भारत सरकार के नए रोजगार रिपोर्ट ने देश के आम कर्मचारी और मजदूरों की कमाई पर बड़ा खुलासा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले सात वर्षों में सैलरी बढ़ने के साथ ही नौकरी के अवसर और रोजगार की क्वालिटी में भी सुधार दर्ज किया गया है। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या यह बढ़ोतरी आसमान छूती महंगाई के सामने पर्याप्त है?
7 साल में 4,565 रुपये की बढ़ोतरी
श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, रेगुलर सैलरी पाने वाले कर्मचारियों की औसत मासिक आय जुलाई-सितंबर 2017 में 16,538 रुपये थी, जो अप्रैल-जून 2024 तक बढ़कर 21,103 रुपये हो गई। यानी 7 साल में औसतन 4,565 रुपये का इजाफा हुआ। वहीं, कैजुअल लेबर यानी दिहाड़ी मजदूरों की औसत रोजाना कमाई 294 रुपये से बढ़कर 433 रुपये हो गई।
बेरोजगारी दर में 50% की गिरावट
सरकार ने रोजगार के मोर्चे पर इसे पॉजिटिव संकेत बताते हुए कहा कि देश की बेरोजगारी दर 2017-18 के 6% से घटकर 2023-24 में 3.2% हो गई है। युवाओं में बेरोजगारी दर भी 17.8% से घटकर 10.2% पर आ गई है, जो ग्लोबल एवरेज 13.3% से कम है। अगस्त 2025 में पुरुषों की बेरोजगारी दर घटकर 5% पर आ गई, जो पिछले चार महीनों में सबसे कम है।
औपचारिक रोजगार में उछाल
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने बताया कि 2024–25 में अब तक 1.29 करोड़ नए सब्सक्राइबर जुड़े हैं। सितंबर 2017 से अब तक 7.73 करोड़ से ज्यादा नेट सब्सक्राइबर जुड़े हैं। सिर्फ जुलाई 2025 में ही 21.04 लाख लोग EPFO से जुड़े, जिनमें से 60% युवा (18-25 आयु वर्ग) थे। यह संकेत है कि रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं और कर्मचारी लाभों के प्रति जागरूकता भी बढ़ी है।
बदल रहा रोजगार का पैटर्न
रिपोर्ट के मुताबिक, देश में स्वरोजगार का अनुपात 2017-18 के 52.2% से बढ़कर 2023-24 में 58.4% हो गया है। वहीं, कैजुअल लेबर का अनुपात घटकर 19.8% पर आ गया है। यानी लोग धीरे-धीरे नौकरी से हटकर स्वरोजगार और उद्यमिता की ओर बढ़ रहे हैं।
बड़ा सवाल- महंगाई के सामने कितनी टिकाऊ ये सैलरी?
हालांकि आंकड़े बढ़ोतरी की कहानी कहते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि महंगाई की दर के मुकाबले यह बढ़ोतरी कितनी राहत दे रही है, यह बहस का विषय है। पेट्रोल-डीजल, किराना से लेकर हाउस रेंट तक हर चीज महंगी हुई है। आम लोगों की जेब पर इसका असर कितना पड़ा है, यह आने वाले समय में साफ होगा।
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