, बौद्ध धर्म में भी आपको देखने में मिल जाएगे। जहां जैन और हिन्दू मंदिर में घंटी लगाने की परंपरा की शुरुआत प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने शुरू की थी। इस परंपरा को ही बाद में बौद्ध धर्म और फिर ईसाई धर्म ने अपनाया। बौद्ध जहां स्तूपों में घंटी, घंटा, समयचक्र आदि लगाते हैं तो वहीं चर्च में भी घंटी लगाई जाती है।

आमतौर में घंटी चार तरह की होती है।
1. गरूड़ घंटी- गरूड़ घंटी छोटी-सी होती है जिसे एक हाथ से बजाया जा सकता है।
2. द्वार घंटी- यह द्वार पर लटकी होती है। यह बड़ी और छोटी दोनों ही आकार की होती है।
3. हाथ घंटी- पीतल की ठोस एक गोल प्लेट की तरह होती है जिसको लकड़ी के एक गद्दे से ठोककर बजाते हैं।
4. घंटा-  यह बहुत बड़ा होता है। कम से कम 5 फुट लंबा और चौड़ा। इसको बजाने के बाद आवाज कई किलोमीटर तक सुनाई देती है।

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