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Hindi News पैसा बिज़नेस भारतीय सेना की बड़ी ताकत बनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, आत्मनिर्भरता के साथ हो रहा है डिफेंस का मॉर्डनाइजेशन

भारतीय सेना की बड़ी ताकत बनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, आत्मनिर्भरता के साथ हो रहा है डिफेंस का मॉर्डनाइजेशन

भारत के पूर्व रक्षा सचिव अजय कुमार ने इंडिया टीवी के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में बताया कि भारतीय सेना बीते एक दशक में किस प्रकार मजबूत हुई है और कैसे भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए सेना आधुनिकीकरण की राह पर चल रही है।

Indian Defence Sector- India TV Paisa AJAY KUMAR FORMER DEFENCE SECRETARY

भारत इस समय डिजिटल क्रांति के दौर से गुजर रहा है। देश के विभिन्न क्षेत्रों के ये डिजिटल तकनीकें भारतीय सेना को भी मजबूत बना रही हैं। भारतीय सेना तेजी से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानि एआई को अपना रही है। यहां खासबात ये है कि अत्याधुनिक उपकरणों से लेकर एआई जैसी सॉफेस्टिकेटेड तकनीकों तक, भारत अब अमेरिका, रूस या इस्राइल जैसे देशों पर निर्भर नहीं है। भारतीय सेना आत्मनिर्भरता के साथ मॉर्डनाइजेशन की राह पर आगे बढ़ रही है। भारत के पूर्व रक्षा सचिव अजय कुमार ने इंडिया टीवी के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में बताया कि भारतीय सेना बीते एक दशक में किस प्रकार मजबूत हुई है और कैसे भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए सेना आधुनिकीकरण की राह पर चल रही है। 

भारतीय सेना में मेक इन इंडिया पर जोर

पूर्व रक्षा सचिव अजय कुमार ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन के तहत रक्षा क्षेत्र तेजी से आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में काम कर रहा है। पहले हमारा फोकस ट्रांसफर ऑफ़ टेक्नोलॉजी पर होता था, लेकिन अब हम मेक इन इंडिया पर जोर दे रहे हैं। खास बात यह है कि हम अब अपनी जरूरत के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल ही नहीं कर रहे हैं बल्कि अब हम कई देशों में इसे एक्सपोर्ट भी कर सकते हैं। 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बनी बड़ी ताकत 

अजय कुमार ने बताया कि आज के समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सेना का एक बड़ा हथियार बन चुकी है। बीते कुछ समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर हमने बहुत काम किया है। ड्रोन और अनमैन्ड प्लैटफ़ॉर्म हो या फिर ग्राउंड पर रोबोट्स हों, सभी जगह भारत काफी आगे है। 

जनरल बिपिन रावत के दौर में ऐसे हुई शुरुआत 

उन्होंने एक रोचक किस्सा बताते हुए कहा कि जब मैं रक्षा मंत्रालय में आया उस दौरान तत्कालीन आर्मी चीफ़ जनरल बिपिन रावत को मैंने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की जरूरत के बारे में बताया था। तब जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि हमारी फ़ौज को इसकी जानकारी नहीं है, आप हमें एक लेक्चर दीजिए। इस लेक्चर में सभी सीनियर अधिकारी मौजूद थे। इसके बाद हमने टेक्निकल टास्क फ़ोर्स तैयार की जिसमें तीनों फोर्सेस और DRDO और इंडस्ट्रीज़ के लोग थे। ये सब देश की सुरक्षा से जुड़ा मसला था, ऐसे में इस टास्कफोर्स का नेतृत्व TCS के चेयरमैन चंद्रशेखर ने किया था। 

रक्षा क्षेत्र में टेक ऑफ़ स्टेज पर भारत 

अजय कुमार ने बताया कि तीन साल के अंदर सेना के तीनों अंगों में बहुत बड़ा बदलाव आया है और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की वजह से एप्रोच में काफी अंतर आया है। पिछले साल रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ऐसे 75 प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया है। अभी कई और भी प्रोजेक्ट पाइपलाइन में हैं, जो कि फिलहाल क्लासिफाइड हैं। वास्तव में देखा जाए तो अब हम रक्षा क्षेत्र में टेक ऑफ़ स्टेज पर हैं।

आत्मनिर्भरता के साथ बचत भी 

रक्षा क्षेत्र में हम तकनीक के बल पर सिर्फ आत्मनिर्भरता ही हासिल नहीं कर रहे हैं, बल्कि इसकी मदद से हमने बहुत सेविंग की है। पहले जब भी हम किसी देश से टेक्नोलॉजी लेते थे वो हमें काफी महँगा पड़ता था। लेकिन अब हम खुद ही हथियार तैयार कर रहे हैं जिसकी मदद से यह हमें काफी सस्ता पड़ रहा है। उदाहरण के तौर पर अगर हज़ार करोड़ का कोई भी उत्पाद है और इसे हम विदेश से खरीदते हैं तो काफी महंगा पड़ता है। लेकिन जब हम अपनी टेक्नोलॉजी विकसित कर रहे हैं तो इसकी क़ीमत बिलकुल कम हो गई। कई जगह तो लागत 10 गुना तक कम हो गई है। भारतीय उत्पादन विदेश से इंपोर्ट करने के मुकाबले कम से कम 30-40 प्रतिशत सस्ता है। कई अन्य क्षेत्रों में जहां हम 800 करोड़ का इंपोर्ट करते थे, वह अब हमें 300 से 600 करोड़ में ही पड़ रहा है। 

डिफेंस मॉर्डनाइजेशन में पैसों की कोई कमी नहीं 

अजय कुमार बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में प्रधानमंत्री के आह्वान से रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ी है। सरकार ने तय किया है कि बजट का एक हिस्सा घरेलू उद्योग को दिया जाए। यह पहले वर्ष 58% दूसरे वर्ष 64% और इस वर्ष में 68% है। सेना के लिए डिफेंस के कैपिटल बजट में भी 15% से 20% का इज़ाफ़ा हुआ है। पिछले दो वर्षों में कभी भी पैसे की कमी नहीं पड़ी है। पहले कई बार सुनने में आता था कि डिफेंस के मॉडर्नाइजेशन में पैसों की कमी पड़ रही है लेकिन अब वो नहीं हैं। अब तो ऐसा हो गया है कि कई बार इतना बच जाता है कि हमें पैसा ख़र्च करने के लिए सोचना पड़ता है कि कहाँ खर्च करें। 

स्टार्टअप में है काफी क्षमताएं

अजय कुमार मानते हैं कि देश के विकास में सबसे बड़ा रोड़ा फिलहाल हमारी सुस्त स्टार्टअप इंडस्ट्री और एके​डमिक क्षेत्र है। वे कहते हैं कि हमारे स्टार्टअप में बहुत क्षमता है आने वाले समय में टेस्ट टेक्नोलॉजी बहुत ज़रूरी है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि 16 मेगापिक्सल के हाई रेज़लूशन कैमरे को हम इज़राइल से लेते थे। हमने अपने स्टार्टअप को यही प्रोजेक्ट दिया और उसने 12 महीने के अंदर इसे बना दिया। अब जिस कैमरे को हम इजराइल से खरीदते थे, उससे भी कम पैसों में स्टार्टअप ने इसे तैयार ​कर दिया। 

ड्रोन टेक्नोलॉजी पर हो रहा है काम 

अजय कुमार ने बताया कि भारतीय स्टार्टअप ड्रोन टेक्नोलॉजी और स्वान ड्रोन टेक्नोलॉजी पर बहुत तेजी से काम कर रहे हैं। जिसके चलते हम इस क्षेत्र में काफी आगे निकल चुके हैं। US के डिफेंस रिसर्च लैब ने भी इसे देखकर कहा की हम इनके साथ काम करना चाहते हैं क्योंकि ये टेक्नोलॉजी US में भी मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा कि क्वांटम कम्युनिकेशन भी एक दूसरा बेहतरीन क्षेत्र है जो कि बताता है कि भारत का सॉल्यूशन सबसे बेहतर है और इसकी कॉस्ट विदेशी तकनीकों के मुकाबले दो तिहाई रह जाएगी।

भारत की क्षमता से दुनिया हैरान 

वे बताते हैं कि जो टेक्नोलॉजी हम तैयार कर रहे हैं वह बेहद उम्दा है और बहुत कम कीमत पर उपलब्ध हो रही है। आपने पिछले साल देखा कि बीटिंग रिट्रीट में एक हज़ार ड्रोन का शो हुआ। दुनिया में केवल तीन देशी ऐसा कर पाते थे। हमने मेक 2 स्कीमबनायी इसके ज़रिए हमने स्टार्टअप को बताया कि हम पैसा नहीं देंगे लेकिन अगर आपने प्रॉडक्ट हमारे हिसाब से बनाया तो तब हम इसे ख़रीदेंगे और इंडस्ट्रीज़ बहुत बढ़ चढ़कर सामने आयी और वो अपना सामान लेकर आयी। सभी इंडस्ट्रियल हाउस ने अब इसमें शामिल हो गए छोटी बड़ी हर तरह की इंडस्ट्री काम कर रही है।

दुनिया बनी भारतीय तकनीक की खरीदार

डिफेंस एक्सपो में भारतीय तकनीक की ताकत देखने को मिली। रक्षा मंत्री से दूसरे देशों के चीफ़ और रक्षा मंत्रियों ने कहा कि वो हमारी से सामान ख़रीदना चाहते हैं क्योंकि भारतीय सामान रिलायबल है। पहले हो सकता है वो अमेरिका चीन और रूस से ख़रीद करते रहे हों, लेकिन अब वह भारत से ख़रीदना चाहते हैं। पहले हम दुनिया के सबसे बड़े इंपोर्टर थे। अब हम टॉप ट्वेंटी फ़ाइव एक्सपोर्टर में है और मुझे लगता है कि आने वाले समय में और आगे बढ़ेंगे। जो भी तकनीकें हमने अपने देश में डेवलप की है वो एक्सपोर्ट के लिए रेडी हैं। उदाहरण के लिए हमने तेजस बनाया है। हम ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट टू95 बना रहे हैं। हमने उसमें शर्त रखी है कि भविष्य में यह यहीं पर बनेगा और फिर एक्सपोर्ट होगा। मिसाइल में ब्रह्मोस आकाश पिनाका एंटी टैंक मिसाइल में भी हम काम कर रहे हैं। इन्हें DRDO बना रहा है। हमारी बहुत सी कंपनियां सिमुलेटर भी बना रही हैं। 

इंपोर्टर से एक्सपोर्टर बना भारत 

आप समझ लीजिए कि हम कई वेस्टर्न कंट्री से भी ज़्यादा आगे हैं और ऑस्ट्रेलिया के उप प्रधानमंत्री ब्रिटेन के चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ़ ने हमारी तकनीकों में बहुत इंटरेस्ट दिखाया है। हम मिसाइल में भी आगे बढ़े हैं और हमने बुलेटप्रूफ़ को लेकर बहुत क्षमता हासिल कर ली है। 2018 में जब प्रधानमंत्री ने कहा कि बुलेटप्रूफ़ जैकेट इंपोर्ट होना बंद हो तो हमने वो सब बंद करके इंडिया में पहली बार बुलेट प्रूफ़ जैकेट बनाई। आज हम देश भर विश्व भर में इसका निर्यात कर रहे हैं। नेवी में हमारी क्षमता बहुत आगे बढ़ गई है हर क्षेत्र में जहाँ हमारा डिज़ाइन है वहाँ पर हम बहुत आगे हैं। हम सौ से ज़्यादा आइटम इस समय एक्सपोर्ट कर रहे हैं और आने वाले समय में इसकी संख्या और बढ़ेगी।

90 का दशक IT का था अब डिफेंस का है

उन्होंने कहा कि 1990 में IT सेक्टर में बूम आया था लेकिन यह दौर रक्षा सेक्टर का है। हम टेक ऑफ़ स्टेज पर हैं और आने वाले समय में एक बड़े बदलाव की तरफ़ ये इशारा है। हम दुनिया की पाँचवी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश हैं और आने वाले समय में और आगे बढ़ेंगे। हमारी ख़ुद की क्षमता है हम किसी के ऊपर आश्रित नहीं हो सकते
ये मॉडर्न डे नाइट एक न्यू चैलेंज है और हम ही कह दें कि हम पूरी तरह से तैयार है तो ये सही नहीं है।

साइबर वॉर फेयर नया खतरा 

अजय कुमार बताते हैं कि साइबर वॉर फेयर एक साइलेंट थ्रेट है इससे भी निपटने की तैयारी की जा रही है। साइबर अटैक कहाँ से हो रहा है कौन कर रहा है यह पता लगाना भी मुश्किल है पिछले दिनों एम्स भी आपने देखा होगा। इसके लिए और सुदृढ़ बनाना होगा। इन्फ़ॉर्मेशन वॉर फेयर के तहत आप लोगों की सोच से खिलवाड़ करते हैं। आप उनकी फ़ॉल्ट लाइन को बढ़ावा देते हैं उससे देश में काफ़ी ज़्यादा उथल पुथल होती है और आने वाले समय में स्पेस एक बहुत बड़ी चुनौती है। स्पेस और हाई सीस ये ग्लोबल कॉमन है। स्पेस पर बैठकर आप केवल सतह ही नहीं बल्कि पानी के नीचे भी देख सकते हैं। आने वाले समय में स्पेस का हर जगह असर होने वाला है।

स्पेस टेक्नोलॉजी में ताकत बना भारत

स्पेस में 2021 में एक हज़ार सैटलाइट सभी देशों ने अलग अलग तरीक़े से एक साथ भेजी हैं। हर दिन के हिसाब से देख जाए तो हर रोज़ तीन सैटलाइट भेजी गई हैं। आप अगर ये देखें की पहली सैटलाइट से लेकर पचास साल तक इतने सैटलाइट नहीं भेजे गए है। 2022 में इनकी संख्या डेढ़ हज़ार से ज़्यादा हो गई। 

चीन को देंगे कड़ी टक्कर 

चीन हमारे देश के अंदर आ जाए यह बिलकुल भी संभव नहीं है और हम उसे अंदर नहीं आने देंगे। चीन इन्फ़ॉर्मेशन वॉर फेयर का इस्तेमाल करता है वो अपने मीडिया और लोगों के ज़रिए बढ़ा चढ़ाकर बोलता है लेकिन सच्चाई बिलकुल अलग है। चीन हम हमारे देश पर या फिर सीमा के अंदर आ जाए वो संभव नहीं है। चीन जब भी कोशिश करता है हम उसे पीछे धकेल देते हैं। जिस दिन वो क़ब्ज़ा करेगा उस दिन लड़ाई पक्का होगी ।हम एग्रीमेंट के तहत काम करते हैं और रोकते हैं। बहुत सारे एग्रीमेंट में बहुत सारे अरेंजमेंट किए गए हैं कोई भी अपना पक्ष छोड़ दें या फिर हम अपना पक्ष छोड़ दें ये हो नहीं सकता और ये हमारी चर्चा में भी नहीं है। 

स्टार्टअप तैयार कर रहे हैं सबमरीन 

हमारे स्टार्टअप अब नए मझगांव डॉक यार्ड में ही सबमरीन बनाने को तैयार हो रहे हैं।MDL के बोर्ड ने यह प्रपोज़ल भी पास किया है। हमारे युवा डिफेंस PSU के तहत ये बनाएंगे यह बहुत बड़ी बात है। हमें दूसरे देशों से ये ऑफ़र आया कि हम आपको लाइट टैंक बनाके देंगे। 

बजट में मॉर्डनाइजेशन पर हो जोर

बजट में हमारा फ़ोकस कैपिटल और कैपिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर और मॉडर्नाइजेशन की तरफ़ होना चाहिए और पिछले वर्षों में इसे बढ़ाया गया है।एक समय था जब कैपिटल बजट गिरता जा रहा था लेकिन पिछले सालों में सरकार की कोशिश रही है कि कैपिटल बजट बढ़ाया जाए। बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर में भी तेज़ी आई है। समुद्री सीमा से लेकर बॉर्डर तक हर जगह जब हम अपना इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ा रहे हैं। पिछले बजट में थर्ड डिफेंस आरएंडडी सेक्टर का अनाउंसमेंट हुआ है। मुझे लगता है इसमें भी इज़ाफ़ा होगा। बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन के लोग दिन रात बहुत काम कर रहे हैं और वो तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं एक साल में क़रीबन सौ से ज़्यादा लोग अपनी जान हमारे लिए देते हैं लेकिन हम उन्हें वैसा सम्मान नहीं दे पा रहे हैं कि यह दुनिया के सबसे ऊँचे क्षेत्र में काम करने वाली संस्था है। ये फ़ौज के साथ साथ शून्य से 20 से 30 डिग्री नीचे के तापमान पर चौबीसों घंटे काम करती हैं। हमें इस पर भी ध्यान देना होगा। 

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