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फंसा कर्ज, ऋण धोखाधड़ी के मामले बढ़ने से बैंक ले रहे हैं जासूसों की सेवा

गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) के बढ़े बोझ और ऋण धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों के चलते बैंक निजी जासूसों की सेवा ले रहे हैं।

लोन देने से पहले बैंक ले रहे हैं जासूसों की मदद, धोखाधड़ी के बढ़ते मामले को देखते हुए उठाया कदम- India TV Paisa लोन देने से पहले बैंक ले रहे हैं जासूसों की मदद, धोखाधड़ी के बढ़ते मामले को देखते हुए उठाया कदम

नई दिल्ली। गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) के बढ़े बोझ और ऋण धोखाधड़ी के बढ़ते मामलों के चलते बैंक निजी जासूसों की सेवा ले रहे हैं, ताकि करोड़ों रुपए का चूना लगाने वाले चूककर्ताओं के खिलाफ वह गुप्त अभियान चलाकर उनके बारे में जानकारियां जुटा सकें। हाल ही में बंद पड़ी किंगफिशर एयरलाइंस के मालिक विजय माल्या द्वारा धोखाधड़ी करने के मामले के काफी चर्चा में आने के बाद बैंकों ने चूककर्ताओं के बारे में जानकारियां एकत्रित करने के लिए निजी जासूसों से संपर्क किया है और इस संबंध में विज्ञापन भी दिए हैं। आधिकारिक रिकॉर्डस के अनुसार, कुछ बैंकों ने अपने संपत्ति वसूली विभागों के साथ निजी जासूसी एजेंसियों को जोड़ा है, जिससे लापता या फरार चूककर्ता की मौजूदा स्थिति का पता लगाया जा सके और साथ ही उसके मौजूदा व्यवसाय, आय के स्रोतों इत्यादि के बारे में भी जानकारी जुटाई जा सके।

एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट डिटेक्टिव्स ऑफ इंडिया (एपीडीआई) के चेयरमैन कुंवर विक्रम सिंह ने कहा, हम ऐसे मामलों में पिछले कुछ सालों से बैंकों का सहयोग कर रहे हैं, लेकिन इस समय उन पर भी काफी दबाव है कि वे न सिर्फ छोटे चूककर्ताओं को पकड़ें बल्कि बड़ी मछलियों को भी पकड़े। निजी जासूसी एजेंसियां देशभर में ऐसे हजारों मामले देख रही हैं। उन्होंने कहा, फरार या धोखाधड़ी करने वालों के बारे बैंको को ज्यादा जानकारी सुनिश्चित कराने के लिए हमारे एजेंट गुप्त अभियान चला रहे हैं क्योंकि ऐसे मामलों में हम सीधे जाकर दरवाजा खटखटाकर जानकारियां नहीं जुटा सकते।

कुंवर विक्रम सिंह ने बताया कि उनकी कंपनी लांसर्स प्राइवेट लिमिटेड मौजूदा समय में भारतीय स्टेट बैंक, बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ पटियाला जैसे बैंकों के साथ काम कर रही है। उन्होंने बताया कि बैंकों के साथ काम करने के लिए उन्हें गुप्त समझौता करना होता है जिसमें एजेंसी द्वारा जुटाई गई जानकारियों को किसी और के साथ या सार्वजनिक नहीं करने का प्रावधान होता है। बैंक इसके लिए एजेंसियों को भुगतान करते हैं और यह साढ़े सात हजार रुपए से 20,000 रुपए प्रति मामले तक हो सकता है।

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