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मार्गशीर्ष पूर्णिमा आज, जानें चंद्रोदय का सही समय और पूजा विधि

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की उदया तिथि के साथ मार्गशीर्ष पूर्णिमा लग रही हैं। जो हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व रखती है। जानें पूजा विधि और चंद्रोदय का समय।

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मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की उदया तिथि चतुर्दशी सुबह 10 बजकर 59 मिनट तक ही रहेगी, उसके बाद पूर्णिमा शुरू हो जाएगी जोकि गुरुवार को सुबह 10 बजकर 42 मिनट तक रहेगी और पूर्णिमा तिथि के दौरान पूर्ण चांद रात को ही दिखेगा।  चंद्रोदय का समय है शाम 4 बजकर 35 मिनट तक है। लिहाजा व्रतादि की पूर्णिमा मनायी जाएगी और सूर्योदय के समय पूर्णिमा का स्नान-दान किया जायेगा। मार्गशीर्ष माह की इस पूर्णिमा को अगहन पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इसे मार्गशीर्ष पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि किसी भी महीने की पूर्णिमा के दिन जो नक्षत्र पड़ता है, उसी के आधार पर पूर्णिमा का नाम भी रखा जाता है। चूंकि पूर्णिमा तिथि गुरुवार तक रहेगी और इस दिन मृगशीर्ष या मृगशिरा नक्षत्र है, इसलिए इस पूर्णिमा को मार्गशीर्ष पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस पूर्णिमा का बहुत अधिक महत्व होता है। 

शास्त्रों के अनुसार इस माह को श्री कृष्ण का माह माना जाता है। इस बारे में उन्होंने खुद कहा है कि ''मैं मार्गशीर्ष माह हूं तथा सत युग में देवों ने मार्ग-शीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही साल का प्रारम्भ किया था।' सनातन धर्म के अनुसार माना जाता है कि इस माह से ही सतयुग काल का आरंभ हुआ था। इस दिन स्नान, दान करने से कई गुना फल अधिक मिलता है। जानिए पूर्णिमा की पूजा विधि और महत्व के बारे में।

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मार्गशीर्ष पूर्णिमा की पूजा विधि
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन व्रत एवं पूजन करने सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन मन को पवित्र करके स्नान करें और सफेद रंग के वस्त्र धारण करें। इसके बाद विधि-विधान के साथ भगवान विष्णु की पूजा करें। हो सके तो इस दिन किसी योग पंडित से पूजा कराएं।

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। इस दिन सत्यनारायण की कथा सुनना और पढ़ना बहुत शुभ माना गया है। इस दिन भगवान नारायण की पूजा धूप, दीप आदि से करें। इसके बाद चूरमा का भोग लगाएं। यह इन्हें अतिप्रिय है। बाद में चूरमा को प्रसाद के रुप में बांट दें।

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पूजा के बाद ब्राह्मणों को दक्षिणा देना न भूलें। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आपके ऊपर कृपा बरसाते है। पौराणिक मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अमृत बरसाता है। इस दिन बाहर खीर रखना चाहिए। फिर इसका दूसरे दिन सेवन करें। अगर आपके कुंडली में चंद्र ग्रह दोष है, तो इस दिन चंद्रमा की पूजा करना चाहिए। साथ ही लड़कियों को वस्त्र दान करें।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व
जिस तरह कार्तिक, माघ, वैशाख की पूर्णिमा का विशेष महत्व गंगा स्नान करने से होता है। उसी प्रकार इस दिन स्नान करना अति शुभ एवं उत्तम माना गया है। मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व अधिक होता है। इश दिन व्रत करके भगवान विष्णु की पूजा करने से अबोघ फल की प्राप्ति होती है।

इस दिन नदियों या सरोवरों में स्नान करने तथा साम‌र्थ्य के अनुसार दान करने से सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा पुण्य कि प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन दान-पुण्य करने से वह बत्तीस गुना फल प्राप्त होता है अत: इसी कारण मार्गशीर्ष पूर्णिमा को बत्तीसी पूनम भी कहा जाता है।

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